शनिवार, 2 जुलाई 2016
कहानी -मैं हूँ हत्यारिन...- गीता दुबे
कहानी का अंश... दिसम्बर का महीना, ठिठुरती सुबह| सुबह के छ: बज चुके थे लेकिन सड़क पर सिवाए मेरे कहीं भी कोई नहीं दिख रहा था| कोहरे की वजह से कुछ भी साफ-साफ नहीं दिखाई दे रहा था| मैं मार्निंग वाक से वापस घर की ओर लौट रही थी, दूर से मुझे ऐसा लगा मानो पुलिए पर कोई गठरी रखी हुई है| लेकिन जैसे- जैसे मैं गठरी के नजदीक आती गई, उसके हिलने-डुलने से मैं समझ गई कि वह गठरी नहीं बल्कि पुलिए पर कोई बैठा है, कुछ और नजदीक जाने पर मैंने देखा साडी में लिपटी गठरी की तरह उस पुलिए पर एक किशोरी बाला बैठी हुई है और वह इतनी डरी हुई है कि मारे डर के इस ठंड में भी उसके माथे पर पसीने की बूंदे उतर आई हैं| उसे देख मैंने जाने-अनजाने आखों ही आखों में उससे कई सवाल कर दिए और आगे घर की ओर बढ़ने लगी| कुछ दूर चलने पर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पीछे-पीछे कोई आ रहा है, मैंने मुड़कर देखा तो वही किशोरी मेरे पीछे-पीछे चली आ रही थी, ऐसा लगा उसने मेरी आँखों की भाषा पढ़ ली हो और मुझसे कुछ कहना चाह रही हो| घर आकर मैंने अभी अपने जूते उतारे ही थे कि डोर-बेल की आवाज सुनकर चौंक पड़ी, मेरे भीतर से आवाज आई .... कहीं वही लड़की तो नहीं... और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो उस किशोरी को देख मैं अवाक् रह गई, वह उसी तरह भयभीत सहमी सी मेरे सामने खड़ी थी| उसे उस तरह सामने खड़ी देख मैं समझ गई कि यह किसी मुश्किल में है और मुझसे मदद चाह रही है, फिर भी मैंने पूछा----
“ क्या है? यहाँ क्यों आई हो?”
उसने बंगाली में कहा—‘ आमाके आपनार बाड़ीए रोखे नाव’ मतलब आप मुझे अपने घर में रख लीजिए|
‘अरे ऐसे कैसे तुझे मैं अपने घर में रख लूँ, तुझे मैं जानती तक नहीं, तू कौन है?’
कहाँ रहती है?
उसने फिर बंगाली में कहना शुरू किया--- मैं आपके घर के सारे काम कर दूंगी, झाड़ू, पोंछा--- मुझे बचा लीजिए, अपने घर में रख लीजिए| आगे की कहानी ऑडियो की मदद से जानिए...
लेबल:
कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
संवेदनाओं के पंख/ दिव्य दृष्टि में मेरी कहानी'मैं हूँ हत्यारिन' प्रसारित करने के लिए हृदय से आभार. भारती परिमल जी की शुद्ध और आकर्षक आवाज में कहानी की प्रस्तुति सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंगीता दुबे