गुरुवार, 31 मार्च 2016

मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है......



नवभारत छत्तीसगढ़ में प्रकाशित मेरा आलेख

मीनाकुमारी पर विशेष आलेख - तन्हाई का सफ़रनामा...

मुंबई में एक क्लीनिक के बाहर मास्टर अली बक्श बड़ी बेसब्री से अपनी तीसरी औलाद के जन्म का इंतजार कर रहे थे। दो बेटियों के जन्म लेने के बाद वह इस बात की दुआ कर रहे थे कि अल्लाह इस बार बेटे का मुंह दिखा दे। तभी अंदर से बेटी होने की खबर आई, तो वह माथा पकड़ कर बैठ गए। मास्टर अली बख्श ने तय किया कि वह बच्ची को घर नहीं ले जाएंगे और उसे अनाथालय छोड़ आए, लेकिन बाद में पत्नी के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया। बच्ची का चांद-सा माथा देखकर उसकी मां ने उसका नाम रखा माहजबीं। बाद में यही माहजबीं फिल्म इंडस्ट्री में मीना कुमारी के नाम से मशहूर हुईं। अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। महजबीं को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने खड़ा कर दिया गया। इस तरह बीस फिल्में महजबीं (मीना) ने बाल कलाकार के रूप में न चाहते हुए भी की। महज़बीं को अपने पिता से नफरत सी हो गई और पुरुष का स्वार्थी चेहरा उसके जेहन में दर्ज हो गया। हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही के व्यक्तित्व में मीना ने अपना सुनहरा भविष्य देखा। वे उनके नजदीक होती चली गईं। नतीजा यह रहा कि दोनों ने निकाह कर लिया। लेकिन यहाँ उसे कमाल साब की दूसरी बीवी का दर्जा मिला। उनके निकाह के एकमात्र गवाह थे जीनत अमान के अब्बा अमान साहब। गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू परदे से उतरकर मीना की असली जिंदगी में समा गई थी। मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले खाली किए। धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगीं। जब मौका मिला एक शीशी गटक ली। दादा मुनि अशोक कुमार, मीना कुमारी के साथ अनेक फिल्में कर चुके थे। एक कलाकार का इस तरह से सरे आम मौत को गले लगाना उन्हें रास नहीं आया। वे होमियोपैथी की छोटी गोलियाँ लेकर इलाज के लिए आगे आए। लेकिन जब मीना का यह जवाब सुना 'दवा खाकर भी मैं जीऊँगी नहीं, यह जानती हूँ मैं। इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो। शराब के कुछ घूँट गले के नीचे उतर जाने दो' तो वे भीतर तक काँप गए। ऐसी ही कुछ खास बातें जानिए इस ऑडियो के माध्यम से...

बाल कहानी - खाली गुफा

पहाडि़यों से घिरा एक गाँव था - बंसीनगर। वहाँ के लोग खेती करते थे और पशु पालते थे। गाँव के लोग बहुत सीधे-सादे थे, लेकिन गाँव का मुख‍िया बहुत ही क्रूर और लालची था। वह जरा-जरा सी बात पर लोगों की कोड़े से पिटाई कर देता था। एक बार मौसम खराब होने के कारण किसानों की फसल नष्ट हो गई। उनके पास इतना अनाज नहीं था कि वे मुखिया को लगान के तौर पर देते और अपना पेट भी भरते। उन्होंने इस बार मुखिया को अनाज नहीं दिया। जिससे मुखिया नाराज हो गया। गाँव के लड़के सुखदेव के दादा ने जब लगान न देने का कारण बताया तो उसे कोड़ों से पिटा गया। बेचारे दादा की चोट खाकर हालत खराब हो गई। सुखदेव को इस बात का बहुत दुख हुआ। गाॅंव वाले भी उन्हें बचाने के लिए सामने नहीं आए। क्या सुखदेव अपने दादा और गाँव के अन्य लोगों के दुख दूर कर पाया, क्या वह लोागों को मुखिया के अत्याचार से बचा पाया, क्या मुखिया को अपनी गलती का अहसास हुआ, क्या उस गाॅव के लोगों के जीवन में खुशियाँ आई, फिर ये गुफा का क्या रहस्य था, जो कहानी का शीर्षक ही ये रखा गया, ये सारी ज‍िज्ञासा का समाधान जानने के लिए सुनिए कहानी, खाली गुफा...

