मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017
बाल कविता – सूरज क्या सिखलाता है
कविता का अंश…
माँ, यह मुझे बता दो, सूरज नित्य कहाँ जाता है?
क्यों होते ही प्रात: पुन: नभ पथ पर आ जाता है?
बेटा, दिन भर चलते-चलते जब दिनकर थक जाता है,
करता तब विश्राम, सवेरे आता वह सिखलाता –
करो शक्ति भर काम कि जब तक, मैं नभ में चलता हूँ।
सो जाओ चुपचाप रात में जैसा मैं करता हूँ,
किन्तु प्रात: होते ही जग जाओ, मत देर लगाओ।
नित्य क्रिया से निपट काम में अपने तुम लग जाओ।
माँ, दिनकर-सा ही जब डटकर मैं भी काम करूँगा,
क्या वैसा ही ऊपर उठकर मैं भी चमक सकूँगा?
बेटा, जब तुम काम करोगे, तन-मन, हृदय लगाकर,
अपने में विश्वास जमाकर,
भय, आलस्य भगाकर,
यश पाओगे, सुख पाओगे,
विजयी कहलाओगे।
चमक उठोगे तब तो तुम भी
निश्चय दिनकर-सा ही,
तुम्हें देखकर राह पाएँगे, भ
भूले-भटके राही।
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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