शुक्रवार, 12 जून 2015

अमेरिका जैसा मैंने देखा-भाग 3

इस बार मैं अमेरिका की संस्कृति की चर्चा करुंगा। अमेरिकी खुशमिजाज हैं। अपने काम से काम रखते हैं। पर व्यावहारिक भी बहुत हैं। थैक्यू और सॉरी शब्द उनकी जबान में हमेशा रहता है। वे लोग काम के प्रति समर्पित हैं। दूसरों से कोई लेना-देना नहीं। कम से कम बातचीत और अधिक से अधिक काम में विश्वास रखते हैं। युवतियाँ कान में ईयर फोन लगाकर ही घर से बाहर निकलती हैं। जहाँ जगह मिली, वे नाचने-गाने में भी संकोच नहीं करते। पूरी मस्ती के साथ जीवन जीते हैं। वहाँ हर घर में कार है, सभी कार चलाते हैं। फिर भी युवक-युवतियाँ साइकिल पर कॉलेज जाने या फिर घूमने के लिए िनकलती हैं। शनिवार-रविवार को वहाँ बाइक और साइकिल किराए पर भी मिलती हैं। ताकि लोग छुट्‌टी के मजे ले सकें। कुछ और बातें बिंदुवार इस प्रकार हैं:-
सहेजने की प्रवृत्ति:-फिलाडेल्फिया में कई ऐसे संग्रहालय हैं, जहां अमूल्य निधि सँजोकर रखी हुई है। यहाँ एक ऐसा संग्रहालय है, जिसमें मेडिकल के क्षेत्र में होने वाले शोध के लिए एक फीट से लेकर साढ़े 6 फीट के कंकाल रखे हुए हैं। यही आइंस्टीन का मस्तिष्क भी रखा हुआ है। मेरे विचार से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को एक बार यहां अवश्य आना चाहिए।
शिक्षा के प्रति समर्पित:-गुड फ्राइडे को मैंने वहां बच्चों को स्कूल जाते हुए देखा। उस दिन मैं कहीं भी किसी तरह का जलसा होते नहीं देखा। बारहवीं तक सभी की शिक्षा मुफ्त है। स्कूलों में हर तरह के खेलों के लिए बड़े-बड़े मैदान हैं। एक स्कूल करीब चार-पाँच एकड़ जमीन पर होता है। अंदर बच्चों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था होती है। एक क्लास में 20 से अधिक बच्चे नहीं होते। बच्चे की एक-एक हरकत पर कैमरे से निगरानी होती है। ताकि यह पता चल सके कि बच्चे का दिलचस्पी किस काम पर अधिक है। लोग कानून से बहुत डरते हैं। वहाँ व्यक्ति कानून से नीचे है। कानून को हाथ में लेने से हर कोई डरता है। सभी देश के नियम-कायदों की इज्जत करते हैं। हमारे यहां जिस तरह से यातायात के नियमों को तोड़ना अपनी शान समझते हैं, वहाँ ऐसा नहीं है। जो कानून तोड़ेगा, उसे सजा भुगतनी ही है। पूरे अमेरिका में व्यक्ति कहीं भी हो, अपनी पहचान नहीं छिपा सकता। आधार कार्ड की तरह एक कार्ड होता है, जो सभी सरकारी काम में उपयोग में लाया जाता है। आपके तमाम कागजात में उस नम्बर का जिक्र होता है। उस नम्बर के आधार पर कुछ ही सेंकेंड मं आपको ट्रेस किया जा सकता है।
खुशमिजाज- वहां के लोग खुशमिजाज हैं। अपने काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित। अपरिचितों से न के बराबर बातचीत करते हैं। पर उन्हें सम्मान दो, तो वह मुस्करा धन्यवाद कहना नहीं भूलते। बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। जहाँ कहीं भी छोटा-सा प्यारा बच्चा दिखा कि वे उसे अपनी गोद में लेने को आतुर दिेखते हैं।
सड़क किनारे मोबाइल पर तेज आवाज के साथ युवक-युवतियाँ डांस करते दिखाई दे जाते हैं। खुशी मनाने का कोई अवसर वे नही छोड़ते।
