मंगलवार, 5 जुलाई 2016
बाल कविताएँ - वसु मालवीय
कविता का अंश... मम्मी की भी मम्मी हैये
अपनी प्यारी नानी,
दुलरा देती जब हम करते-
हैं कोई शैतानी।
नहीं मारती, नहीं डाँटती
बिल्कुल सीधी सादी,
उतनी ही बुढ़ी है, जितनी-
बूढ़ी मेरी दादी।
लोरी गाकर कभी सुलाती-
या फिर परी कहानी!
बाँच-बाँच लेती रामायण-
की पोथी घंटे भर,
खेल-कूद कर गुड़िया लौटी
मिट्टी पोते मुँह पर।
हँसती-हँसती मुँह धुलवाती
नानी लेकर पानी!
झुर्री पड़े गाल हैं उसके
बाल मुलायम रेशम,
नकली दाँत लगाए नानी
हमको बाँटे चिंगम।
पेपर पढ़ती लेकर ऐनक
तिरछी सधी कमानी! ऐसी ही अन्य बाल कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविताएँ
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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