बाल कहानी - कौन था वह

विजयपुर में राजा विजयेंद्र प्रताप राज्य करते थे। वह बड़े ही दयालु, वीर और न्यायप्रिय राजा थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी। राज्य कर्मचारी न तो अधिक कर लेते और न ही बिना किसी कारण के लोगों को परेशान करते। राजा को बस एक ही बात की चिंता थी कि उनकी कोई संतान नहीं थी। इस बात को लेकर वे हमेशा दुखी रहा करते थे। एक बार उनके राज्य में एक संन्यासी आए। उन्होंने राजा को एक यज्ञ करने की सलाह दी। कुछ समय बाद राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। अधिक लाड़-प्यार में पलने के कारण राजकुमार बहुत अधिक आलसी और आरामपसंद था। वह राजकाज और अध्ययन में ध्यान नहीं देता था। एक दिन एक अनहोनी हुई जिसके कारण राज्य का सारा भार राजकुमार पर आ पड़ा। क्या राजकुमार वो जिम्मेदारी संभाल पाया, राजा का क्या हुआ, राज्य की प्रजा पर क्या गुजरी, वह अपने नए राजा से खुश थी या नहीं, इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए सुनिए अनूप श्रीवास्तव की बाल कहानी - कौन था वह...

बुधवार, 30 मार्च 2016

कविताएँ - एकांत श्रीवास्तव

एकांत श्रीवास्त्‍व छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी में रचे-बसे युवा साहित्यकार हैं। शरद बिल्लौरे पुरस्कार, केदार सम्मान, दुष्यंत कुमार पुरस्कार, ठाकुर प्रसाद सिंह पुरस्कार, नरेन्द्रदेव वर्मा पुरस्कार और हेमंत स्मृति कविता सम्मान से सम्मानित एकांत कलकत्ता में रेलवे में हिंदी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। इसके अलावा वे साहित्यिक पत्रिका वागर्थ के संपादक हैं। उनकी कविताओं में समाज की विद्रूपताएँ रेखांकित होती हैं। सरल और सहज शब्दों के माध्यम से वे अपने मन की बात के साथ-साथ समाज की सच्चाई भी आसानी से कह देते हैं। युवा रचनाकारों में इनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ...

गुरूदक्षिणा - आरती रॉय

आरती रॉय की कहानियों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है मानो ये तो हमारे ही आसपास के पात्र हों, जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं था कि इस पर कुछ लिखा भी जा सकता है। बिलकुल हमारे बीच का कोई व्यक्ति, जो हमारे बीच ही रहकर हमसे अनजाना-सा रहा है। आरती जब लिखती है तो लिखती ही चली जाती है। कुछ ही घंटों में तैयार होने वाली उनकी कहानियाँ बिलकुल उन्हीं की तरह सहज और सरल है। बिना किसी लाग-लपेट के वह अपने पात्रों के चरित्र को शब्दों का रूप दे देती हैं। उनकी कहानियों के पात्र स्वयं ही उनके पास चलकर आते हैं। पात्र तो हम सभी के बीच भी होते हैं, पर हम में से हर कोई उसे सँवार नहीं पाता। आरती ये कला खूब जानती हैं। फुलमतिया इस कहानी का एक ऐसा ही सरल पात्र है, जो हमारा मन मोह लेता है। प्रस्तुत है कहानी का कुछ अंश - मैं जैसे आसमान से गिर पड़ा। समाज में निहित विसंगतियों, विकृतियों, रूढि़यों का प्रभाव इस शहर में इस भॉंत‍ि होगा, मैं सोच भी नहीं सकता था। मुझे समझ में नहीं आया कि उसके मन में ये कैसे बिठाऊँ कि हम सभी बराबर होते हैं। ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा ये भेदभाव हम मनुष्य ने ही बनाए हैं। ईश्वर ने तो हम सभी को एक समान ही बनाया है। मैंने उसकी करूणायुक्त आँखों को प्यार से देखा। उसके सिर पर हाथ फेरा। पूरी कक्षा की लड़कियों में विस्मय झलक रहा था। मैंने प्यार से उसका नाम पूछा। वह बोली - फुलमतिया। कौन थी ये फुलमतिया और लेखक को उसके प्रति इतनी करूणा और संवेदना क्यों थी कि वो समाज के भेदभाव की गंभीर समस्या को लेकर सोचने लगे थे। इन सारे प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए सुनिए कहानी - गुरूदक्षिणा...

