बुधवार, 20 जुलाई 2022

तंगहाली में दिन काटता हर्षद मेहता का परिवार

 



बदहाल हर्षद मेहता का परिवार कहते हैं कि चढ़ते सूरज को हर कोई सलाम करता है। आज जिसके पास धन-दौलत और प्रसिद्धि है, उसके साथ हजारों की भीड़ है। एक समय ऐसा भी था, जब बिगबुल के नाम से प्रसिद्ध हर्षद मेहता के साथ हजारों लोग थे। शेयर बाजार में उसकी तूती बोलती थी। मंत्री से लेकर संत्री तक उसके गुणगान करते थे। उसके साथ अनेक चाटुकार भी थे। पर समय के साथ-साथ सब कुछ बदल गया। आज हर्षद मेहता का परिवार तंगहाली और बदहाली में जी रहा है। पिछले दो दशक से उनका परिवार बिना बैंक एकाउंट के जी रहा है। हाल ही उनकी पत्नी ज्योति मेहता ने एक वेबसाइट शुरू की है, जिसमें उसने बताया कि हर्षद मेहता को एक घपलेबाज के रूप में प्रचारित किया गया है। उन पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। उन पर फिल्म और वेबसीरीज भी बन गई। उनके नाम पर लाखों रुपए भी कमा लिए गए। पर किसी ने मेहता परिवार की सुध नहीं ली। ज्योति मेहता ने यहां तक कहा है कि हर्षद मेहता को जब जेल में अटैक आया, तो उन्हें समुचित इलाज नहीं मिला। हमने कई बार इस दिशा में सरकार का ध्यान आकृष्ट किया, पर न तो उनकी मौत की जांच हुई, न ही उनके शव का पोस्टमार्टम किया गया। शेयर बाजार से किस तरह कमाई की जा सकती है, इसे सिखाया हर्षद मेहता ने। एक समय उन्हें बिगबुल की रूप में पहचाना जाता है, आज उसे घपलेबाज बताया जा रहा है। आज भी जब कभी शेयर बाजार औंधे मुंह गिरता है, तो लोग हर्षद मेहता को ही याद करते हैं। उसके शाही ठाठ के खूब चर्चे थे। आज उनके परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है। देश में आर्थिक उदारीकरण के दौर में सन 1990 के दशक में अरबों रुपयों का आर्थिक घोटाला प्रकाश में आया, तो उसके सूत्रधार के रूप में हर्षद मेहता का नाम सामने आया। बैंकों की असावधानी उसकी कमजोरी का पूरा लाभ उठाते हुए हर्षद मेहता ने बैंक के रुपए को बाजार में चलाया। जब यह घपला सामने आया, तब शेयर बाजार बुरी तरह से औंधे मुंह गिरा। इसका असर यह हुआ कि छोटे निवेशकर्ताओं की हालत ही खराब हो गई। इसके लिए हर्षद मेहता को दोषी माना गया। इसके बाद हर्षद मेहता अतीत का हिस्सा हो गए। बीस साल बाद उनकी पत्नी ज्योति ने एक वेबसाइट शुरू की। जिसमें उसने पति हर्षद मेहता की छवि को जानबूझकर खराब करने का आरोप लगाया। वेबसाइट में ज्योति ने लिखा है कि जब से हर्षद मेहता की मौत हुई है, तब से हमारी जिंदगी को मानों लकवा मार गया है। वेबसाइट में सुचेता दलाल का भी