शनिवार, 9 जुलाई 2016
ए री सखी बरखा बहार आई... -डॉ. महेश परिमल
निबंध का अंश... ए री सखी बरखा बहार आई... ..
लो फिर से आया हरियाला सावन
पीऊ-पीऊ बोल उठा पागल मन
बादलों के पंख लगा उड़ गया रे
दूर पिया के देश में मुड़ गया रे
आज से कई वर्षों पहले कालिदास ने अपने नाटक आषाढ़ का एक दिन में एक कल्पना की थी- उनका विरही यक्ष अपनी प्रियतमा यक्षिणी को बादलों के माध्यम से प्रेम संदेश भेजता है। उस जमाने की वह कल्पना आज इंटरनेट, ई-मेल के जरिए साकार हो रही है। इस कल्पना का साकार होना अपने आपमें एक रोमांचकारी अनुभव है।
चारों ओर बारिश की फुहार से वातावरण भीगा हुआ है। मोर अपनी प्रियतमा मोरनी को रिझाने के लिए पंख पसारे हुए है। कोयल की कुहू-कुहू और पपीहे की पीऊ-पीऊ जंगल को गुंजायमान कर रही है। ऐसे में आकाश में तारों और चंद्रमा के साथ बादलों का खेल अपनेपन की एक नई परिभाषा रच रहा है। ऐसा लगता है मानों हरियाली मुस्कान के साथ सजी-धजी धरती को आकाश की प्रियतमा बनने से अब कोई रोक नहीं सकता।
बारिश तो आकाश के द्वारा धरती को लिखा गया खुला प्रेमपत्र है। धरती का अपनापन इतना गहरा है कि वह कभी रेनकोट पहन कर बारिश का स्वागत नहीं करती, वह तो इस बारिश में पूरी तरह से भीग जाने में ही अपनी सार्थकता समझती है। और भीगती है, खूब भीगती है, इतनी कि एक पल को धरती-आकाश दोनों ही एकमेव ही दिखाई देते हैं। क्या ये सार्थकता कहीं और देखने को मिल सकती है भला? हाँ जब कोई प्रिय अपनी प्रियतमा से सावन की फुहारों के बीच मिलता है, तब उनकी भावनाएँ मौन होती हैं और इसी मौन में दोनों एक-दूसरे को सब-कुछ कह देते हैं. यही है प्रेम का शाश्वत रूप। लेकिन कुछ लोग इससे अलग विचार रखते हैं, उनका मानना है कि बरसात प्रेमियों को बहकाती है और वन-उपवन को महकाती है। यही मौसम होता है जब इसे कवि अपनी आंखों से देखता है. कभी विरह की आग में जलती हुई प्रेयसी के रूप में, तो कभी अपनी प्रियतमा से मिलने को आतुर प्रेमी के रूप में। कवियों ने हर रूप में इस बरसात को देखने का प्रयास किया है, जिसे हम कविताओं के रूप में सामने पाते हैं।
आषाढ़ का पहला दिन, यदि मेरा बस चले तो इसे मैं इंडियन वेलेंटाइन डे घोषित कर दूँ। आप ही सोचें वह भला कोई प्रेमी युगल है, जिसने पहली बारिश में भीगना न जाना हो। बारिश हो रही हो, बाइक पर दोनों ही सरपट भागे जा रहे हों, ऐसे में कहीं भुट्टे का ठेला दिखाई दे जाए, धुएं में लिपटी भुट्टे की महक भला किसे रोकने के लिए विवश नहीं करती? बाइक रोककर एक ही भुट्टे का दो भाग कर जिसने नहीं खाया हो, उनके लिए तो स्वर्ग का आनंद भी व्यर्थ है। प्रेम में डूबकर कविता लिखने वाले कवियों ने तो यहाँ तक कहा है कि जो प्रेम में भीगना नहीं जानता, वह विश्व का सबसे कंगाल व्यक्ति है। पूरे निबंध का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
निबंध
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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