सोमवार, 8 अगस्त 2016
ज़िंदगी और बदलाव - हरवंश दुआ
लेख का अंश… बदलाव शाश्वत है। कुदरत हर पल बदल रही है। दुनिया बदल रही है। बदलाव ही विकास का एकमात्र रास्ता है। हम सभी बदलते रहना चाहते हैं। कुछ नया करना चाहते हैं। कुछ नया सीखना चाहते हैं। लेकिन हमारे अंदर एक ऐसी ताकत है, जो हमें बदलने से रोकती है। इस शक्ति का स्रोत है हमारा अवचेतन मन। दरअसल हमारे अंदर दो तरह की शक्तियाँ एक साथ काम करती है। एक शक्ति हमें प्रेरित करती है कि कुछ नया सोचो, कुछ नया करो। हमें अपनी क्षमताओं को फैलाने में प्रोत्साहित करती है। दूसरी शक्ति है जो हमें पीछे खींचती है और सुरक्षा के भँवर में उलझाए रखना चाहती है। जब भी हमें किसी नए प्रोजेक्ट पर काम करना हो, अनजान लोगों के बीच स्टेज पर अपनी बात कहनी हो या अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी अनजान शहर का रूख अपनाना हो, हमारे अंदर खतरे का एक झंडा उठ खड़ा होता है। अवचेतन मन हमारे विश्वास को कुचलने की कोशिश करता है। फलस्वरूप हम द्वंद्व में पड़ जाते हैं और अपनी योजनाओं को माकूल समय के इंतजार में खड़ा कर देते हैं। यही वजह है कि हमारी क्रिएटिव क्षमताएँ सुप्तावस्था में चली जाती है और हम जिंदगी के नए अनुभवों व रोमांच से वंचित रह जाते हैं।
इस अधूरे लेख को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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