tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post6534032279367565516..comments2023-11-05T14:33:52.361+05:30Comments on संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि: छोटी-सी गुड़िया के बड़े-बड़े नखरेDr. Mahesh Parimalhttp://www.blogger.com/profile/11819554031134854400noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-51308958356552658512007-11-27T11:45:00.000+05:302007-11-27T11:45:00.000+05:30आपकी टिप्पणियों के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद.आपकी टिप्पणियों के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद.Dr. Mahesh Parimalhttps://www.blogger.com/profile/11819554031134854400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-17170877062865237612007-11-26T13:57:00.000+05:302007-11-26T13:57:00.000+05:30बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने । आज से १५ वर्ष पूर्व ...बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने । आज से १५ वर्ष पूर्व तक तो बार्बी के साथ साथ, बिल्कुल नवजात शिशु सी हँसने व रोने वाली गुड़िया भी मिलती थीं । सस्ते मंहगे हर तरह के बर्तन ,भी मिलते थे । अब पता नहीं । परन्तु मुझे विश्वास है कि ढूँढने पर गुड़िया जैसी गुड़िया भी मिल ही जाएगी । नहीं तो सॉफ्ट टॉयज तो हैं हीं इनमें भी गुड़िया मिलती हैं । मेरी बेटियों के पास बहुत प्रकार की गुड़ियाँ थीं, बार्बी परिवार भी । मुझे उनपर कोई विपरीत प्रभाव पड़ा यह तो नहीं दिखता । आम लड़कियों से भी कम फैशनपसन्द व बेहद संवेदनशील हैं वे । शायद उन्हें मेरा पूरा समय मिला, यह भी एक कारण हो सकता है । फिर भी आपकी चिन्ता सही है ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.com