शनिवार, 2 जुलाई 2022

दबे पाँव आती महँगाई की पदचाप


लोकोत्तर में 2 जुलाई 2022 को प्रकाशित





 लोकस्वर में 2 जुलाई 2022 को प्रकाशित


दबे पांव आती महंगाई की पदचाप

रूठ गई बारिश, बढ़ी महंगाई की आशंका

जुलाई का महीना शुरू हो गया है, अभी तक देश के कई हिस्सों में बारिश का नामो-निशान नहीं है। कुछ राज्यों ने मानसून ने दस्तक दी, उसे भिगोया, पर बाद में न जाने कहां चला गया। महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में दलहन की बुवाई तक नहीं हुई है। ऐसे में महंगाई बढ़ेगी, यह तो तय है, साथ ही दलहन की फसल कम होने पर दलहन के भावों में और तेजी आएगी। यह सब ऋतुचक्र के बिगड़ने के कारण हुआ है। ऋतुचक्र लगातार टूट रहा है, इसे समझने को कोई तैयार नहीं है। पानी की बचत को लेकर सरकार के सारे दावे खोखले नजर आ रहे हैं। किसान आशाभरी दृष्टि से आकाश की ओर देखते हैं, फिर निराश हो जाते हैं। निराशा के इस अंधेरे में आशा की कोई एक हल्की-सी किरण भी दिखाई नहीं दे रही है। अब हम सब सुनने लगे हैं दबे पांव आती महंगाई की पदचाप।

बारिश के आने में हर साल देर होने लगी है। कुछ साल पहले तक जून में ही ठंडी हवाएं शुरू हो जाती थीं। दस जून तक बारिश सभी को भिगो देती थी। फिर यह तारीख 15 जून हो गई। धीरे-धीरे 30 जून तक बारिश के आसार नहीं दिखने लगे हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। मानसून कहीं अटक जाता है, तो कभी भटक जाता है। सब कुछ सामान्य रहा, तो कोई न कोई चक्रवात उसे ऐसी जगह पर ले जाता है, जहां से आना कुछ सप्ताह तक संभव नहीं हो पाता। इस तरह से आकाश से काले बादलों की आवाजाही बंद हो जाती है। लोग उमस से परेशान होने लगते हैं। किसान बुवाई की पूरी तैयारी में होते हैं। पर बारिश ऐसी रूठती है कि उसे मनाया भी नहीं जा सकता। इस हालत ने कई राज्यों को चिंतित कर दिया है, यदि इस बार बारिश ने जल्द ही नहीं भिगोया, तो संभव है हालात बेकाबू होने लगे।

अब बाजार में आवश्यक जिंसों के भाव बढ़ने लगे हैं। पिछले एक सप्ताह में अरहर की दाल के भाव में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। उड़द दाल में चार प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई है। 24 जून तक देश के 36 प्रतिशत हिस्से में दलहन की बुवाई हुई है। पिछले साल इन्हीं दिनों तक 55 प्रतिशत हिस्से में बुवाई हुई थी। दलहन का उत्पादन मध्य और उत्तर भारत में अधिक होता है। इन स्थानों में बारिश न होने के कारण दलहन के भावों में तेजी आना स्वाभाविक है। सरकारी बांध भी अब सूख चुके हैं। वे भी खेतों की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हुए हैं। ऋतु चक्र टूटने को लेकर विश्वव्यापी चिंताएं तो होती हैं, पर उसके कुछ अच्छे परिणाम सामने नहीं आते। 

इधर किसानों की आंखें तरस रही हैं, उधर असम में बाढ़ के हालात है। वहां के 17 जिलों में जलप्लावन की स्थिति है। इन हालात में देश की नदियों को जोड़ने वाली परियोजना की याद आती है। नदियों की आपस में जोड़ने का आइडिया अंगोजों के जमाने से चला आ रहा है। पहली बार इस पर 109 साल पहले 1919 में चर्चा हुई थी। स्वतंत्रता के बाद हुई राजनीतिक उथल-पुथल के कारण इस पर ध्यान नहीं दिया गया। इस समय इस विषय पर कभी-कभी चर्चा हो जाती है, पर उसके परिणाम सामने नहीं आते। एक महत्वाकांक्षी योजना किस तरह से हाशिए पर चली जाती है, यह इस योजना से जाना जा सकता है। अभी भी न तो सरकार और न ही नागरिकों ने बारिश के पानी के संग्रह की दिशा में गंभीरता से कुछ सोचा है।

हालात दिनों-दिन बेकाबू होते जा रहे हैं। लोग उमस से त्रस्त हैं। मानसून हर साल धोखा दे रहा है। अकेले मानसून में ही वह ताकत है, जो समृद्ध राष्ट्र के बजट को एक झटके में प्रभावित कर सकता है। देश के राज्यों की हालत भी इतनी अच्छी नहीं है कि देर से होने वाली बारिश के पहले कुछ विकल्प की तलाश कर ले। गलती हमारी ही है, हमने ही मानसून का स्वागत करना नहीं सीखा। उसके आने के संकेत से ही हमें बहुत कुछ जान लेना चाहिए। मानसून क्या चाहता हे, इसे जानने की कोशिश हमने कभी नहीं की। अब तो लगता है कि मानसून नहीं, बल्कि आज मानव ही भटक गया है। मानसून देर से ही सही आएगा ही, धरती को सराबोर कर देगा। पर यह जो मानव है, वह कभी भी अपने सही रास्ते पर अब नहीं आ सकता। इतना पापी हो गया है कि धरती भी उसे स्वीकार नहीं कर पा रही है। हमारे पूर्वजों का जो पराक्रम रहा, उसके बल पर हमने जीना सीखा, हमने हरे-भरे पेड़ पाए, झरने, नदियां, झील आदि प्रकृति के रूप में प्राप्त किया।आज हम भावी पीढ़ी को क्या दे रहे हैं, कांक्रीट के जंगल और हरियाली से बहुत दूर उजाड़ स्थान। देखा जाए, तो मानसून ही महंगाई का बड़ा स्वरूप है। ये भटककर महंगाई को और अधिक बढ़ाएगा। इसलिए हमें और भी अधिक महंगाई के लिए तैयार हो जाना चाहिए। इसलिए मानसून को मनाओ, महंगाई दूर भगाओ। मानसून तभी मानेगा, जब धरती का तापमान कम होगा। धरती का तापमान कम होगा, पेड़ो से पौधों से, हरियाली से और अच्छे इंसानों से। यदि आज धरती से ये सब देने का वादा करते हो, तो तैयार हो जाओ, एक खिलखिलाते मानसून का, हरियाली की चादर ओढ़े धरती का, साथ ही अच्छे इंसानों का स्वागत करने के लिए। 

डॉ. महेश परिमल



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