सोमवार, 15 जुलाई 2024

दान को दान ही रहने दें, तमाशे की जरूरत नहीं





14 जुलाई 2024 को अमर उजाला में प्रकाशित



 

शुक्रवार, 28 जून 2024

मिथक तोड़ती बेटियाँ

28 जून 2024 को हरिभूमि में प्रकाशित



 

रविवार, 2 जून 2024

बुलडोजर अफसरों के घरों पर भी चले

 













बुधवार, 20 मार्च 2024

एक संजीवनी की तरह है "फिर"









 


रविवार, 21 जनवरी 2024

 







जय राम जी की, के भीतर छिपी अदृश्य भावना

आसान है राममय होना, मुश्किल है राम होना

डॉ. महेश परिमल

आजकल पूरे देश में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में राम की ही चर्चा है। विश्व भले ही राममय नहीं हो पाया हो, पर देश पूरी तरह से राममय हो गया है। सोशल मीडिया के केंद्र में राम ही हैं। राम के बिना अब कुछ भी संभव नहीं है। राम ही हमारे जीवन का आधार हैं, राम ही हमारी जीवन नैया को पार लगाएंगे। अखबारों की बात ही न पूछो, वे तो राम पर श्रृंखलाबद्ध कुछ न कुछ लिख रहे हैं। अखबार का शायद ही कोई पन्ना हो, जिसमें राम की चर्चा न हो। यहां चर्चा का विषय राम नहीं, बल्कि राममय होना है। क्योंकि राममय होना तो बहुत ही आसान है, पर राम होना उससे भी अधिक मुश्किल है। बहुत अंतर है राम में और राम का होने में।

कुछ दिनों पहले अपने जन्म स्थान जाना हुआ। 44 साल पहले जिस शहर को छोड़ दिया हो, वहां जाना यानी एकदम नई पीढ़ी के सामने होना। पुरानी पीढ़ी तो न जाने कब की चल बसी। आज वहां जो भी मिलता है, उसे अपना परिचय अपने पिता या भाई के नाम से नहीं देना होता है। उसे अपने भाई के बच्चों का चाचा बताना होता है, तब वह पीढ़ी पहचान पाती है। ऐसे में कहीं भी चले जाएं, भले ही सामने वाला हमें न पहचानता हो, पर एक बात तय है, वह अपनी तरफ से जय राम जी की अवश्य कहता है। प्रत्युत्तर में हम हाथ उठाकर वही वाक्यांश दोहरा देते हैं। शहरों में ऐसा नहीं होता, गांवों में होता है। शहरों ने अब चालाकी सीख ली है। गांव के लोग अभी भी भोले-भाले हैं। शहर में जब किसी का किसी से कोई लेना-देना ही नहीं है, तो काहे को बोलें-जय राम जी की। हाथ उठाने की भी जहमत क्यों उठाएं? गांव में कोई अनजाना दिख जाए, तो हाथ खुद ब खुद उठ जाता है, मुंह से निकल ही आता है...जय राम जी की।

आखिर ऐसा अभिवादन क्यों? क्या है राम में? शायद इसका आशय यही है कि मैं आपके भीतर के राम को प्रणाम करता हूं। मतलब यही है कि हम सबके भीतर राम हैं। हम सब उसे जगाने का प्रयास करते रहते हैं। आप क्या करते हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं, हम तो आपके राम को अपने भीतर के राम से परिचय करवाते हैं और बोल उठते हैं...जय राम जी की। आप क्या करके आए हैं, आप क्या करने जो रहे हैं, हम तो कुछ भी नहीं जानते, आप सामने आए और हमने कह दिया..जय राम जी की। आखिर इस राम में ऐसा क्या है, जो सबके भीतर बसते भी हैं और बाहर दिखाई भी नहीं देते। वास्तव में राम के कार्य ही हैं, जो हमें उसका परिचय देते हैं। कष्टों को भी अपने अनुकूल बनाकर जो सब कुछ निभा ले जाए, वह है राम। विषम परिस्थितियों को भी सरल बना दे, वह है राम। बड़ी से बड़ी विपदा में शांत चित्त होकर धैर्य के साथ उनका मुकाबला करने की क्रिया है राम। क्या हममें है, उतनी सहनशक्ति या सहज भाव से सब कुछ ग्रहण करने की क्षमता?

