बुधवार, 31 अगस्त 2016
विज्ञान कविता – बाइसिकल – सुधा अनुपम
कविता का अंश…
काठ के पहिए, काठ की घोड़ी,
चार पाँव पर तिरपट दौड़ी।
बैठने वाला धक्का दे,
साइकिल थी या दुलदुल घोड़ी।
हुई लुहार के दिल में खटपट,
शक्ल बदल दी उसने झटपट।
किए चार से दो पहिए कट,
ताकि दौड़े सड़क पर सरपट।
मैकमिलन लुहार की अक्कल,
दो पहियों से बनी बाइसिकल।
पीछे के पहिए पर पैडल,
जोड़ दिए थे लगा के एक्सल।
पहन पाँव में जूता, सैंडल,
चढ़ो, साइकिल, मारो पैडल।
धक्के की न रही जरूरत,
ऐ बाबू क्यों जाते पैदल?
मियां मैक थे बड़े खबीस,
दाँत दिखाते थे बत्तीस।
जहाँ जाएँ, साइकिल पर जाते,
लोग निपोरें चाहे खीस।
मैकमिलन का फैला जस,
न मोटर थी तब, न बस।
सत्तर मील चले साइकिल पर,
जिसमें लग गए घंटे दस।
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
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कविता,
दिव्य दृष्टि

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