व्यक्तित्व दर्शाता है आभामंडल
आपने कभी ध्यान दिया कि कोई व्यक्ति हमें बहुत अच्छा लगता है। कोई बिलकुल भी नहीं सुहाता। किसी के पास बैठना ही बहुत भला लगता है, तो किसी के चेहरा ही हमारे भीतर वितृष्णा जगा देता है। कभी किसी की आवाज ही सुन लो, तो मन को शांति मिलती है। कभी अचानक ही कोई याद आ जाए, तो मन में बुरे विचार आने लगते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? यह जानने की कोशिश की आपने? नहीं ना? इसका सीधा-सा संबंध है, सामने वाले की मानसिकता पर। अगर हमें कोई अच्छा लगता है, तो इसका आशय यही है कि उसके शरीर से निकलने वाली ऊर्जा हमें कुछ नया करने के लिए प्रेरित कर रही है। कुछ लोग हमें बिलकुल भी नहीं भाते, तो इसका आशय यही है कि उसके भीतर की पूरी नकारात्मकता हमारे भीतर प्रवेश करने लगती है।
मनुष्य का चेहरा उसके व्यक्तित्व का आईना होता है। उसके चेहरे के पीछे होता है आभामंडल। यह आभामंडल व्यक्ति का लेखा--जोखा होता है। इसे हम बैंलेंस सीट भी कह सकते हैं। व्यक्ति के प्रत्येक अच्छे कार्य से आभामंडल का निर्माण होता है। इसके विपरीत प्रत्येक बुरे कार्य से वह कमजोर होता है। जो लोग निरंतर प्रेम, दया और स्नेह भाव से दुनिया को चालते हैं, उनके आभामंडल की ज्योति लागतार बढ़ती जाती है। ऐसे लोगों से मिलकर हमें असीम शांति की प्राप्ति होती है। बुरे आचारण वाले व्यक्ति का आभामंडल होता तो है, पर उसमें किसी भी तरह का आकर्षण नहीं होता। हमने अपने देवी-देवताओं की तस्वीरें देखीं होंगी। जिसमें उसके सिर के पीछे एक चमकता हुआ गोला दिखाई देता है। इसे हम आभामंडल कहते हैं। हमारे आराध्यों के साथ ही ऐसा कई महापुरुषों के साथ भी देखा गया है। गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक की तस्वीर देख लो, तो वे हमें आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानों उनका एक हाथ हमें आशीर्वाद दे रहा हो। वास्तव में यह आभामंडल ही है, जो हमें सदैव कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है। यह आभामंडल केवल देवी-देवताओं, संतों में ही नहीं, बल हम सबके साथ होता है। देवी-देवताओं से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं, इसलिए उनका आभामंडल हमें दिखाई देता है, पर जिन व्यक्तियों का सान्निध्य पाकर हम निहाल हो जाते हैं, निश्चित रूप से उनका आभामंडल हमें प्रेरित करता है, अच्छे कार्यों के लिए। यह कहा गया है कि जिस व्यक्ति का आभामंडल जितना तेजस्वी होता है, वह व्यक्ति उतना ही समर्थ माना जाता है।
ज़रा अपने बचपन की ओर लौटे, जब हमें सात रंगों के बारे में समझाया जाता था। इसका हमें एक सूत्रशब्द रटाया जाता था। "बैनीआहपीनाला" इसका आशय यह हुआ कि बैंगनी, नीला, आसमानी, पीला, नारंगी और लाल। इस सूत्र को यदि विस्तार से देखें, तो यह सीधे अध्यात्म से जुड़ जाता है। अध्यात्म के उपासकों के अनुसार हम सभी के शरीर में सात चक्र स्थित हैं। इस सातों चक्रों के साथ ये सात रंग सम्बद्ध हैं। इसीलिए सच्चे साधु-संतों के सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति एक प्रकार की मानसिक शांति प्राप्त करता है। इसकी वजह यही है कि संतों की ऊर्जा इतनी सघन होती है कि वे यदि केवल आशीर्वाद की मुद्रा में अपना हाथ सिर पर रख दें, तो हमारे सारी पीड़ाओं का अंत हो जाता है।