अतीत का मोह - डॉ. महेश परिमल

घर की पुरानी चीजों को निकालने का काम जारी था। बेटे को सभी चीजें बेकार लग रही थी। कबाड़ी भी खुश था कि उसे कई कीमती चीजें कम दामों में मिल रही थी। घर के स्टोर के बाद बारी आई घर की छत पर रखे गए सामान की। वहाँ बहुत-सी चीजों के साथ एक पुरानी साइकिल रखी हुर्इ् थी। जब बेटे ने कबाड़ी से साइकिल ले जाने के लिए कहा, तब इतने समय से खामोश होकर मूक दर्शक बनी माँ से नहीं रहा गया। वह बोल उठी- बेटा, इस साइकिल को मत बेचो। ये तुम्हारे स्वर्गीय पिता की अंतिम निशानी है। अमीर बेटे को एक कबाड़ी के सामने अपनी बेइज्जती महसूस हुई। वह झेंप गया और माँ को एक अलग कमरे में ले गया और उसे भला-बुरा कहने लगा। वह अपनी अमीरी की दुहाई दे रहा था और माँ अपने अतीत का मोह छोड़ नहीं पा रही थी। अतीत का मोह किसे नहीं होता ? हर किसी को अपना अतीत प्यारा होता है। हर कोई अपने अतीत के सुनहरे पलों को याद कर उनमें अपना वर्तमान खो देता है और कुछ पल अमूल्य बना लेता है। अतीत से जुड़ना बुरा नहीं है, पर उसे लाश के रूप में ढोते रहना बहुत बुरा है। अतीत का मोह तभी रखना चाहिए जब वह हमें भविष्य में वैसी ही गलती करने से रोक ले। अतीत से जुड़ी कुछ ऐसी ही अमूल्य बातों के बारे में सुनिए इस लेख के माध्यम से...

संबंध दरकने के दिन - डॉ. महेश परिमल

संबंध, वह भी अच्छे संबंध बहुत मुश्क‍िल से बनते हैं। अच्छे संबंधों को लोग अपनी तरफ से निभाने की पूरी कोशिश करते हैं। अच्छे संबंध लोग बनाते ही इसलिए है कि जब हम मुसीबत में हों, परेशानी में हों, तब हमारे संबंधों की लाज रखने के लिए लोग आगे अाएँ और हमें मुसीबतों से बचाएँ या फिर इस मुसीबत में हमारा साथ दें। पर आजकल ऐसा नहीं हो रहा है। इस संबंध पर भी पानी ने गाज गिरा दी है। इस पानी से होने वाले विवाद ने एक झटके में अच्छे संबंधों को अलग कर दिया है। संबंधों की पुख्ता इमारत गिरने में ज़रा भी देर नहीं लगती। मुहावरों की भाषा में कहें तो हमारे चेहरे का पानी ही उतर गया है। कोई हमारे सामने प्यासा मर जाए, पर हम पानी-पानी नहीं होते। हाँ, मौका मिलने पर हम किसी को पानी पिलाने से बाज नहीं आते। अब कोई चेहरा पानीदार नहीं रहा। पानी के लिए पानी उतारने का कर्म हर गली-चौराहों पर आज आम बात हो गई है। संवेदनाएँ पानी के मोल बिकने लगी है। हमारी चपेट में आनेवाला पानी नहीं माँगता। हमारी चाहतों पर पानी फिर रहा है। पानी टूट रहा है और हम बेबस हैं। और क्या-क्या है पानी की हकीकत... ये जानने के लिए सुनिए डॉ. महेश परिमल का आलेख - संबंध दरकने के दिन...

मंगलवार, 29 मार्च 2016

बाल कहानी - चलो आगे

घुड़सवार सैनिक चंद्रदत्त के निकट आ चुके थे और घोड़े की लगाम थामे राजकुमार के आदेश की प्रतीक्षा में खड़े थे। सैनिकों की निगाहें भी पेड़ पर लटकते नरकंकालों पर जा टिकी थी, पर किसी ने कुछ न पूछा और न राजकुमार ने कुछ बताया। चंद्रदत्त ने भुजा हवा में लहराई और संकेत किया - आगे बढ़ चलो। आगे-आगे राजकुमार और पीछे-पीछे उसके सैनिक। अभी कुछ ही दूर बढ़े होंगे कि सामने एक नदी लहराती हुई दिखाई पड़ी। उसकी तरंगे जोर-जोर से दोनों किनारों से टकराकर घोर गर्जना कर रही थी। पहाड़ी नदी को इस भयानक बाढ़ में पार करना असंभव था। फिर भी राजकुमार आगे बढ़ता गया.. बढ़ता गया। वो कहाँ जा रहा था और किस लिए जा रहा था, उसे सफलता मिली कि नहीं, उसके साथ कौन था, उसे और कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा, ये सारी बातें जानने के लिए सुनिए कहानी, चलो आगे...

