सोमवार, 13 सितंबर 2010

क्या कहती है प्रधानमंत्री की सख्ती?


डॉ. महेश परिमल
अक्सर यह कहा जाता है कि जो खामोश तबियत के होते हैं, उनके गुस्से से बचना। इसे सच कर दिखाया है हमारे प्रधानमंत्री ने। इस बार तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं छोड़ा। इससे लगता है कि अब हमारे प्रधानमंत्री के तेवर बदल रहे हैं। लोगों का मानना है कि यदि हमारे प्रधानमंत्री अपने तेवर इसी तरह हमेशा तीखे रखें, तो वे एक अच्छे राजनेता बन सकते हैं।अब तक हमारे प्रधानमंत्री की छवि एक डरपोक किस्म के व्यक्ति की रही है। ऐसे लोगों को ढीला, मितभाषी और शांत प्रकृति का भी कह सकते हैं। ऐसे लोग जब कुछ कड़ा बोलते हैं, तब लगता है कि वे अपने स्वभाव के विपरीत कुछ कर रहे हैं। पर ऐसा नहीं है, ऐसे लोग ही कभी-कभी आक्रामक रवैया अपनाते हैं, जिसे देखकर लोग स्तब्ध रह जाते हैं।
सोमवार को प्रधानमत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने ८क् मिनट तक जिस तरह से तीखे कटाक्ष किए हैं, उसे उनके व्यवहार से एकदम अलग माना जा सकता है। अपने तीखे तेवर से ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कह दिया कि वह अपनी हद पर रहे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जिस सख्ती से कहा था कि अनाज यदि सँभाल नहीं पा रहे हैं, तो उसे गरीबों में मुफ्त मंे बाँट दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्ती किसी को रास नहीं आई। डॉ. सिंह ने कह दिया कि नीति विषयक जैसे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ऐसी टिप्पणी न करे, जिसे मीडिया गलत तरीके से प्रचारित करे।
प्रधानमंत्री ने अपने बारे में साफ शब्दों में कह दिया कि मैं अभी रिटायर नहीं होना चाहता। इस तरह से उन्होंने उन लोगों के मुँह सिल दिए, जो यदा-कदा उनके रिटायरमेंट की बात कहते नहीं थकते थे। चलते-चलते उन्होंने केबिनेट में परिवर्तन के संकेत भी उन्होंने दे दिए। यह भी कह दिया कि केबिनेट में युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। अपनों से संवादहीनता की बात को भी उन्होंने पूरी तरह से नकार दिया। जो राजनीति की थोड़ी भी समझ रखते हैं, वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि जवाहर लाल नेहरु और सरदार पटेल के बीच पत्रयुद्ध चलता था। यही नहीं, इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच भी कई विवाद थे। इसके अलावा इंदिरा गांधी और युवा तुर्क चंद्रशेखर के बीच खींचतान से सभी अवगत हैं। इस तरह के उदाहरण देकर प्रधानमंत्री ने यह संकेत दे ही दिया कि राजनीति में तो यह सब होता ही रहता है। इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। यही बात यदि कोई दूसरा प्रधानमंत्री कहता, तो आश्चर्य नहीं होता, पर यही शब्द जब हम डॉ. मनमोहन सिंह के मुँह से सुनते हैं, तो आश्चर्य होता ही है। क्यांेकि मनमोहन सिंह की छवि मितभाषी, शांत और विनम्र नेता की है। अब यदि वे ऐसी सख्ती बता रहे हैं, तो उसके पीछे आखिर क्या है? यह परिवर्तन भला आया कहाँ से?
अक्सर डॉ. मनमोहन सिंह के ढीलेपन की चर्चा चलती रहती है। उनके इस व्यवहार पर काफी टीका-टिप्पणी भी होती रही है। देश का शासन डॉ. मनमोहन सिंह नहीं, बल्कि सोनिया गांधी चला रहीं हैं। राहुल गांधी ही अगले प्रधानमंत्री होंगे। ऐसा भी लगातार कहा जा रहा है। केबिनेट से भी इस तरह की आवाजें उठती रहती हैं। इन सब बातों का जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री ने यह समय चुना। अपनी नम्रता को दूर रखते हुए उन्होंने सख्ती से जवाब दे दिया। इतनी सख्ती दिखाकर अब वे पुन: मौनव्रत धारण कर लेंगे, ऐसा माना जा रहा है। उनका यह मौनव्रत तब तक चलेगा, जब तक बोलना उनके लिए अनिवार्य नहीं होगा। डॉ. सिंह इसके पहले भी ऐसा कर चुके हैं। लेकिन उसकी तीव्रता ऐसी न थी, जो सोमवार को देखने को मिली। इसके पहले 16 जून को ही प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से दो टूक कहा कि वे अपने देश से भारत के खिलाफ चलाए जा रहे आतंकवाद को रोकने के लिए कार्रवाई करें। अभी 26 जुलाई को ही गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह की गिरफ्तारी के पीछे राजनीतिक साजिश होने के भाजपा के आरोपों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) कांग्रेस जांच ब्यूरो नहीं है। उन्होंने भाजपा के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि केंद्र ने जांच की प्रRिया को किसी भी तरह से प्रभावित करने की कोशिश नहीं की है।
वैश्विक परमाणु सुरक्षा में भाग लेने वाशिंगटन पहुंचे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के तेवर देखने लायक थे। अमरीकी राष्ट््ररपति बराक ओबामा से मुलाकात में मनमोहन सिंह ने उन्हें भारत की अपेक्षाओं का ऐसा पाठ पढ़ाया कि ओबामा को उनके सामने झुकना पड़ा। इसके तत्काल बाद अमरीकी राष्ट्रपति ने पाक को खरी-खरी सुना दी। कूटनीति यह कहती है कि कभी-कभी शालीनता के साथ नाराजगी जताना चाहिए और मनमोहन सिंह ने यही किया।
उन्होंने भारत की चिंताओं और सरोकारों को जिस दृढ़ता से पेश किया, उस कारण ओबामा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को साफ-साफ कहा कि वह मुम्बई हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करे। उन्होंने गिलानी से यह भी कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर गंभीर है और उनकी भी यही इच्छा है कि पाक सरकार 26/11 के आरोपियों पर कार्रवाई कर रिश्ते को आगे बढाने की पहल करे।
प्रधानमंत्री जी की यह सख्ती देखकर लोग तो यह मानने लगे हैं कि ऐसी सख्ती हमेशा बरकरार रहे। एक कुशल राजनेता को ऐसी सख्ती ही शोभा देती है। यह भी कहा गया है कि इंसान अपना स्वभाव बदल सकता है, पर आदत नहीं।
डॉ महेश परिमल

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या प्रधान मंत्री आपकी इस सलाह को मानेंगे या सोनिया जी के पास लेकर जायेंगे इस पर उनके विचार जानने

    इसे पढ़कर अपनी राय दे :-
    (आपने कभी सोचा है की यंत्र क्या होता है ....?)
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html

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  2. jis pad par ve aaseen hain uski garima rakhne liye unhen apni sakhti rakhni chahiye..... prernadayi post .....aur achha vishay

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