जिक्र किया गया है। सुचेता ने ऐसी तकनीक अपनाई थी कि उसका नाम कहीं भी न आए आए, तो घोटाले का पूरा ठीकरा हर्षद मेहता के सर पर फोड़ा जाए। वेबसाइट में ज्योति मेहता ने लिखा है कि मेरे पति हर्षद मेहता को 47 की उम्र में हार्ट अटैक से मौत हो गई। उन्हें पहली बार जब अटैक आया, तब डॉक्टर ने उन्हें सार्बीट्रेट के सिवाय और कोई दवा नहीं दी थी। उन्हें हॉस्पिटल में भी शिफ्ट नहीं किया गया। चार घंटे बाद जब उन्हें दूसरा अटैक आया, तब उन्हें थाणे के हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। जब उन्हें थाणे के हॉस्पिटल में लाया गया, तब उन्हें उनके कमरे तक चलाते हुए ले जाया गया। उन्हें व्हील चेयर मुहैया नहीं कराई गई। जब वे बुरी तरह से थक गए, तब उन्हें व्हील चेर पर बिठाया गया। वहीं उनकी मौत हो गई। तब हमने इसकी जांच कराने और शव का पोस्टमार्टम करने की मांग की। पर हमारी किसी ने नहीं सुनी। उनकी मौत की जानकारी उसी जेल में उसके बाजू वाली कमरे में कैद उनके भाई को भी नहीं दी गई। अब मेहता परिवार यह कहता है कि 1993 से हम टैक्स टेरिज्म के शिकार बने हैं। हमें बलि का बकरा बनाया गया है। जांच के दौरान हमने सरकार और जांच एजेंसी को पूरा सहयोग दिया है। इसके बाद भी हमें बदनाम किया गया है। अदालत द्वारा हर्षद मेहता को अपराधी साबित करने के पहले मीडिया ने उन्हें अपराधी घोषित कर दिया। उन्हें स्केम मास्टर के रूप में प्रचारित किया गया। उनकी मौत के बाद उन पर क्रिमिनल केस नहीं चलाना संभव नहीं था, उन पर कोई आरोप भी सिद्ध नहीं हो पाए थे। इसके बाद भी उन पर केंद्रित वेबसीरीज बनाई गई। जिसका टाइटल ही गलत है। हर्षद मेहता की पत्नी ज्योति ने 20 साल बाद मुंह खोला है। तब तक हर्षद मेहता के नाम पर बहुत कुछ बिक गया है। देश को आर्थिक रूप खोखला करने वाले बहुत से लोग हुए हैं। पर किसी के साथ हर्षद मेहता जैसा व्यवहार नहीं हुआ है। देश को बहुत से लोगों ने अपने-अपने तरीके से नुकसान पहुंचाया है। पर आज वे सभी सम्मानपूर्वक जीवन जी रहे हैं। पर हर्षद मेहता का परिवार आज किस हालत में है, इसे कोई जानना नहीं चाहता। उनके नाम पर बनने वाली फिल्म और वेबसीरीज को सभी ने सराहा, पर मूल पात्र के परिवार की हालत कैसेी है, यह जानने की फुरसत किसी को नहीं है। देश में एक से एक भ्रष्ट लोग हैं, जिसमें अधिकांश राजनीति में हैं, पर सभी बेदाग माने जाते हैं। जिसने बैंकों की कमजोरी का फायदा उठाकर उसकी राशि से अपना बिजनेस बढ़ाया, आज उसका परिवार तंगहाली और बदहाली में जी रहा है। इसे क्या कहा जाए? डॉ. महेश परिमल

