मंगलवार, 29 नवंबर 2022

 



29 नवम्बर 2022 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित आलेख





इंसान के भीतर से छीजती हरियाली

डॉ. महेश परिमल

कुछ दिनों पहले एक स्कूल में बच्चों को अपनी पसंद का चित्र बनाने को कहा गया। चित्र का शीर्षक था पर्यावरण। आश्चर्य इस बात पर हुआ कि बच्चों ने पर्यावरण के नाम पर जंगली जानवरों के चित्र बनाए, पर उनके चित्रों में पेड़-पौधे नदी, तालाब गायब थे। सोच की तरंगों ने विस्तार पाया, तो समझ में आया कि इस समय बच्चों की पहुंच से दूर हो गए हैं पेड़-पौधे। वे वनस्पतियों से अधिक जानवरों में रुचि लेते हैं। उनके खिलौनों में अत्याधुनिक कारों के छोटे-छोटे माँडल के अलावा रबर के जंगली जानवर तो मिल जाएंगे, पर पेड़-पौधे, नदी-तालाब नहीं मिलेंगे। शोध में आम व्यक्ति को जंगल का फोटो दिखाया गया। इसमें जानवर और पेड़-पौधे दोनों थे। उनसे पूछा गया कि फोटो में क्या दिखा। लोगों ने जानवर के बारे में बताया, लेकिन पेड़-पौधों को नजरअंदाज कर दिया। इसे ही कहते हैं प्लांट ब्लाइंडनेस।

सच भी है, हममें से न जाने कितने लोग ऐसे भी होंगे, जिन्होंने कई दिनों से न तो कोई पेड़ देखा होगा, न ही यह समझा होगा कि यह किसका पेड़ है। जिन्होंने पेड़ देख तो लिया होगा, पर उसे छूना पसंद नहीं किया होगा। पेड़ के प्रति इस बेरुखी को नाम दिया गया है प्लांट ब्लाइंडनेस। यह स्थिति साफ बता रही है कि हम सब पेड़ों के प्रति अपनी संवेदनाओं से दूर होते जा रहे हैं। आखिर क्या हो गया है हमें? इंसान और पेड़-पौधों के बीच क्यो आ रही है, इतनी दूरियां? क्या दोनों के बीच के रिश्ते अब रिसने लगे हैं? क्या इंसान अब पेड़ों से किसी प्रकार का रिश्ता रखना ही नहीं चाहता?

हाल ही में इस विषय पर एक शोध हुआ, जिसमें बताया गया कि लोगों में संवेदनाओं का अभाव पैदा हो गया। सीधी-सी बात है, संवेदनाओं से दूर होते इंसान के लिए अब सब-कुछ सामान्य है। इंसान पौधों से दूर हो रहा है, यानी प्रकृति से दूर हो रहा है। प्रकृति से दूर यानी शहरीकरण को पूरी तरह से अपनाना। अब घरों में आर्टिफिशियल पौधों और प्रकृति की तस्वीरों ने जगह ले ली है। पौधों से दूर होता इंसान पौधों से संबंधित हर सीधी गतिविधि से दूर हो रहा है। सड़क किनारे किसी पेड़ के करीब से गुजरते हुए वह यह भी जानने की कोशिश नहीं करता कि आखिर ये पेड़ किसका है? पेड़-पौधों के प्रति कुछ जानने की जिज्ञासा का खत्म होना ही यह दर्शाता है कि हमारे भीतर का हरियालापन ही नष्ट हो गया है। 1998 से 2020 तक प्रकाशित हुए 326 लेखों की पड़ताल कर वैज्ञानिकों ने पाया कि लोगों की रुचि पेड़ों के बजाए जानवरों में ज्यादा थी। वे उनके बारे में पौधों से ज्यादा जानकारी याद रखना पसंद करते थे। इसका प्रमुख कारण यह माना जा रहा है कि शहरी लोगों में प्रकृति के प्रति अरुचि दिखाई दे रही है।

लोगों की दिनचर्या से पेड़ अब गायब होते जा रहे हैं। हमारे बीच बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्होंने काफी दिनों से न तो किसी पेड़ के पत्तों का ध्यान से निहारा होगा और न ही किसी पेड़ को अपनी पोरों से महसूस किया होगा। हमारे ही बीच के लोग पेड़-पौधों को इसलिए नहीं समझ पाते, क्योंकि उन्होंने कभी हरे-भरे इलाकों में अधिक समय बिताया ही नहीं है। इसके विपरीत सुदूर गांवों में कई लोगों का जीवन ही पेड़-पौधों पर निर्भर होता है। वे न केवल पेड़ को जीते हैं, बल्कि को अपने भीतर पालते-पोसते हैं। पेड़ उनका जीवन साथी होता है। कोई भी काम पेड़ को सामने रखकर ही करते हैं। कई बार पेड़ों को पूजा भी जाता है। इसमें पीपल-बरगद के पेड़ भी हैं, जिनकी पूजा की जाती है।

