शनिवार, 9 जुलाई 2016
गीजूभाई की कहानियाँ - 11 - जोगड़ा बाट जोहता है
जोगड़ा बाट जोहता है... कहानी का अंश...
सात भाइयों के बीच एक बहन थी। बहन का नाम था, सोनबाई। एक दिन सोनबाई अपनी भाभी के साथ मिट्टी लेने गई। सोनबाई जहाँ खोदती, वहाँ सोना निकलता और भाभी जहाँ खोदती, वहाँ मिट्टी निकलती। भाभी ने अपनी टोकरी मिट्टी से भरी, और सोनबाई ने अपनी टोकरी सोने से भर ली।
सोनबाई की टोकरी में सोना देखकर भाभी का मन ईर्ष्या से भर उठा। अपनी टोकरी सिर पर रखकर भाभी रवाना होने लगी। सोनबाई ने कहा, "भाभी, भाभी! मेरी यह टोकरी उठवा दो।"
भाभी बोली, "तुम आप ही उठा लो। मैं नहीं उठाऊँगी।" इतना कहकर भाभी वहाँ से चल दी।
सोनबाई अकेली रह गई। टोकरी उठाने की बहुत कोशिश की, पर वह उठा ही नहीं सकी। इसी बीच एक बाबा उधर से निकला। बाबा ने कहा,
"तुम अकेली इतना जोर क्यों लगा रही हो? लाओ, मैं टोकरी उठवाये देती हूँ।"
बाबा ने टोकरी उठवा दी। सिर पर टोकरी रखकर सोनबाई अपने घर की तरफ चल पड़ी। लेकिन तुरन्त ही बाबा उसके पीछे दौड़ा, और उसको अपने कन्धे पर बैठाकर अपनी झोंपड़ी में ले गया।
बाबा ने सोनबाई से विवाह कर लिया। उनके चार-पाँच बच्चे हुए। एक बार बाबा अपने बाल-बच्चों के साथ यात्रा पर निकला। गाँव-गाँव घूमते हुए सब आगे बढ़ने लगे। बाबा सोनबाई को गाँव में भीख माँगने के लिए भेज देता, और स्वयं गाँव के बाहर बैठकर बच्चों को सँभालता। यो घूमते-फिरते कई सालों के बाद ये लोग सोनबाई के बाप के गाँव में पहुँचे। बाबा ने हमेशा की तरह इस गाँव मे भी सोनबाई को भीख माँगने भेजा। सोनबाई घर-घर घूमने और गा-गाकर भीख माँगने लगी:
दंता सेठ के सात बेटे।
सात पर एक बहन सोनबाई।
बाबा के जाल में फँसी सोनबाई।
भीख दो, भीख दो, माई।
गाती जाती और गाँव में घर-घर भीख माँगती। कोई रोटी देता तो कोई चुटकी-भर आटा देता। यों घूमते-घूमते सोनबाई अपने ही माँ-बाप के घर पहुँची और वही गीत गाया। क्या उसके माता-पिता ने सोनबाई को पहचान लिया? सोनबाई के साथ आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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