सोमवार, 31 मई 2021

हर कश में होती हैं हमारी सांसें कम



आज की जनधारा में 31 मई 21 को प्रकाशित





लोकस्वर बिलासपुर में 31 मई 21 को प्रकाशित




 

शनिवार, 22 मई 2021

ताकि सलामत रहे जीवन


21 मई 2021 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित

 



गुरुवार, 20 मई 2021

आलेख - दिन टंगे हैं रस्सी पर...

लेखक - नवनीत गुर्जर


लेखक भास्कर ग्रुप के नेशनल एडिटर हैं। जो समय-समय पर समसामयिक विषयों पर अपनी कलम चलाते हैं।  
दैनिक भास्कर में प्रकाशित आलेख का आनंद लीजिए, इस ऑडियो की मदद से...

रविवार, 16 मई 2021

नन्हें कदमों की लम्बी दूरियाँ



अमर उजाला में 16 मई 21 को प्रकाशित
लोकस्वर बिलासपुर में 15 मई 21 को प्रकाशित






आज की जनधारा रायपुर  में 15 मई 21 को प्रकाशित

 


शुक्रवार, 14 मई 2021

वक्त का तकाजा: हो बयानबाजी पर प्रतिबंध

नवभारत रायपुर में 10 मई 2021 को प्रकाशित








 

बाल रामकथा - अध्याय 12 राम का राज्याभिषेक



राम का राज्याभिषेक
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बाल रामकथा - अध्याय 11 लंका-विजय


लंका-विजय

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बाल रामकथा - अध्याय 10 लंका में हनुमान



लंका में हनुमान
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बाल रामकथा - अध्याय 9 राम और सुग्रीव



राम और सुग्रीव
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बाल रामकथा - अध्याय 8 सीता की खोज



सीता की खोज
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बाल रामकथा - अध्याय 7 सोने का हिरण



सोने का हिरण
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बाल रामकथा - अध्याय 6 दंडक वन में दस वर्ष



दंडक वन में दस वर्ष
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बाल रामकथा - अध्याय 5 चित्रकूट में भरत



चित्रकूट में भरत
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बाल रामकथा - अध्याय 4 राम का वन गमन




राम का वन गमन
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बाल रामकथा - अध्याय 3 दो वरदान



दो वरदान
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बाल रामकथा - अध्याय 2 जंगल और जनकपुर



जंगल और जनकपुर
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बाल रामकथा - अध्याय 1 अवधपुरी में राम



अवधपुरी में राम 
इस कथा का आनंद लीजिए, ऑडियो के माध्यम से...

मंगलवार, 11 मई 2021

कविता - कुरुक्षेत्र

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इस कविता का आनंद लीजिए ऑडियो की मदद से


सोमवार, 10 मई 2021

नैतिकता के टूटते तटबंध

दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 10 मई 2021 को प्रकाशित





09 मई  2021 को राजनांदगाँव से प्रकाशित सबेरा संकेत में










अमर उजाला के संपादकीय पेज पर 5 मई को प्रकाशित


 

शनिवार, 1 मई 2021

दादाजी कैसे होते हैं...

गिरिराज शिमला में 28 अप्रैल 2021 को प्रकाशित












 

कविताएँ - निदा फ़ाज़ली

वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे

ग़ज़लकार निदा फ़ाज़ली की ऐसी ही कुछ रचनाओं का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...






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