नहीं, ऐसा संभव भी नहीं है। हमारे राम तो हमारे कार्य के साथ नहीं होते। न ही वे हमारे विचारों के साथ होते हैं। वे होते हैं, टीवी पर घंटों तक भाषण करने वाले हमारे तथाकथित साधु-संतों के पास। जो सादा जीवन जीने की बात तो करते हैं, पर अपने वाणी-विलास की फीस लाखों में लेते हैं। उनकी तथाकथित कैमरे के सामने लगनी वाली भीड़ भी दिखावे का मुखौटा लगाकर आती है। बस किसी तरह हम कैमरे में आ जाएं, ताकि लोग हमें देख सकें। हमारे शालीन होने का नाटक देखें, हमारे सुंदर वस्त्रों को देखें। फिर बाद में वे हमारे वस्त्र, हमारे नाटक और हमारी प्रशंसा में कुछ कहें।

आजकल समाज में दिखावे के राम अधिक हैं। वरण करने वाले राम नहीं के बराबर। यहां पर हम देख रहे हैं कि राममय होना कितना आसान है। पर राम बनना कितना मुश्किल है। हममें से कौन ऐसा होगा, जिसे सुबह राजा होना है, वह सुबह होने के पहले ही वनवासी बनकर जंगलों में जाने का साहस रखता हो। यहीं है, राम बनने का दुर्गम रास्ता। राम जैसी सादगी पाने के लिए भी काफी संघर्ष करना होता है, उसके बाद भी हम उनके पांव की धूल के बराबर भी नहीं हो पाते। आज स्वार्थ और दिखावे की दुनिया में राममय होना बहुत ही आसान हो गया है, पर राम बनकर दुर्गम रास्ता चुनना बहुत दुरुह है।

जय राम जी की, कहकर हम सब परस्पर अपने राम को जगाते हैं। राम जागें या न जागें, पर हमारा प्रयास उन्हें जगाने का अवश्य होता है। आज की दुनिया में राम जाग भी नहीं सकते। क्योंकि दुनिया दिखावे की है। जो दिखावे के लिए होता है, वह क्षणभंगुर होता है। दिखावा यानी झूठ का आलीशान महल। सच की झोपड़ी में यह इमारत नहीं समा सकती। सच झोपड़ी में ही सुशोभित होता है। यह महलों में तब सुशोभित होगा, जब वहां भीतर के राम जागते हुए पाए जाएंगे।

...तो जय राम जी की कहकर, हम सब अपने-अपने राम को परिचय स्वयं से करते हैं। हम सब जय राम जी की, बोलते रहेंगे, हमारे राम हम पर प्रसन्न होते रहेंगे। राम का प्रसन्न होना हमें यह बताता है कि आज हमसे कोई न कोई अच्छा कार्य होना है। बिना किसी तामझाम, मीडिया, या कैमरे वाले को सूचना दिए। अच्छे काम का चुपचाप होना ही राम बनने की पहली सीढ़ी है। ऐसे राम बहुत ही कम मिलते हैं। कहना यह होगा कि मिलते ही नहीं है। वे लोग कुछ अच्छा करने जाएं, उसके पहले ही मीडिया को सूचना मिल जाती है। अच्छा करने के लिए अच्छा सोचना होता है। अच्छा सोचना सदैव यह सूचना देता है कि यह बात किसी को भी पता न चले। आपने अच्छा काम कर दिया, उसकी सूचना किसी को नहीं मिली, तो यही मौन ही आपको संतुष्टि देगा। आपके भीतर के राम को बहुत ही प्यार से निहारेगा। हम सब ऐसे ही राम को निहारते रहें, अच्छे काम करते रहें,  यही कामना...जय राम जी की...

