बुधवार, 8 फ़रवरी 2017
कुछ कविताएँ - विनोद दवे
कविता का अंश...टेसू...
टेसू
पलाश के पुष्प ने,
अपने रंग से,
विपिन के ओर छोर पर,
आग लिख दी है।
फाग जब गाये जाएँगे,
होली के उत्तेजक गीतों में,
सुमन ये टेसू के,
अपना मादक रंग घोल देंगे।
भाँग पीये भंगेड़ी सा,
ये मौसम,
कहीं इन दहकते पुष्पों में,
गंध न घोल दे!
इसी चिंता में वृक्ष ने,
अपनी भुजाएँ फैला दी हैं।
इस रंग पंचमी को,
प्रिया के होंठों से सुर्ख इस सुमन को,
ढ़लते हुए सूरज की लाली सा,
कोई नाम तो दे दो।
टेसू तो विचित्र सा प्रतीत होता है
है न!
ऐसी ही अन्य भावपूर्ण कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए....
davevinod14@gmail.com
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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