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

व्यक्तित्व में छिपा आभामंडल

 



12 जुलाई 2022 को जनसत्ता में प्रकाशित


11 जुलाई 2022 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित



व्यक्तित्व दर्शाता है आभामंडल

आपने कभी ध्यान दिया कि कोई व्यक्ति हमें बहुत अच्छा लगता है। कोई बिलकुल भी नहीं सुहाता। किसी के पास बैठना ही बहुत भला लगता है, तो किसी के चेहरा ही हमारे भीतर वितृष्णा जगा देता है। कभी किसी की आवाज ही सुन लो, तो मन को शांति मिलती है। कभी अचानक ही कोई याद आ जाए, तो मन में बुरे विचार आने लगते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? यह जानने की कोशिश की आपने? नहीं ना? इसका सीधा-सा संबंध है, सामने वाले की मानसिकता पर। अगर हमें कोई अच्छा लगता है, तो इसका आशय यही है कि उसके शरीर से निकलने वाली ऊर्जा हमें कुछ नया करने के लिए प्रेरित कर रही है। कुछ लोग हमें बिलकुल भी नहीं भाते, तो इसका आशय यही है कि उसके भीतर की पूरी नकारात्मकता हमारे भीतर प्रवेश करने लगती है।

मनुष्य का चेहरा उसके व्यक्तित्व का आईना होता है। उसके चेहरे के पीछे होता है आभामंडल। यह आभामंडल व्यक्ति का लेखा--जोखा होता है। इसे हम बैंलेंस सीट भी कह सकते हैं। व्यक्ति के प्रत्येक अच्छे कार्य से आभामंडल का निर्माण होता है। इसके विपरीत प्रत्येक बुरे कार्य से वह कमजोर होता है। जो लोग निरंतर प्रेम, दया और स्नेह भाव से दुनिया को चालते हैं, उनके आभामंडल की ज्योति लागतार बढ़ती जाती है। ऐसे लोगों से मिलकर हमें असीम शांति की प्राप्ति होती है। बुरे आचारण वाले व्यक्ति का आभामंडल होता तो है, पर उसमें किसी भी तरह का आकर्षण नहीं होता।  हमने अपने देवी-देवताओं की तस्वीरें देखीं होंगी। जिसमें उसके सिर के पीछे एक चमकता हुआ गोला दिखाई देता है। इसे हम आभामंडल कहते हैं। हमारे आराध्यों के साथ ही ऐसा कई महापुरुषों के साथ भी देखा गया है। गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक की तस्वीर देख लो, तो वे हमें आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानों उनका एक हाथ हमें आशीर्वाद दे रहा हो। वास्तव में यह आभामंडल ही है, जो हमें सदैव कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है। यह आभामंडल केवल देवी-देवताओं, संतों में ही नहीं, बल हम सबके साथ होता है। देवी-देवताओं से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं, इसलिए उनका आभामंडल हमें दिखाई देता है, पर जिन व्यक्तियों का सान्निध्य पाकर हम निहाल हो जाते हैं, निश्चित रूप से उनका आभामंडल हमें प्रेरित करता है, अच्छे कार्यों के लिए। यह कहा गया है कि जिस व्यक्ति का आभामंडल जितना तेजस्वी होता है, वह व्यक्ति उतना ही समर्थ माना जाता है। 

ज़रा अपने बचपन की ओर लौटे, जब हमें सात रंगों के बारे में समझाया जाता था। इसका हमें एक सूत्रशब्द रटाया जाता था। "बैनीआहपीनाला" इसका आशय यह हुआ कि बैंगनी, नीला, आसमानी, पीला, नारंगी और लाल। इस सूत्र को यदि विस्तार से देखें, तो यह सीधे अध्यात्म से जुड़ जाता है। अध्यात्म के उपासकों के अनुसार हम सभी के शरीर में सात चक्र स्थित हैं। इस सातों चक्रों के साथ ये सात रंग सम्बद्ध हैं। इसीलिए सच्चे साधु-संतों के सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति एक प्रकार की मानसिक शांति प्राप्त करता है। इसकी वजह यही है कि संतों की ऊर्जा इतनी सघन होती है कि वे यदि केवल आशीर्वाद की मुद्रा में अपना हाथ सिर पर रख दें, तो हमारे सारी पीड़ाओं का अंत हो जाता है। 

