tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post9136333688985239047..comments2023-11-05T14:33:52.361+05:30Comments on संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि: ...एक ईमानदार जीवनी पर बवाल क्यों!Dr. Mahesh Parimalhttp://www.blogger.com/profile/11819554031134854400noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-35548091855093281222009-11-19T11:27:09.482+05:302009-11-19T11:27:09.482+05:30सच हमेशा ही कडुआ होता है . एक विचित्र बात है इस व्...सच हमेशा ही कडुआ होता है . एक विचित्र बात है इस व्यवस्था में, दो लोग जो काम मिलकर करते हैं उसमे एक सक्षम और दूसरा हिकारत की नजर से देखा जाता हैडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-56040255546247354372009-11-17T13:11:58.728+05:302009-11-17T13:11:58.728+05:30आपने लगभग सारी बाते वही कह दी जो मेरे भीतर कल से उ...आपने लगभग सारी बाते वही कह दी जो मेरे भीतर कल से उमड़ रही थी.....यूँ भी हम कागजो में वो क्यों दिखने की कोशिश करते है जो हम असल में नहीं है .....हम सभी के जीवन के कई ऐसे पन्ने होते है जिसकी पहुँच सिर्फ हम तक होती है ....गांधी के प्रयोगों को हम गांधी दर्शन कहकर नजर अंदाज कर देते है ..ओर बाकी जगह नैतिकता का मोतियाबिंद आँखों में चढ़ा लेते है ....राजेंदर यादव को ही ले ....मन्नू ने उन्हें उधेडा है ...जाहिर है वे पीड़ित है .उन्होंने तब उधेडा जब सामने वाले ने अपना उज्जवल पक्ष रखा ...फिर भी राजेंदर जी की इस बात पे तारीफ़ करनी होगी के उन्होंने हर आलोचना को स्वीकार करने की हिम्मत है....ओर अपने गुनाह को भी ..किसी बात को सामने रखने से हम उसे सही तो नहीं कह रहे .....हम क्यों उपेक्षा करे के एक अभिनेता खरा हो सोने जैसा ....सामान्य पुरुष न हो...यूं भी उम्र के हर दौर में जीवन में कई उतार चढ़ाव आते है ..शर्मिंदगी भरे भी......मसलन जावेद अख्तर ने स्वीकार किया है कम शब्दों में के एक वक़्त ऐसा था मै बहुत पीने लगा था वो मेरी जिंदगी का शर्मनाक दौर था .....आत्मकथा लिखना ओर अपने को निर्ममता से खंगालना बड़ा मुश्किल ओर बहुदारी का काम है .हाँ ओम पूरी जी को यहाँ इसलिए छाले जाना महसूस होता है के उन्होंने जो निजी बाते कही विशवास से शेयर की थी वे इस तरह से सार्वजनिक हो गयी ......<br />यूं भी जीवन बड़ा लम्बा वक़्त होता है इसके एक पन्ने पे खड़ा जो मनुष्य महान दिखता है गुजरे वक़्त के साथ किन्ही कमजोर लम्हों में वो भी कभी विलेन होगा...ये तय है ओर सच है ....क्यूंकि आदमी होना ही गलती का पुतला होना है .....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.com