
















जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
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parimalmahesh@gmail.com
यक़ीनन मां के क़दमों के नीचे जन्नत है...
जवाब देंहटाएंजो मां की क़द्र नहीं करते वो बहुत ही बदनसीब लोग हैं...
एक बच्चे के लिए...मां इस ज़मीं पर ईश्वर का ही प्रतिनिधित्व करती है...
sahi he ma ma he ma ka dil waqy me pyar or dular bhara ahsas he
जवाब देंहटाएंदुनिया की सभी माताओं को नमन!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिल को छूती हुई क्षणिकायें.
ओह! बहुत भावप्रवण कविताएं।
जवाब देंहटाएंbahut khoob ek ek rachna lajawaab...
जवाब देंहटाएंजो माँ की कदर नहीं करते वो जिन्दा होकर भी मुर्दे से भी बदतर होते हैं. जिसने माँ को नहीं पहचाना उसने भगवान को नहीं माना. ऐसे बदनसीब इंसान कहलाने के काबिल भी नहीं है. दिल पसीज उठा उन मों के लिए जिनकी औलादें ऐसी नाकारा हो गई.
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