बुधवार, 15 फ़रवरी 2017
कविता – मेरी कोई जायदाद नहीं – अमरनाथ
कविता का अंश…
तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,
चिडिया बना रही थी घोंसला रोशनदान में।
पल भर में आती पल भर में जाती थी वो,
छोटे-छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।
बना रही थी वो अपना एक घर न्यारा,
कोई तिनका था ईंट उसकी, कोई गारा।
कड़ी मेहनत से घर जब उसका बन गया,
आए खुशी के आँसू और सीना तन गया।
कुछ दिन बाद मौसम बदला और हवा के झौंके आए,
नन्हे से प्यारे-प्यारे दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।
पाल-पोसकर कर रही थी चिडिया बड़ा उन्हें,
पंख निकल रहे थे दोनों के, पैरों पर करती थी खड़ा उन्हें।
इच्छुक है हर इंसान कोई जमीन कोई आसमान के लिए,
कोशिश थी जारी उन दोनों की एक उँची उड़ान के लिए।
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
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कविता,
दिव्य दृष्टि

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