डॉ. महेश परिमल

शनिवार, 13 जनवरी 2024

संकल्पों के टूटते तटबंध


11 जनवरी 2024 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित





7 जनवरी 2024 को अमर उजाला में प्रकाशित




एक जनवरी 2024 को सबेरा संकेत में प्रकाशित

रविवार, 24 दिसंबर 2023

पेट्रोल युग के अंत का आरंभ

 







पेट्रोल युग के अंत की शुरुआत

आप रास्ते पर कहीं चले जा रहे हैं, वाहन को आप पूरी तरह से संतुलित गति से चला रहे हैं। अचानक आपको करीब छूते हुए एक दो पहिया वाहन बेआवाज निकल जाते हैं। आप हड़बड़ा जाते हैं। आपका वाहन असंतुलित हो जाता है। आप झुंझलाकर आज की पीढ़ी पर दोषारोपण करने से नहीं चूकते। यदि ऐसा आपके साथ बार-बार हो रहा है, तो यह तय है कि आप समय के साथ कदमताल नहीं कर पा रहे हैं। आपकी आंखों के सामने से बदलाव की बयार बह रही है, आप उसे अनदेखा कर रहे हैं। आप शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं कि यह बदलाव का युग है। हमारे सामने से ही एक ऐसे युग का अंत शुरू हो गया है, जिसके बारे में हमने कभी सोचा ही नहीं था। जी हाँ, आपको छूते हुए जो वाहन गुजरा, वह पेट्रोल से नहीं बैटरी से चल रहा था। इसलिए उसमें आवाज नहीं थी। वह खामोशी से आपको छूता हुआ गुजर गया। आपके कान पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के आदी हो गए हैं। इसलिए आप बैटरी से चलने वाले वाहन की खामोशी को समझ नहीं पाए हैं। इसलिए युवा पीढ़ी को दोष देने लगे।

देखते ही देखते हम सब कोयला, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस से चलने वाले वाहनों को लुप्तप्राय होता देख रहे हैं। बहुत ही जल्द उपरोक्त चीजों से चलने वाले वाहन हमें देखने को ही नहीं मिलेंगे। ऐसे वाहनों का युग अब समाप्त होने वाला है। अब तो एयरपोर्ट से आपको कहीं जाना हो, तो आपकी कैब भी बैटरी से चलने वाली ही होगी। सड़कों पर ट्रेफिक जाम के तहत हार्न की बेसुरी आवाजें अब आपको परेशान नहीं करेंगी। आप बड़े शौक से जाम का आनंद भी ले सकेंगे। ऐसा इसलिए संभव है कि दुनिया के 195 देशों के बीच यह ऐतिहासिक सहमति बनी है कि कोयला, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल अब वाहनों में कम से कम हो। वाहनों को चलाने के लिए अब अत्याधुनिक संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। अन्य कई विकल्प भी तलाशे जाएंगे। इसके लिए कई देशों के बीच कई समझौते भी हुए हैं।

पिछले महीने 30 नवम्बर से दुबई में शुरू होकर यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस या कहा जाए कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज(यएनएफसीसीसी) 12 दिसम्बर को समाप्त हुई। ग्लोबल वार्मिंग और विश्वव्यापी पॉलिसी के मुद्दे पर दुनियाभर के देश सहमत हुए। सभी ने एक स्वर से कहा कि अब कोयला, पेट्रोल,डीजल और प्राकृतिक गैस को अलविदा कह देना चाहिए। इनका उपयोग लगातार कम से कम करके हम एक नए युग में प्रवेश कर सकते हैं। ऊर्जा के अन्य विकल्पों को तलाशना होगा, बल्कि नए अनुसंधान एवं नए प्रयोगों पर भी ध्यान देना होगा। इस पर ऐतिहासिक करार भी हुआ। सभी का मानना था कि हमने धरती की छाती से बहुत सारी ऊर्जा निकाल ली है, अब धरती को बख्शो, उसे चैन से जीने दो। अब तक उसने मनुष्य जाति की खूब सेवा की, अब उस पर अत्याचार नहीं करना है।

