सोमवार, 1 अगस्त 2016
कहानी - बबूल के काँटे - भूपेन्द्र कुमार दवे
कहानी का अंश... दादी के पान का पसारा देखकर बड़ी खुशी होती --- हम दौड़कर दादी के पास पहुँच जाते। हमें मालूम है कि बच्चों से घिरी दादी बड़े करीने से पान लगायेगी। धीरे धीरे --- चूना लगाकर, पान नाक तक उठाकर देखेगी कि ठीक से लगा है कि नहीं। फिर बच्चों को दिखायेगी। एक के बाद एक हम सब बच्चे देखेंगे, सिर हिला देंगे। कत्था भी इसी लहजे से लगेगा। सुपारी धीरे धीरे कटेगी। लो, अब पान मुँह में गया और हम हाथ बाँधकर सधकर बैठ गये। दादी अब किस्सा सुनायेगी।
‘‘ बच्चों ....
‘‘ तुमने स्वर्ग देखा है?
‘‘ खैर! न देखा हो पर वह बगीचा अवश्य देखा होगा।’’
‘ कौन सा?’ यह प्रश्न पूछकर दखल देने की हिम्मत हम किसी में नहीं। वरना हमें मालूम है कि दादी पान गुटक जावेगी और किस्सा फिर एक और पान के लग जाने तक चुपचाप बैठा रहेगा।
‘‘ स्वर्ग के दरवाजे से बाहर आते ही एक बगीचा दिखाई देता है। इसके सुन्दर फल-फूल विविध रंगों की फुलवारी और मीठी ताजगी ली हुई महक सभी का मनमोह लेती है। तरह तरह के पक्षी और रंग-बिरंगी तितलियों से सजा यह बगीचा बड़ा प्यारा लगता है। यहीं पर नन्हें नन्हें बच्चे फरिस्तों के साथ खेलते, परियों के संग नाचते-गाते और यहीं के फल-फूल खाकर मस्ती करते हैं। स्वर्ग और नरक दोनों ओर से आते-जाते लोगों को इसी बगीचे से होकर गुजरना पड़ता है। इस बगीचे में बुद्धि के पेड़-पौधे और ज्ञान के फल-फूल लगते हैं। इसलिये सभी इसे ज्ञानोद्यान कहते हैं।
‘‘ जानते हो एक बार क्या हुआ?’’
हम सब को मालूम है जहाँ परी और नन्हें बच्चे होंगे, वहाँ दादी राक्षस जरूर बुलायेगी।
‘‘ एक राक्षस था। उसने इस ज्ञानोद्यान को हथिया लिया। उसने एक बड़ी लकड़ी पर लिखा --- जानते हो क्या लिखा?’’
इतना कह दादी ने चूने की डिबिया से चूना ऊँगली पर लेकर लिखा --- ‘राक्षस से सावधान’।
‘‘ अब राक्षस ने इस तख्ती को बगीचे के दरवाजे पर ठोक दिया। फिर भी स्वर्ग-नरक में आने-जाने सभी लोग इस तख्ती की परवाह किये बगैर इस बगीचे में कुछ देर ठहर कर मन बहला लिया करते थे। राक्षस ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा और छेड़ा भी नहीं। बस वह अधिकांश समय सोता रहता। बच्चे आपस में बातें करते और पूछते, ‘यह राक्षस यहाँ कैसे आया?’ ’’
इतना किस्सा बताकर दादी रुक गई। ‘सोचो भला,’ वह बोली। पर हम बच्चे क्या सोचते, जब दादी ही कुछ सोच रही होती।
इस अधूरी कहानी को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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