समय के पाबंद-यदि डॉक्टर से मरीज ने समय लिया होता है, तो मरीज की पूरी कोशिश होती है कि वह समय पर पहुँचे। इस बीच यदि उसका वाहन खराब हो जाए, तो वह किसी को भी यह कारण बताकर लिफ्ट ले लेता है। लोग खुशी से उसकी सहायता करते हैं। जहाँ कहीं भी जाना, तो वे समय से पहले पहुँचने की पूरी कोिशश करते हैं। हाँ भारतीय कहीं कोई कार्यक्रम आयोजित करते हैं, तो उसमें देर हो ही जाती है।
सैलानी प्रवृत्ति:- सड़क पर चलते हुए कई ऐसे लोग भी दिखाई दे जाते हैं, जो एक पटे पर खड़े होकर कारों के साथ-साथ चलते रहते हैं। लकड़ी के पटे पर बेयरिंग लगी होती है, जिस पर वे आड़ा खड़े होकर सड़क पर चलते हैं। जहाँ कहीं भीड़ हुई, वह उसे अपने कांधे पर रखकर पैदल चलना शुरू कर देते हैं। मनमौजी की तरह से कहीं भी दिखाई दे जाते हैं। इसमें युवक ही नहीं, युवतियाँ भी शामिल होती हैं।
भेदभाव नहीं:-वहाँ काले लोगों की संख्या बहुत है। यात्री बस, स्कूल बस को अक्सर महिलाएँ ही चलाती हैं। बड़े-बड़े ट्रेकर भी महिलाओं को चलाते देखा है मैंने। कुछ युगल ऐसे भी दिखाई दे जाते हैं, जिसमें महिला गोरी एवं पुरुष काला, दोनों पति-पत्नी के रूप में। दोनों की दो संतानें, बेटी काली और बेटा पूरा गोरा। लेकिन वे बिंदास होकर मॉल या स्टोर में सामान की खरीददारी करते हुए दिखते हैं। कालों की संख्या को देखते हुए स्टोर में उनके हिसाब से कपड़े आदि रखे होते हैं। तम्बू आकार के शर्ट-पेंट आदि देखकर ऐसा लगता है कि यह शो-पीस है। पर ऐसा नहीं, वहाँ ऐसी चीजों के खरीददार होते हैं।
शांत स्वभाव:-वहाँ किसी को कहीं भी जाने की हड़बड़ी नहीं होती। पूरे इत्मीनान से वे गाड़ी चलाते हुए चले चलते हैं। यदि किसी को जल्दी है, तो उसके वाहन की गति से सभी समझ जाते हैं और उसे रास्ता दे देते हैं। पर ऐसा कम ही होता है। सब एक-दूसरे का खयाल रखते हुए अपने वाहन चलाते हैं।
हिंदी का माहौल:-न्यू हेम्पशायर में मैं एक हिंदी के कार्यक्रम में शामिल हुआ। पूरे पाँच घंटे तक चलने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होकर ऐसा लगा ही नहीं कि मैं भारत से बहुत दूर अमेिरका में हूं। सभी लोग हिंदी में बात करते हुए। दो नाटक भी हिंदी के। लोगों ने अपनी कविताएँ भी सुनाई, शायरी भी सुनाई। पूरा माहौल हिंदी का था। मुझे लगा मैं तो मानों अपने ही शहर के किसी कार्यक्रम में शामिल हुआ हूँ।
परस्पर सम्मान:- वहाँ लोग एक-दूसरे काे पूरा सम्मान देते हैं। रिसेप्शन में पहुँचते ही पहले  गुड मार्निंग, हाऊ आर यू से बातचीत की शुरुआत करते हैं। फिर भले काम की बातें शुरू हो जाए। इस दौरान कहीं किसी के चेहरे पर आलस या पराएपन का अहसास होता दिखाई नहीं दिया। पूरे सम्मान के साथ वे अभिवादन करते हैं। बातें करते हैं। िकसी मॉल या स्टोर में जाते हुए हम किसी के पीछे जा रहे है, तो वे दरवाजा खोलकर पहले हमें जाने देते हैं, फिर वे प्रवेश करते हैं। इस दौरान हमें उन्हें धन्यवाद अवश्य कहना चाहिए। यदि हम ऐसा करें, तो वे खुश होकर धन्यवाद अवश्य कहते हैं।