हिंदुओं में एक त्योहार मनाया जाता है आंवला अष्टमी। इस दिन लोग घर से खाना बनाकर ले जाते हैं और जंगल में किसी आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करते हैं। कई लोग जंगल जाकर वहीं खाना बनाकर खाते हैं। कहा जाता है कि उस विशेष दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने से शरीर को कई तरह की ऊर्जा की प्राप्ति होती है। कई तरह की व्याधियां दूर होती हैं। शरीर निरोग होता है। आजकल इंसानों के भीतर का जंगल तो समाप्त हो चुका है, अब उस बियाबान में हिंसक पशु नहीं, बल्कि कटुता के पैने नाखून वाले जानवर निवास करने लगे हैं। नितांत अकेले रहकर इंसान के भीतर का अकेलापन अब कई रूपों में सामने में आने लगा है। पहले यही स्थिति चिंतन की ओर ले जाती थी, अब यह इंसान को सब-कुछ तबाह करने की प्रवृत्ति की ओर ले जा रही है। इंसान दिनों-दिन एकाकी होता जा रहा है। अब उसे दूसरों से कोई मतलब नहीं है। उसकी पूरी दुनिया मोबाइल में समा गई है, जहां से वह सब-कुछ पा लेता है, जिसकी वह कामना करता है। हथेली में समाए उस यंत्र में ही उसका संसार होता है।

अब तक हम पर्यावरण को हरियाली से जोड़कर देखते आए हैं, पर सच तो यह है कि पर्यावरण का सही अर्थ आसपास के वातावरण से है। पहले हमारे आसपास का वातावरण हरियाली से भरा होता था, जिससे हम प्रेरणा लेकर अपने भीतर के सूखेपन को हरियाला बनाते थे। अब बाहर का सूखापन भीतर के सूखेपन से मिलकर एक रेगिस्तान ही तैयार हो रहा है हमारे भीतर। यही रेगिसतान स्वभाव हमें प्रकृति से दूर कर रहा है, पेड़ों से दूर कर रहा है, हमें हमारे अपनों से दूर कर रहा है। इसलिए आज पेड़ उखड़ रहे हैं, इंसान तो पहले ही उखड़ चुका है। इन हालात में हमारा भविष्य कैसा होगा, सोचा आपने?

डॉ. महेश परिमल 


मंगलवार, 22 नवंबर 2022

डेटिंग एप के धोखे से बचना आवश्यक

22 नवम्बर 2022 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित





01 दिसम्बर 2022  को राजनांंदगाँव के सबेरा संकेत में प्रकाशित











 

डेटिंग साइट्स का बढ़ता प्रदूषण

डॉ. महेश परिमल

अपनी प्रेमिका श्रद्धा के 35 टुकड़े करने वाला आफताब देश भर में युवाओं का खलनायक बन गया है। चारों तरफ उसकी निंदा हो रही है। ऐसा माना जा रहा है कि आफताब ने जो कृत्य किया है, उसके पीछे एक ऐसा ऐप है, जो इस तरह की प्रवृत्ति को बढ़ाने का काम करता है। यह एक डेटिंग ऐप है। दिल्ली पुलिस ने जांच में आफताब की प्रोफाइल में इस डेटिंग ऐप बम्बल का जिक्र है। यह एप्स और वेबसाइब्स ऑनलाइन व्यभिचार करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इतना ही नहीं यह वेबसाइब्स उपभोक्ता के लिए पार्टनर की भी व्यवस्था कर देती है।

हमारे देश में इस तरह के ऐप का प्रवेश 2014 में ही हो गया था। इंटरनेट से जुड़े इस ऐप के आज लाखों व्यसनी हमारे देश में हैं। लोग इसके पीछे अपना कीमती समय बरबाद करते देखे गए हैं। यही नहीं, इसके लिए काफी धन भी खर्च करते हैं। इन्हीं ऐप में से एक है बम्बल। इस मोबाइल डेटिंग एप्लिकेशन पर लोग घंटों तक अपना समय देते हैं। यहां आकर वे अपना मनचाहे पात्र की तलाश करते हैं। डेटिंग साइट, मेट्रोमोनियल साइट ओर इरोटिक साइट आदि एक ही वेवलेंथ पर डेवलप हुई है। सभी में फर्जी प्रोफाइल की भरमार है। इसमें रजिस्ट्रेशन मुफ्त में होता है। कुछ साइट्स पर किसी से सम्पर्क करना होता है, तो उसके लिए राशि का भुगतान करना होता है।

