शनिवार, 2 जुलाई 2016
बाल कहानी - खेल
कहानी का अंश... रास्ते की परेशानियों से जूझते हुए ग्वेन को एक सुबह एक किला दिखाई दिया। किला एक पहाड़ी पर था। क्या यही है वह पुराना किला? लेकिन न तो आसपास जंगल है और न ही यह किला पुराना दिखाई दे रहा है। ग्वेन ने सोचा। क्या मैं गलत स्थान पर तो नहीं आ गया हूँ? अभी ग्वेन ये सब सोच ही रहा था कि इतने में एक घुड़सवार उसके पास आकर रूका और बोला - आपका स्वागत है मित्र। मेरे किले में चलिए। आपको कोई तकलीफ नहीं होगी। ग्वेन ने कहा- मैं अपने घर से इतनी दूर आराम करने के लिए नहीं आया हूँ। मुझे तो एक पुराने किले में जाना है और वहाँ एक अपिरचित व्यक्ति से युद्ध करना है। मेरा नाम बर्नलेक है और मैं आपको काले जंगल का रास्ता तथा पुराने किले का पता बता दूँगा। अभी आप मेरे साथ चलिए। उस घुड़सवार ने ग्वेन का बहुत स्वागत-सत्कार किया। उसकी पत्नी ने स्वयं अपने हाथों से भोजन बनाकर उसे खिलाया। इसी तरह कई दिन बीत गए। आखिर एक दिन ग्वेन ने कहा - मुझे आप काले जंगल का पता बता दीजिए, तो कृपा होगी। ग्वेन की बात सुनकर बर्नलेक हँस पड़ा और बोला- चिंता न करो। मैं आपको पता अवश्य बताऊँगा। मगर आज मैं एक आवश्यक कार्य से जा रहा हूँ। वहाँ से लौटकर आपको काले जंगल का पता बता दूँगा। बर्नलेक ने क्या ग्वेन को काले जंगल का पता बताया? वह अपिरचित कौन था, जिससे ग्वेन को युद्ध करना था? यह सारी बातें जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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