सोमवार, 20 फ़रवरी 2017
बाल कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
कविता का अंश…
चूहे ने यह कहा कि चुहिया छाता और छड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है वही सभी मिल खाना,
खबरदार तुम लोग कभी बिल के बाहर मत आ जाना।
बिल्ली एक बड़ी पाजी है रहती घात लगाए,
न जाने कब किसे दबोचे किसको चट कर जाए।
सो जाओ सब लोग लगाकर दरवाजे पर किल्ली,
आजादी का जश्न देखने मैं जा रहा हूँ दिल्ली।
दिल्ली में देखूँगा आजादी का नया जमाना,
लाल किले पर खूब तिरंगे झंडे का लहराना।
अब न रहे अँग्रेज़ देश पर काबू है अब अपना,
पहले जहाँ लाट साहब थे, राष्ट्रपित है अपना।
घूमूँगा दिन रात करूँगा बातें नहीं किसी से,
हाँ फुरसत जो मिली, मिलूँगा मैं प्रधानमंत्री से।
गांधी युग में कौन उड़ाए चूहों की अब खिल्ली,
आजादी का जश्न देखने मैं जा रहा हूँ दिल्ली।
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
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बाल कविता

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