सवाल यह उठता है कि व्यक्ति अपनी आभामंडल का विस्तार किस तरह से कर सकता है? तो इसका सीधा-सा उपाय है, ध्यान, सकारात्मक विचार, सत्साहित्य का अध्ययन, सात्विक आहार और निर्व्यसन से हम अपने आभामंडल को शक्तिशाली बना सकते हैं। एक बार यह आभा सशक्त हो जाए, तो उसके बाद जीवन के हर क्षेत्र में इसका प्रभाव बढ़ता है। वह जिस क्षेत्र में हो, वहां उपलब्धियां हासिल करता रहता है। मेडिकल साइंस में होने वाले शोध से यह पता चला है कि इस आभामंडल के माध्यम से भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है। अध्यात्म में रचे-बसे व्यक्तियों के अनुसार हर व्यक्ति के आसपास चार से आठ इंच तक की आभा फैली होती है। मस्तक के नीचे ब्रह्मरंध्र में सहस्रार चक्र का रंग बैंगनी होता है। तो सबसे नीचे जननांगों के पास मूलाधार चक्र का रंग लाल होता है। हर आभा के साथ गूढ़ अर्थ जुड़ा है। उदाहरण के लिए संतों या देवी-देवताओं के आभामंडल का रंग आसमानी होता है। जिनकी आभा का रंग पीला होता है, ऐसे लोगों में नेतृत्व क्षमता होती है। नारंगी रंग के आभामंडल वाले लोग संवेदनशील होते हैं। लंबवत आकार वाली आभा में एक दरार दिखाई देती है। यह आभा खंडित होती है। इस भविष्य मउसे होने वाली बीमारी का जानकारी मिलती है। हाल ही में एक दक्षिण भारतीय किशोरी के बारे में पता चला है, जो सामने वाले व्यक्ति की आभा को देख सकती है। यह उसके लिए प्रकृति से प्राप्त वरदान है। किशोरी यह बता सकती है कि सामने वाले व्यक्ति की आभा कैसी है। बहुत ही कम लोगों में यह क्षमता होती है। यदि इस शक्ति का उपयोग सकारात्मक रूप से हो, तो यह समाज के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है। बहरहाल किशोरी के माता-पिता अपनी बेटी की इस क्षमता का अधिक प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहते। उनका मानना है कि बेटी अभी केवल पढ़ाई करे, ताकि उसका भविष्य संवर सके।
समय के साथ--साथ आभामंडल में लगातार अभिवृद्धि होती रहती है। जो व्यक्ति जितना अधिक अतीत का हिस्सा होगा, उसका आभामंडल उतना ही सघन होता है। हमारी जिसमें असीम श्रद्धा होगी, तभी हम उनका आभामंडल देख पाएंगे। हृदय की शुद्धता का आभामंडल का सीधा संबंध है। यह धार्मिक व्यक्तियों पर अधिक लागू होता है। एक सघन आभामंडल वाले व्यक्ति के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का भी आभामंडल तैयार होता रहता है। वे भी धीरे--धीरे अपने क्षेत्र में विकास करते रहते है। कुल मिलाकर आशय यही है कि यदि हम अपने आसपास के व्यक्तियों पर एक दृष्टि डालें, तो हमें समझ में आ जाएगा कि किस व्यक्ति का आभामंडल कैसा है? फिर हम अपनी दिनचर्या पर ध्यान दें कि किसके करीब होने से हमें सब-कुछ अच्छा लगता है। ऐसे लोगों के बीच जाकर उनसे लगातार सम्पर्क करेंगे, तो हमें उनसे ऊर्जा मिलेगी। हम जीवन की चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से कर पाएंगे। जिनके पास बैठकर हमें कुछ भी अच्छा न लगता हो, जिनके पास जाने की इच्छा ही न हो, ऐसे लोगों से दूर ही रहा जाए। जब दो व्यक्ति मिलते हैं, तो वास्तव में उनकी आभाएं मिलती हैं। जो परस्पर प्रेरणा लेती हैं। दो आभामंडल का मिलन यह दर्शाता है कि शक्ति का प्रकाशपुंज अब और विस्तार पाकर शक्तिशाली हो रहा है।
डॉ. महेश परिमल
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