शनिवार, 30 जुलाई 2016
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!... - हरिवंशराय बच्चन
कविता का अंश... तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!
रात का अंतिम प्रहर है, झिलमिलाते हैं सितारे,
वक्ष पर युग बाहु बाँधे, मैं खड़ा सागर किनारे
वेग से बहता प्रभंजन, केश-पट मेरे उड़ाता,
शून्य में भरता उदधि-उर की रहस्यमयी पुकारें,
इन पुकारों की प्रतिध्वनि, हो रही मेरे हृदय में,
है प्रतिच्छायित जहाँ पर, सिंधु का हिल्लोल - कंपन!
तीर पर कैसे रुकूँ मैं,आज लहरों में निमंत्रण!
विश्व की संपूर्ण पीड़ा सम्मिलित हो रो रही है,
शुष्क पृथ्वी आँसुओं से पाँव अपने धो रही है,
इस धरा पर जो बसी दुनिया यही अनुरूप उसके--
इस व्यथा से हो न विचलित नींद सुख की सो रही है,
क्यों धरणि अब तक न गलकर लीन जलनिधि में गई हो?
देखते क्यों नेत्र कवि के भूमि पर जड़-तुल्य जीवन?
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!
जड़ जगत में वास कर भी, जड़ नहीं व्यवहार कवि का
भावनाओं से विनिर्मित, और ही संसार कवि का,
बूँद के उच्छ्वास को भी, अनसुनी करता नहीं वह,
किस तरह होता उपेक्षा-पात्र पारावार कवि का,
विश्व-पीड़ा से, सुपरिचित, हो तरल बनने, पिघलने,
त्याग कर आया यहाँ कवि, स्वप्न-लोकों के प्रलोभन।
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण।
जिस तरह मरु के हृदय में, है कहीं लहरा रहा सर,
जिस तरह पावस-पवन में, है पपीहे का छिपा स्वर
जिस तरह से अश्रु-आहों से, भरी कवि की निशा में
नींद की परियाँ बनातीं, कल्पना का लोक सुखकर
सिंधु के इस तीव्र हाहाकार ने, विश्वास मेरा,
है छिपा रक्खा कहीं पर, एक रस-परिपूर्ण गायन!
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण
नेत्र सहसा आज मेरे, तम-पटल के पार जाकर
देखते हैं रत्न-सीपी से, बना प्रासाद सुन्दर
है खड़ी जिसमें उषा ले, दीप कुंचित रश्मियों का,
ज्योति में जिसकी सुनहरली, सिंधु कन्याएँ मनोहर
गूढ़ अर्थों से भरी मुद्रा, बनाकर गान करतीं
और करतीं अति अलौकिक, ताल पर उन्मत्त नर्तन!
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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