सवाल यह उठता है कि व्यक्ति अपनी आभामंडल का विस्तार किस तरह से कर सकता है? तो इसका सीधा-सा उपाय है, ध्यान, सकारात्मक विचार, सत्साहित्य का अध्ययन, सात्विक आहार और निर्व्यसन से हम अपने आभामंडल को शक्तिशाली बना सकते हैं। एक बार यह आभा सशक्त हो जाए, तो उसके बाद जीवन के हर क्षेत्र में इसका प्रभाव बढ़ता है। वह जिस क्षेत्र में हो, वहां उपलब्धियां हासिल करता रहता है। मेडिकल साइंस में होने वाले शोध से यह पता चला है कि इस आभामंडल के माध्यम से भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है। अध्यात्म में रचे-बसे व्यक्तियों के अनुसार हर व्यक्ति के आसपास चार से आठ इंच तक की आभा फैली होती है। मस्तक के नीचे ब्रह्मरंध्र में सहस्रार चक्र का रंग बैंगनी होता है। तो सबसे नीचे जननांगों के पास मूलाधार चक्र का रंग लाल होता है। हर आभा के साथ गूढ़ अर्थ जुड़ा है। उदाहरण के लिए संतों या देवी-देवताओं के आभामंडल का रंग आसमानी होता है। जिनकी आभा का रंग पीला होता है, ऐसे लोगों में नेतृत्व क्षमता होती है। नारंगी रंग के आभामंडल वाले लोग संवेदनशील होते हैं। लंबवत आकार वाली आभा में एक दरार दिखाई देती है। यह आभा खंडित होती है। इस भविष्य मउसे होने वाली बीमारी का जानकारी मिलती है। हाल ही में एक दक्षिण भारतीय किशोरी के बारे में पता चला है, जो सामने वाले व्यक्ति की आभा को देख सकती है। यह उसके लिए प्रकृति से प्राप्त वरदान है। किशोरी यह बता सकती है कि सामने वाले व्यक्ति की आभा कैसी है। बहुत ही कम लोगों में यह क्षमता होती है। यदि इस शक्ति का उपयोग सकारात्मक रूप से हो, तो यह समाज के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है। बहरहाल किशोरी के माता-पिता अपनी बेटी की इस क्षमता का अधिक प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहते। उनका मानना है कि बेटी अभी केवल पढ़ाई करे, ताकि उसका भविष्य संवर सके।

समय के साथ--साथ आभामंडल में लगातार अभिवृद्धि होती रहती है। जो व्यक्ति जितना अधिक अतीत का हिस्सा होगा, उसका आभामंडल उतना ही सघन होता है। हमारी जिसमें असीम श्रद्धा होगी, तभी हम उनका आभामंडल देख पाएंगे। हृदय की शुद्धता का आभामंडल का सीधा संबंध है। यह धार्मिक व्यक्तियों पर अधिक लागू होता है। एक सघन आभामंडल वाले व्यक्ति के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का भी आभामंडल तैयार होता रहता है। वे भी धीरे--धीरे अपने क्षेत्र में विकास करते रहते है। कुल मिलाकर आशय यही है कि यदि हम अपने आसपास के व्यक्तियों पर एक दृष्टि डालें, तो हमें समझ में आ जाएगा कि किस व्यक्ति का आभामंडल कैसा है? फिर हम अपनी दिनचर्या पर ध्यान दें कि किसके करीब होने से हमें सब-कुछ अच्छा लगता है। ऐसे लोगों के बीच जाकर उनसे लगातार सम्पर्क करेंगे, तो हमें उनसे ऊर्जा मिलेगी। हम जीवन की चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से कर पाएंगे। जिनके पास बैठकर हमें कुछ भी अच्छा न लगता हो, जिनके पास जाने की इच्छा ही न हो, ऐसे लोगों से दूर ही रहा जाए। जब दो व्यक्ति मिलते हैं, तो वास्तव में उनकी आभाएं मिलती हैं। जो परस्पर प्रेरणा लेती हैं। दो आभामंडल का मिलन यह दर्शाता है कि शक्ति का प्रकाशपुंज अब और विस्तार पाकर शक्तिशाली हो रहा है।

डॉ. महेश परिमल



रविवार, 10 जुलाई 2022

कंगना-अमृता की 'हाय' से डूबी सरकार

 



लोकाेत्तर भोपाल में 9 जुलाई 2022 को प्रकाशित




लोकस्वर बिलासपुर में 8 जुलाई 2022 को प्रकाशित


दो महिलाओं की बद्दुआओं से डूबी महाराष्ट्र सरकार

हमें बचपन से यही सिखाया गया है कि कभी किसी की "हाय" मत लो। यह "हाय" उस समय तो असर नहीं दिखाती, पर कालांतर में उसका असर होता है, तो बहुत ही बुरा होता है। जब भी कोई किसी की मजबूरी का भरपूर फायदा उठाता है, तो वह दिल से उसे बद्दुआ देता है। बद्दुआ देने वाला जानता है कि उसकी बद्दुआ का असर अभी नहीं होगा, फिर भी वह उसके बारे में खूब बुरा बोलता है। उसकी इस हरकत पर कोई ध्यान नहीं देता। पर कुछ समय बाद जब वक्त बोलता है, तब उस मजबूर की बद्दुआ असर दिखाती है। उस समय लोग कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है। वह अपने होने का असर दिखा ही देता है। आखिर उस मजबूर की बद्दुआ ने अपना काम कर दिखाया।

