बुधवार, 20 जुलाई 2016
बाबुल तुम बगिया के तरुवर - गोपाल सिंह नेपाली
कविता का अंश... बाबुल तुम बगिया के तरुवर...
बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे
दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के
घर की कन्या बन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के
बाजी हारी हुई त्रिया की
जनम-जनम सौगात पिया की
बाबुल तुम गूँगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
हमको सुध न जनम के पहले, अपनी कहाँ अटारी थी
आँख खुली तो नभ के नीचे, हम थे गोद तुम्हारी थी
ऐसा था वह रैन बसेरा
जहाँ साँझ भी लगे सवेरा
बाबुल तुम गिरिराज हिमालय, हम झरनों की कड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लडियाँ रे
छितराए नौ लाख सितारे, तेरी नभ की छाया में
मंदिर-मूरत, तीरथ देखे, हमने तेरी काया में
दुख में भी हमने सुख देखा
तुमने बस कन्या मुख देखा
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो, हम कोमल पंखुड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
बचपन के भोलेपन पर जब, छिटके रंग जवानी के
प्यास प्रीति की जागी तो हम, मीन बने बिन पानी के
जनम-जनम के प्यासे नैना
चाहे नहीं कुँवारे रहना
बाबुल ढूँढ़ फिरो तुम हमको, हम ढूँढ़ें बावरिया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल-मर्यादा से जा टकराई
पगड़ी गिरने के डर से, दुनिया जा डोली ले आई
मन रोया, गूँजी शहनाई
नयन बहे, चुनरी पहनाई
पहनाई चुनरी सुहाग की, या डालीं हथकड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे...
इस अधूरी कविता का पूरा आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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