बुधवार, 31 अगस्त 2016
विज्ञान कविता – बाइसिकल – सुधा अनुपम
कविता का अंश…
काठ के पहिए, काठ की घोड़ी,
चार पाँव पर तिरपट दौड़ी।
बैठने वाला धक्का दे,
साइकिल थी या दुलदुल घोड़ी।
हुई लुहार के दिल में खटपट,
शक्ल बदल दी उसने झटपट।
किए चार से दो पहिए कट,
ताकि दौड़े सड़क पर सरपट।
मैकमिलन लुहार की अक्कल,
दो पहियों से बनी बाइसिकल।
पीछे के पहिए पर पैडल,
जोड़ दिए थे लगा के एक्सल।
पहन पाँव में जूता, सैंडल,
चढ़ो, साइकिल, मारो पैडल।
धक्के की न रही जरूरत,
ऐ बाबू क्यों जाते पैदल?
मियां मैक थे बड़े खबीस,
दाँत दिखाते थे बत्तीस।
जहाँ जाएँ, साइकिल पर जाते,
लोग निपोरें चाहे खीस।
मैकमिलन का फैला जस,
न मोटर थी तब, न बस।
सत्तर मील चले साइकिल पर,
जिसमें लग गए घंटे दस।
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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