हम सभी को याद होगी 9 सितम्बर 2020 की वह घटना, जब फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौट के कार्यालय पर बुलडोजर चला दिया गया था। तब कंगना ने उद्धव ठाकरे को संबोधित करते हुए कहा था कि आज मेरी ऑफिस टूटी है, कल तेरा शासन(घमंड) टूटेगा। उस समय किसने सोचा था कि कंगना की यह बात सच साबित हो जाएगी। तब तो हालात यह थे कि उद्धव ठाकरे के खिलाफ कुछ बोलना भी अपराध था। पूरी मायानगरी में अकेली कंगना ही वह मर्द थी, जिसने जो भी कहा, खुलकर कहा। अब हालात बदल गए हैं। उस समय उद्धव पर कांग्रेस और राजजीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार का वरदहस्त था। आज वहां इन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं है।

महाराष्ट्र के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जब सूरत पहुंचे थे, तब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की पत्नी अमृता फड़नवीस ने ट्विट किया था, जिसमें परोक्ष रूप से उसने लिखा था कि एक था कपटी राजा। अमृता ने यह ट्विट उस घटना को लेकर उद्धव ठाकरे पर कटाक्ष करते हुए किया था, ढाई साल पहले जब उनके पति एक बार फिर मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे ही थे, कि सब कुछ बदल गया। भारतीय राजनीति में सत्ता पलट की यह कोई पहली घटना नहीं है। हर राज्य में कोई एकनाथ शिंदे, एकाध ज्योतिरादित्य सिंधिया या सचिन पायलट होते ही हैं। इन सबके भीतर महत्वाकांक्षाओं का सागर उमड़ता रहता है। जो किसी ने किसी तरीके से बाहर आता है। वास्तव में उन्हें सत्ता का नशा होता है। वे मंत्री या मुख्यमंत्री पद के पीछे के ऐश्वर्यशाली जीवन को जीना चाहते हैं। उनकी यही चाहत उन्हें ऐसा करने को विवश करती है। दो महिलाओं की "हाय" ही है, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति को एक नई दिशा दी।

आज एकनाथ शिंदे भले ही यह कहते रहे कि उन्होंने हिंदुत्व को सामने रखकर बगावत की है। परंतु सभी जानते हैं कि उनका निशाना उद्धव ठाकरे ही थे। अनजाने में वे भी मुख्यमंत्री पद की लालसा रखते थे। जिसे उन्होंने भाजपा को साथ लेकर पूरा कर दिया। महाराष्ट्र की राजनीति की उपजाऊ जमीन पर शिदे ने अपने सपने को बोकर उसे साकार कर दिखाया। बाला साहब ठाकरे भले ही सक्रिय राजनीति में न हो, उन्होंने अपने जीवन में कोई राजनीतिक पद भी स्वीकार नहीं किया। पर अपने विशाल व्यक्तित्व के कारण उन्होंने माहौल ही ऐसा बनाया कि बड़े से बड़े नेता उनके घर पहुंचकर उन्हें प्रणाम करते थे।

सत्ता का हाथ से अचानक फिसल जाना बहुत ही विस्मयकारी होता है। नेताओं के लिए यह किसी हादसे से कम नहीं है। इसे बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे होंगे उद्धव ठाकरे और उनके मंत्री। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की भूमिका सुपर चीफ मिनिस्टर के रूप में होती रही है। कई लोगों ने उन्हें राजनीति का चाणक्य भी कहा है। किंतु इस बार हुई उथल-पुथल में उन्होंने एक दांव भी नहीं चला। सभी की नजर शरद पवार पर थी। पर उन्होंने अपनी तरफ से ऐसी एक भी कोशिश नहीं की, जिससे उद्धव ठाकरे की सरकार बच पाती। इधर उद्धव की सरकार डूबी, उधर शरद पावर की सुपर चीफ मिनिस्टर की भी नाव डूब गई।