उत्सव  प्रेमी:-चूँकि अमेिरकी उत्सव प्रिय होते हैं, इसलिए किसी के घर पार्टी हो, तो शराब अपनी ही ले जाते हैं। ताकि सामने वाले को किसी तरह की परेशानी न हो। जन्म दिन, सालगिरह आदि समारोह सप्ताहांत में ही आयोजित किए जाते हैं, ताकि अधिक से अधिक लोग आकर एंज्वाय कर सकें।
लकड़ी के घर:- अधिकांश घर लकड़ी के होते हैं, इसलिए घर की रसोई पर चूल्हे के आसपास काफी सतर्कता रखी जाती है। घर पर किसी तरह की भट्‌ठी नहीं होते। मांसाहर के लिए भुनने के लिए घर के बाहर बिजली से चलने वाला यंत्र होता है, जिस पर मांस लटकाकर नीचे ताप से उसे भुना जाता है। इस काम में सभी सहयोग करते हैं, फिर मिलकर सभी एंज्वाय करते हैं। सड़क के दोनों किनारे घर बने होते हैं। जिसमें तलघर में पानी गर्म करने के लिए बॉयलर, एसी आदि की व्यवस्था होती है। उसके ऊपर वाले पर रहना होता है। अधिकांश समय ठंड होती है, इसलिए दरवाजे तुरंत बंद होन वाले होते हैं। घर हमेशा गर्म होता है। बाथरूम में ठंडे और गर्म पानी की पूरी व्यवस्था होती है। लोग गर्म पानी से ही नहाते हैं। हाँ मकानों के नम्बर क्रमवार होते हैं। जैसे 111, 113,115,117 आदि एक साथ मिलेंगे। उसके सामने की ओर वाले मकानों के नम्बर 112, 114, 116 आदि होते हैं। यानी सम संख्या वाले एक ओर और विषम संख्या वाले दूसरी ओर होते हैं।
नो धोबी घाट:-वहाँ एक बात यह देखने में आई कि भारत की तरह वहाँ किसी घर या बाहर रस्सी पर कपड़े सूखते दिखाई नहीं देते। वहाँ सभी के घर वाशिंग मशीन और साथ में ड्रायर मशीन भी होती है। एक घंटे में कपड़े धुलकर और सूखकर आपके पास आ जाते हैं। जिनके घर वाशिंग मशीन नहीं होती, वे अपने घरों से कपड़ों का गट्‌ठर ले जाते हैं, एक ऐसी जगह, जहाँ सभी तरह के कपड़े धुलते हैं। वहाँ कई वाशिंग मशीनें रहती हैं। वहाँ पहले आपके कपड़ों को तौेला जाएगा, उसके बाद कपड़ों की धुलाई और उसे सूखाकर आपको सौंप दिया जाएगा। लोग सप्ताह भर के कपड़े ले जाते हैं, सुबह देकर दोपहर को ले आते हैं। खर्च आता है, कपड़ों के तौल से। फिर भी भारतीय मुद्रा में 400 रुपए लग ही जाते हैं।
वायु-ध्वनि प्रदूषण नहीं:- वहाँ कभी कहीं भी शोर सुनने को नहीं मिला। इसके अलावा वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने के लिए कोई उपक्रम करता हुआ भी नहीं देखा। न कहीं धुआं, न कचरे का ढेर, न लाउडस्पीकर, न ही और ऐसा कुछ, जिससे ध्यान भटकता हो। लोग शांति से जीना चाहते हैं। लाउडस्पीकर पर वहां प्रतिबंध है। न मंदिरों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का इस्तेमाल हाेता है, न मस्जिदों में और न ही िगरजाघरों में। चारों ओर शांति और केवल शांति।

रविवार, 7 जून 2015

टाइगर पर ज्‍यादती



 आज दैनकि जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण में प्रकाशित मेरा आलेख



शनिवार, 6 जून 2015

एप से वेबसाइटों पर बढ़ता खतरा

आज हरिभूमि के संपादकीय पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख

सोमवार, 1 जून 2015

अस्थिर मानसून की आशंका

आज राष्ट्रीय जागरण के संपादकीय पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख

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