मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

बाल कविता – सूरज क्या सिखलाता है

कविता का अंश… माँ, यह मुझे बता दो, सूरज नित्य कहाँ जाता है? क्यों होते ही प्रात: पुन: नभ पथ पर आ जाता है? बेटा, दिन भर चलते-चलते जब दिनकर थक जाता है, करता तब विश्राम, सवेरे आता वह सिखलाता – करो शक्ति भर काम कि जब तक, मैं नभ में चलता हूँ। सो जाओ चुपचाप रात में जैसा मैं करता हूँ, किन्तु प्रात: होते ही जग जाओ, मत देर लगाओ। नित्य क्रिया से निपट काम में अपने तुम लग जाओ। माँ, दिनकर-सा ही जब डटकर मैं भी काम करूँगा, क्या वैसा ही ऊपर उठकर मैं भी चमक सकूँगा? बेटा, जब तुम काम करोगे, तन-मन, हृदय लगाकर, अपने में विश्वास जमाकर, भय, आलस्य भगाकर, यश पाओगे, सुख पाओगे, विजयी कहलाओगे। चमक उठोगे तब तो तुम भी निश्चय दिनकर-सा ही, तुम्हें देखकर राह पाएँगे, भ भूले-भटके राही। इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…

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