अब शरद पवार कितना भी कह लें कि यह सरकार अधिक नहीं टिक पाएगी, महाराष्ट्रवासी मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार रहें, तो उनकी इस बात को कोई मानने वाला भी नहीं है। ये बात वे खुद को राजनीति में टिके रहने के लिए कह रहे हैं। सोमवार को जो कुछ हुआ, वह फड़नवीस के अनुसार ही हुआ। उद्धव सरकार में जो हैसियत शरद पवार की थी, अब वही हैसियत एकनाथ शिंदे सरकार में देवेंद्र फड़नवीस की होगी, इसमें कोई दो मत नहीं। इस तरह से देखा जाए, तो दो महिलाओं की "हाय" और सरकार में अपनों की ही उपेक्षा से उद्धव सरकार का पतन हो गया, जो नई सरकार बनी है, उसे अभी कई चुनौतियों का सामना करना है। यह विश्वास किया जा सकता है कि ये सरकार न तो अपनों की अनदेखी करेगी और न ही किसी की "हाय" लेगी।

डॉ. महेश परिमल


शनिवार, 2 जुलाई 2022

दबे पाँव आती महँगाई की पदचाप


लोकोत्तर में 2 जुलाई 2022 को प्रकाशित





 लोकस्वर में 2 जुलाई 2022 को प्रकाशित


दबे पांव आती महंगाई की पदचाप

रूठ गई बारिश, बढ़ी महंगाई की आशंका

जुलाई का महीना शुरू हो गया है, अभी तक देश के कई हिस्सों में बारिश का नामो-निशान नहीं है। कुछ राज्यों ने मानसून ने दस्तक दी, उसे भिगोया, पर बाद में न जाने कहां चला गया। महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में दलहन की बुवाई तक नहीं हुई है। ऐसे में महंगाई बढ़ेगी, यह तो तय है, साथ ही दलहन की फसल कम होने पर दलहन के भावों में और तेजी आएगी। यह सब ऋतुचक्र के बिगड़ने के कारण हुआ है। ऋतुचक्र लगातार टूट रहा है, इसे समझने को कोई तैयार नहीं है। पानी की बचत को लेकर सरकार के सारे दावे खोखले नजर आ रहे हैं। किसान आशाभरी दृष्टि से आकाश की ओर देखते हैं, फिर निराश हो जाते हैं। निराशा के इस अंधेरे में आशा की कोई एक हल्की-सी किरण भी दिखाई नहीं दे रही है। अब हम सब सुनने लगे हैं दबे पांव आती महंगाई की पदचाप।

बारिश के आने में हर साल देर होने लगी है। कुछ साल पहले तक जून में ही ठंडी हवाएं शुरू हो जाती थीं। दस जून तक बारिश सभी को भिगो देती थी। फिर यह तारीख 15 जून हो गई। धीरे-धीरे 30 जून तक बारिश के आसार नहीं दिखने लगे हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। मानसून कहीं अटक जाता है, तो कभी भटक जाता है। सब कुछ सामान्य रहा, तो कोई न कोई चक्रवात उसे ऐसी जगह पर ले जाता है, जहां से आना कुछ सप्ताह तक संभव नहीं हो पाता। इस तरह से आकाश से काले बादलों की आवाजाही बंद हो जाती है। लोग उमस से परेशान होने लगते हैं। किसान बुवाई की पूरी तैयारी में होते हैं। पर बारिश ऐसी रूठती है कि उसे मनाया भी नहीं जा सकता। इस हालत ने कई राज्यों को चिंतित कर दिया है, यदि इस बार बारिश ने जल्द ही नहीं भिगोया, तो संभव है हालात बेकाबू होने लगे।

