शनिवार, 6 अगस्त 2016
बाल कविता - 1 - दामोदर अग्रवाल
कविता का अंश... घेर चाँद को चाँदी जैसे, तारे निकले हैं,
आज इकट्ठे ही सारे के सारे निकले हैं!
नीला-नीला आसमान का
महल बनाया है,
हर तारा है कमरा, उसको
खूब सजाया है,
खुली-खुली-सी खिड़की है, गलियारे निकले हैं!
घेर चाँद को चाँदी जैसे, तारे निकले हैं।
जैसे परियाँ आ जाती हैं
कथा-कहानी में,
झाँक रहे तारे वैसे ही
नीचे पानी में,
कमल खिले हैं या जल से गुब्बारे निकले हैं!
घेर चाँद को चाँदी जैसे, तारे निकले हैं।
इस अधूरी कविता के साथ ही अन्य बाल कविताएँ सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
बाल कविता

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