बुधवार, 1 दिसंबर 2021

देश की सुरक्षा पर भी ममता इतनी कठोर क्यों?

केंद्र और राज्य के बीच सदैव तनातनी रहती है। ऐसा बरसों से चला आ रहा है। पर बात जब राष्ट्र हित में हो, तो सभी एक हो जाते हैं। ऐसा भी कई बार हुआ है। पर इस बार ममता का घमंड सामने आया है, जिसमें वह बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स यानी सीमा सुरक्षा बल के जांच के दायरे को 15 से 50 किलोमीटर करने के मामले में वह केंद्र सरकार के खिलाफ काम करते हुए विधानसभा से प्रस्ताव पास करवा लिया। क्या यह एक मुख्यमंत्री को शोभा देता है? आखिर वे खुद को क्या समझती हैं? उनके तेवर तो यही बता रहे हैं कि वे स्वयं को प्रधानमंत्री से कम नहीं मानती।

केंद्र सरकार के किसी भी कदम से हमेशा सहमत नहीं हुआ जा सकता, यह सच है। पर बात जब राष्ट्र की सुरक्षा को लेकर हो, तब तो सहमत होना आवश्यक है। पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पंजाब सरकार के साथ मिलकर अड़ंगा लगा दिया। यह सर्वविदित है कि पंजाब एवं पश्चिम बंगाल से ड्रग्स के मामले में घुसपैठ होती रहती है। इस दिशा में सख्त कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का दायरा 15 से 50 कि.मी. करने के लिए दोनों राज्यों से अनुमति मांगी थी। पर ममता बनर्जी ने इस अमान्य करते हुए विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया। हुआ यूं कि ड्रग्स के अपराधी एक स्थान पर अपराध कर कुछ ही समय बाद उस स्थान से काफी दूर निकल जाते थे। इसलिए केंद्र सरकार ने बीएसएफ के जांच के दायरे को 15 से 50 कि.मी. करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव बीएसएफ के आग्रह पर ही रखा गया था। इस प्रस्ताव को ममता बनर्जी अपनी हठधर्मिता के चलते नहीं माना। इस तरह से वह अपराधियों को संरक्षण देती नजर आ रही हैं।

ममता बनर्जी का राजनीतिक गणित ऐसा है कि बीएसएफ के जांच के दायरे के मामले में वह केंद्र सरकार को परेशान करना चाहती है। इसके पहले 2016 में पश्चिम बंगाल के टोल टैक्स नाके पर बीएसएफ के जवानों को देखकर ममता भड़क गई थीं। उसने तुरंत केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा था कि उसने पूछे बगैर केंद्र सरकार हमारे राज्य में बीएसएफ को किस तरह से प्रवेश दिला सकती है? ममता जब भी आक्षेप करना शुरू करती है, तब ऐसा लगता है कि वह एक मुख्यमंत्री न होकर प्रधानमंत्री हैं। इस मामले में जब बीएसएफ ने यह स्पष्ट किया कि यह तो एक मॉक ड्रिल थी, तो उसने पलटकर जवाब दिया कि कुछ भी हो, मॉक ड्रिल पर भी राज्य सरकार से अनुमति लेनी चाहिए थी। यहां ममता केवल विरोध करने के लिए ही विरोध कर रही है। उसने तय कर लिया है कि मोदी सरकार जो भी निर्णय ले, उसका विरोध ही करना है। तो यह विरोध भी उसी विरोध का एक अंग है। 

ममता ऐसे समय में केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध कर रही है, जब उसे गोवा में चुनाव लड़ना है। गोवा में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ममता ने अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया है। पर बीएसएफ म्रामले में गोवा में उसकी फजीहत होगी, यह भी तय है। विपक्ष उनके इसी रवैए को मुद्दा बना लेगा। पश्चिम बंगाल में देश की सीमा पर शहीद होने वाले जवानों का भी मजाक उड़ाया गया है। तृणमूल कांग्रेस के विधायक उदयन गुहा ने जब यह कहा कि सीमा से आने वाली महिलाओं के साथ सेना के जवान छेड़छाड़ करते हैं, तब विधानसभा में काफी हंगामा हुआ था। बाद में गुहा ने कहा कि मैं यह नहीं कहता कि सभी जवान छेड़छाड़ में लिप्त हैं।

पश्चिम बंगाल के विधायक ममता बनर्जी को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का सख्त विरोध करें, तब तक तो ठीक है। पर अपनी खुन्नस वे सीमा के जवानों पर उतारे, तो देश के लोगों को आघात लगना स्वाभाविक है। एक तरफ मोदी सरकार सीमा के जवानों को सम्मान देने जा रही है, तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी देश हित के कार्य में अड़ंगा लगाकर अपनी हठधर्मिता दर्शा रही है। इससे यही सदेश जाता है कि उनका काम केवल विरोध करना ही है, वह हर हालत में विरोध ही करेंगी। मामला राष्ट्र हित का हो या फिर राज्य हित का।

डॉ. महेश परिमल




6 दिसम्बर 2021 को जनसत्ता में प्रकाशित







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