अब बाजार में आवश्यक जिंसों के भाव बढ़ने लगे हैं। पिछले एक सप्ताह में अरहर की दाल के भाव में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। उड़द दाल में चार प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई है। 24 जून तक देश के 36 प्रतिशत हिस्से में दलहन की बुवाई हुई है। पिछले साल इन्हीं दिनों तक 55 प्रतिशत हिस्से में बुवाई हुई थी। दलहन का उत्पादन मध्य और उत्तर भारत में अधिक होता है। इन स्थानों में बारिश न होने के कारण दलहन के भावों में तेजी आना स्वाभाविक है। सरकारी बांध भी अब सूख चुके हैं। वे भी खेतों की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हुए हैं। ऋतु चक्र टूटने को लेकर विश्वव्यापी चिंताएं तो होती हैं, पर उसके कुछ अच्छे परिणाम सामने नहीं आते। 

इधर किसानों की आंखें तरस रही हैं, उधर असम में बाढ़ के हालात है। वहां के 17 जिलों में जलप्लावन की स्थिति है। इन हालात में देश की नदियों को जोड़ने वाली परियोजना की याद आती है। नदियों की आपस में जोड़ने का आइडिया अंगोजों के जमाने से चला आ रहा है। पहली बार इस पर 109 साल पहले 1919 में चर्चा हुई थी। स्वतंत्रता के बाद हुई राजनीतिक उथल-पुथल के कारण इस पर ध्यान नहीं दिया गया। इस समय इस विषय पर कभी-कभी चर्चा हो जाती है, पर उसके परिणाम सामने नहीं आते। एक महत्वाकांक्षी योजना किस तरह से हाशिए पर चली जाती है, यह इस योजना से जाना जा सकता है। अभी भी न तो सरकार और न ही नागरिकों ने बारिश के पानी के संग्रह की दिशा में गंभीरता से कुछ सोचा है।

हालात दिनों-दिन बेकाबू होते जा रहे हैं। लोग उमस से त्रस्त हैं। मानसून हर साल धोखा दे रहा है। अकेले मानसून में ही वह ताकत है, जो समृद्ध राष्ट्र के बजट को एक झटके में प्रभावित कर सकता है। देश के राज्यों की हालत भी इतनी अच्छी नहीं है कि देर से होने वाली बारिश के पहले कुछ विकल्प की तलाश कर ले। गलती हमारी ही है, हमने ही मानसून का स्वागत करना नहीं सीखा। उसके आने के संकेत से ही हमें बहुत कुछ जान लेना चाहिए। मानसून क्या चाहता हे, इसे जानने की कोशिश हमने कभी नहीं की। अब तो लगता है कि मानसून नहीं, बल्कि आज मानव ही भटक गया है। मानसून देर से ही सही आएगा ही, धरती को सराबोर कर देगा। पर यह जो मानव है, वह कभी भी अपने सही रास्ते पर अब नहीं आ सकता। इतना पापी हो गया है कि धरती भी उसे स्वीकार नहीं कर पा रही है। हमारे पूर्वजों का जो पराक्रम रहा, उसके बल पर हमने जीना सीखा, हमने हरे-भरे पेड़ पाए, झरने, नदियां, झील आदि प्रकृति के रूप में प्राप्त किया।आज हम भावी पीढ़ी को क्या दे रहे हैं, कांक्रीट के जंगल और हरियाली से बहुत दूर उजाड़ स्थान। देखा जाए, तो मानसून ही महंगाई का बड़ा स्वरूप है। ये भटककर महंगाई को और अधिक बढ़ाएगा। इसलिए हमें और भी अधिक महंगाई के लिए तैयार हो जाना चाहिए। इसलिए मानसून को मनाओ, महंगाई दूर भगाओ। मानसून तभी मानेगा, जब धरती का तापमान कम होगा। धरती का तापमान कम होगा, पेड़ो से पौधों से, हरियाली से और अच्छे इंसानों से। यदि आज धरती से ये सब देने का वादा करते हो, तो तैयार हो जाओ, एक खिलखिलाते मानसून का, हरियाली की चादर ओढ़े धरती का, साथ ही अच्छे इंसानों का स्वागत करने के लिए। 

डॉ. महेश परिमल



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