इस समय देश भर का खलनायक आफताब ने डेटिंग एप्लिकेशन बम्बल के माध्यम से अन्य युवतियों के सम्पर्क में था।  जांच में पता चला है कि जब उसके घर के फ्रिज में श्रद्धा का शव टुकड़ों में रखा था, तब भी वह बम्बल के माध्यम से सम्पर्क में आई युवतियां उससे मिलने आती थीं। आफताब को डेटिंग एप्लिकेशन का नशा था। नितांत अपरिचित लोगों के साथ हर तरह की सुविधाएं देने का प्रलोभन देने वाली ये डेटिंग साइट्स में कोई अपना मूल परिचय देना नहीं चाहता। ऐसी साइट्स यह भी खुलासा करती हैं कि हम अनजान लोगों के साथ अंतरंग संबंधों को प्रोत्साहन नहीं देते। अनजाने लोगों से सम्पर्क करने के पहले इनसे सावधान रहें, इस तरह की बातें शुरुआत में एग्रीमेंट में कही जाती हे। ये साइट्स अलग से चेट रूम की व्यवस्था भी कर देती है।

डेटिंग, यह हमारी भारतीय संस्कृति का विषय नही है। कामचलाऊ फ्रेंडिशिप, वन-साइट स्टैंड आदि विकृति फैलाने वाली प्रवृत्तियां हैं। लोग मेट्रोमोनियल साइट्स पर भी अपनी फर्जी तस्वीर और जानकारी देकर लोगों को ठगने का काम कर रहे हैं। शुरुआत में यह माना जा रहा था कि लोग अपनी जिज्ञासओं को शांत करने के लिए ही इस तरह की साइट्स में जाते हैं। परंतु हकीकत यह है कि अधिकांश लोग ऑनलाइन पार्टनर की तलाश करते हैं। जब दो अनजाने इस साइट में मिलते हैं, तो दोनों ही अपना परिचय नहीं देते। यहां तक कि नाम भी गलत बताते हैं। जबकि यह साइट्स कागजों पर अपना उद्देश्य यह बताती हैं कि यह साइट्स लोगों के स्वस्थ मनोरंजन के लिए है। इसके अलावा यह साइट्स प्रेम संबंध या विवाह के बाद होने वाले तनावों को दूर करने में सहायता करने का दावा भी करती है। किंतु यह सब एक औपचारिकता ही है। आजकल ये साइट्स अपनी कुंठित भावनाओं को व्यक्त करने और पार्टनर तलाशने का साधन बन गए हैं।  डेटिंग हर समय सभी के लिए खराब होती है, यह कहना गलत होगा। परंतु डेटिंग ऐप को डिजाइन करने वाले यह अच्छी तरह से जानते हैं कि इस साइट पर आने वाले आखिर चाहते क्या हैं? इसके लिए वे तगड़ा चार्ज भी करते हैं, जिसका भुगतान करने के लिए साइट पर आने वाले खुशी-खुशी करते हैं। डेटिंग ऐप काफी समझदारी से तैयार की जाती हैं। वे लोगों की चाहतों को भी अच्छी तरह से समझती हैं। सर्च के आंकड़े बताते हैं कि इस साइट में आने वाले बुजुर्ग युवतियों की तलाश करते हैं और युवा विधवा महिलाओं या बड़ी उम्र की सिंगल रहने वाली महिलाओं की तलाश करते हैं।

एक मान्यता यह है कि लाइफ पार्टनर को तलाशने के लिए डेटिंग साइट्स बहुत अच्छा माध्यम है। मेट्रोमोनियल साइट के बजाए यहां खुले विचारों के लोग अधिक आते हैं। विधुर लोगों के लिए यह दूसरी बार जीवनसाथी चुनने का अवसर देती हैं ये साइट्स। इसके बाद भी इसका दूसरा पहलू यही है कि यह लोगों की कुत्सित भावनाओं को उभारकर उसे प्रोत्साहन देने का काम भी करती है। अनजाने लोगों के साथ अंतरंग बातचीत करने में इंसान खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करता है। इससे बात करते हुए वह अपनी मानसिक विकृति को भी सामने लाकर संतुष्ट होता है। कई बार इस तरह की साइट से अच्छी मित्रता भी हो जाती है, पर ऐसा कम ही हो पाता है। कुल मिलाकर ये साइट लोगों के भीतर की उठने वाली कुत्सित भावनाओं की तरंगों को शांत करने का काम करती हैं।

नेटफ्लिक्स में एक डाक्यूमेंट्री 'स्वींडलर' है, जिसमें ऑनलाइन डेटिंग का स्याह पहलू दिखाया गया है। इसके खतरनाक पहलू पर भी बात रखी गई है। आफताब जैसे लोग डेटिंग ऐप का लाभ उठाकर अपने भीतर के गंदे विचारों को अंजाम देते हैं। इसके लिए हमें सचेत होना होगा। देश में ऐसी साइट्स पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। लोगों का ध्यान कम से कम इस ओर जाए, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। इस समय देश में एक ऐसे माहौल की जरूरत है, जिसमें इंसान अकेलपन में इस तरह की साइट से बचे। उस पर बुरे विचार हावी न हों। हर कोई उदार हो, किसी की भी भलाई करने में कोई पीछे न रहे। ऐसा तब संभव है, जब इंसान ही इंसान के भीतर के इंसान की पहचान कर ले।

डॉ. महेश परिमल 


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