शनिवार, 16 जुलाई 2016
बाल कहानी - अँगूर मीठे हैं - उपासना बेहार
कहानी का अंश...
एक लोमड़ी थी, जो शहर में अकेले रहती थी। एक दिन उसे अपने परिवार की बहुत याद आयी। उसने सोचा कि बहुत दिनों से उनसे नही मिली है, जाकर मिलना चाहिए। लोमड़ी तुरंत जंगल की ओर चल पड़ी। जंगल के रास्ते में उसे अंँगूर से लदा पेड़ दिखायी दिया। अँगूर के पेड़ को देखते ही उसे वो कहावत याद आ गई जो लोमडि़यों के मुर्खता पर बनी थी कि ‘‘अँगूर खट्टे हैं’’। इसी कहावत को लेकर लोमडि़यों की हमेशा खिल्ली उडाई जाती है। तभी से आज तक कोई लोमड़ी यह जान नही सकी कि अंँगूर का असली स्वाद कैसा होता है।
उसने सोचा कि ‘ये अच्छा मौका है, मैं अँगूर खा कर उसका स्वाद पता करूँ और हमेशा के लिए इस कहावत का अंत कर दूँ साथ ही लोमड़ी जाति पर लगे इस कलंक को हटा दूँ।’ लेकिन अँगूर तो पेड़ में ऊँचाई पर लगे थे, उसे तोड़ा कैसे जाए? यह बात लोमड़ी के समझ में नही आ रही थी। उसको याद आया कि उसके पूर्वजों ने पेड़ की ऊँची टहनी पर लगे अँगूर को उछल कर तोड़ने की कई बार कोशिश की थी, अँगूर तो टूटे नही बल्कि उनके दाँत जरुर टूट गए। लोमड़ी ने सोचा ‘यह तरीका तो खतरनाक है, इससे तो अपने आप को ही चोट लगती है। मुझे कुछ नया सोचना होगा।’
तभी वहाँ एक गिलहरी आयी, उसे देखते ही लोमड़ी ने सोचा मुझे इसकी मदद लेनी चाहिए, लोमड़ी ने कहा ‘गिलहरी बहन मेरी मदद करो, और मुझे अँगूर तोड़ कर दे दो ताकि मैं अँगूर खाऊंँगी, उसका स्वाद जानूँगी और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊँगीं।‘ गिलहरी ने कहा ‘‘लोमड़ी दीदी मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती क्योंकि मेरे बच्चे बहुत देर से भूखे है, मुझे उन्हें खाना खिलाना है.’’ यह कह कर वह तेजी से पेड़ पर बने अपने घर में घूसने लगी। लोमड़ी ने कहा ‘अच्छा बहन तुम तो इस पेड़ में रहती हो तो तुम्हे तो पता होगा कि अँगूर का स्वाद कैसा होता है, मुझे कम से कम उसका स्वाद तो बताती जाओ.’ गिलहरी ने कहा ‘दीदी इसके स्वाद को बताया नही जा सकता, जो खाता है उसे ही पता चलता है।‘ और वह घर के अंदर चली गई।
आगे की कहानी जानिए ऑडियो की मदद से.....
संपर्क - upasana2006@gmail.com
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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