पर्यावरण में होने वाले बदलाव को देखते हुए पूरे विश्व की सरकारों के बीच वार्तालाप काफी समय से चल रहा था। इसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि कोई भी सच्चाई को स्वीकारने के लिए तैयार ही नहीं था। सभी जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे प्रदूषण भी एक कारक है। इसके पीछे पेट्रोल, डीजल, कोयला ही दोषी हैं। पर इसे कोई भी मानने को तैयार नहीं था। अब रह-रहकर सभी ने इस ओर ध्यान दिया और सच को स्वीकारने की हिम्मत दिखाई। इसी का परिणाम है कि ऊर्जा के नए स्रोतों की खोज की गई, उस पर अनुसंधान हुए। परिणाम हम सबके सामने है। पहले जिसे स्वीकारने की हिम्मत नहीं थी, अब वे ही धरती से प्राप्त ऊर्जा को अलविदा कहने को तैयार थे। इस पर अरब देश जिनकी अर्थव्यवस्था ही पेट्रोल-डीजल पर निर्भर है, वे तो विरोध में आ गए। पर सच को स्वीकारने में उन्हें दे नहीं लगी। अभी जो समझौता हुआ है, उसे यूनाइटेड नेशंस की उपलब्धि मानी जा रही है कि उसने फॉसिल फ्यूल के युग के अंत की शुरुआत की दिशा में पहला कदम रखा।

जिन बातों पर सभी देशों की सहमति हुई, उसमें मुख्य हैं- औसतन ग्लोबल वार्मिंग 1.5 को चरणबद्ध तरीके से घटाकर ऐसा एनर्जी सिस्टम विकसित किया जाए, जिसके कारण पर्यावरण के लिए हानिकारक माने जाने वाले ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस यानी जीसीजी का उत्सर्जन 2030 तक 43 प्रतिशत और 2035 तक 60 प्रतिशत घट जाए। दूसरे शब्दों में सीएनजी गैस इमिशन का स्तर घटाकर 2019 में जिस स्तर पर था, वहां तक खींचकर लाया जाए। इस पर सभी सहमत थे। शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों से आग्रह किया गया कि वे 2030 तक अपने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को तीन गुना करें। कोयला-प्राकृतिक गैस-पेट्रोल-डीजल की खपत कम करने की कोशिशों से कई देशों की अर्थव्यवस्था पर भारी असर होगा। इसके लिए लॉस एंड डेमेज फंड की स्थापना की जाएगी। ताकि आर्थिक रूप से कमजोर देशों की सहायता की जा सके। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में अमेरिका सबसे आगे है, इसलिए उससे यह कहा गया है कि वे इस फंड में अधिक से अधिक सहयोग करे। 

ऐसा पहली बार हुआ है कि अंतिम दस्तावेज में धरती से प्राप्त ऊर्जा शब्द का उपयोग किया गया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन कहती हैं, "यह समझौता सही नहीं है, लेकिन एक बात बिल्कुल स्पष्ट है: दुनिया का कोई भी देश इस बात से इनकार नहीं करता है कि हमें धरती से प्राप्त ऊर्जा के उपयोग करने की बुरी आदतों को छोड़ना होगा। सीधी-सी बात है। इस वर्ष हम सबने ऋतुओं का खेला देखा, किस तरह से वे प्रकृति के खिलाफ जा रही हैं। ठंडे प्रदेशों में गर्मी हो रही है। नदियां भी जब चाहे, तब रौद्र रूप ले रही हैं। इन्हीं हालात को देखकर इस बार इस शिखर सम्मेलन में कई देशों के प्रतिनिधियों ने पुरजोर हिस्सा लिया। इसी का नतीजा है- कार्बन केप्चर एंड यूटीलाइजेशन एंड स्टोरेज। इसका आशय यही हुआ कि धरती से प्राप्त ऊर्ज का उत्पादन भले ही जारी रखा जाए, पर इससे पैदा होने वाली गैसे ग्रीन हाउस को प्रभावित न कर पाएं।

काफी समय पर इस दिशा पर ध्यान दिया गया। अब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होगी, ऐसी आशा की जा सकती है। हम सब समय के साथ चलें, वक्त की पुकार को सुनें। आधुनिकता को अपनाएं, अपडेट रहें, तभी हम सब देख पाएंगे, एक युग के अंत की शुरुआत...।

डॉ. महेश परिमल

सोमवार, 6 नवंबर 2023

अनथक परिश्रम ही मूलमंत्र

 


शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

फिर निकला रिश्वतखोरी का जिन्न

 


सबेरा संकेत 20 अक्टूबर 2023 को प्रकाशित

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

गरबे में छिपा जीवन का फलसफा

 









शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

बिखरती भावनाएँ, लुप्त होते कौवे

 








रविवार, 3 सितंबर 2023

इंटरनेट मीडिया की बढ़ती लत




























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