बाल कहानी - जादूगर का महल

एक जादूगर ने घने जंगल में अपने जादू के बल पर सुंदर महल बनाया था। दिन में वह वेश बदलकर राजा के राज्य में घूमता और रात में अपने महल में आराम करता। उसे राज्य की जो भी वस्तु अच्छी लगती उसे अपनी उंगलियों के जादू से अपने वश में कर लेता और अपने महल में पहुँचा देता। प्रजा और राजा सभी अपनी वस्तुओं के गायब हो जाने के कारण बहुत दुखी और परेशान रहा करते थे। चोर को पकड़ने के लिए अलग-अलग उपाय किए गए लेकिन सारे बेकार गए। चोर पकड़ में ही न आता था। पलक झपकते ही वस्तु गायब हो जाती थी। राजा का हाथी, घोड़ा, गाय आदि जानवर भी एक-एक कर गायब होने लगे। तब ऐसा क्या हुआ कि जादूगर पकड़ा गया और सारी चीजें भी वापस मिल गई। इस चमत्कार को किसने किया और राजा ने उसे क्या ईनाम दिया, ये जानने के लिए सुनिए कहानी- जादूगर का महल...

बाल कहानी - तेनालीराम

तेनालीराम राज्य के कार्य में इतना व्यस्त रहता था कि वह अपने पिता के साथ अधिक समय ही नहीं बिता पाता था। इससे नाराज होकर पिता गांव चले जाने का निर्णय लेते हैं। वे अपने पुत्र का चेहरा तक नहीं देखना चाहते हैं। पिता को रोकने का साहस तेनालीराम में न था। वह अपनी परेशानी राजा को भी नहीं बताता किंतु राजा को चाटुकारों से इस बात को पता चल जाता है और वह उनके कान भरते हैं कि तेनालीराम के पिता का सम्मान करने के लिए उन्हे राजमहल बुलाया जाए। राजा उनकी बात मान लेते हैं। महल लौटने पर पिता को अपने पुत्र की तारीफ सुनकर अपने लिए निर्णय पर पछतावा होता है, लेकिन कुछ समय बाद ही उनका पछतावा खुशी में बदल जाता है। वो किस तरह? यह जानने के लिए सुनिए कहानी पिता और पुत्र की अर्थात तेनालीराम की...

बाल कहानी - पूजा का सच

राजा मृणालसेन ईश्वर के भक्त थे। राज्य पर ईश्वर की कृपा रहे, इसके लिए उन्होंने एक पुरोहित नियुक्त किया था। वह मृणालसेन के नाम पर ईश्वर की भक्त‍ि किया करते थे। इस कार्य के लिए उन्हें सौ स्वर्ण मुद्राएँ माहवार मिला करती थी। दीप, धूप, तेल, अगरबत्ती आदि राज्य के एक व्यापारी की दुकान से आया करती थी। व्यापारी जानता था कि यह सामग्री राजा मृणालसेन के पूजा कार्य के लिए जाया करती है। इस सब सामग्री के लिए राजकोष से हर माह रूपया निकलता था, लेकिन व्यापारी तक रूपया पहुँचता ही नहीं था। वह सारा रूपया लालची कोषाध्यक्ष हड़प कर जाता था। व्यापारी के बेटे को जब ये बात मालूम हुई तो उसने इसका विरोध किया और अपने पिता को अन्याय सहन न करने की सलाह दी मगर पिता ने यह कहकर उसे शांत कर दिया कि जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा। पिता और पुत्र की यह बात राह चलते राजा ने सुन ली। उन्होंने क्या न्याय किया, ये जानने के लिए सुनिए बाल कहानी - पूजा का सच...

सोमवार, 28 मार्च 2016

बेदाग सोनोवाल पर भाजपा का भरोसा



आज हरिभूमि में प्रकाशति मेरा आलेख

बाल कहानी - वीणा की आवाज

लेख‍िका शकुंतला दास ने यह बाल कहानी बड़े ही अनोखे ढंग से लिखी है। छोटे से गांव में सोमा नाम का एक लड़का रहता था। वह बहुत ही दयालु था। हर किसी के दुख-सुख में हमेशा आगे रहता था। पेट भरने के लिए वह लोगों की गाय-भैंस चराकर अपना गुजारा चलाता था। एक दिन उसे पशुओं को लेकर घर लौटते समय कमर में तेज दर्द हुआ। तब जंगल में एक बाबा ने उसे एक अनोखी वीणा दी, जिसकी मधुर ध्वनि सुनकर उसका सारा दर्द दूर हो गया और वह पूरी तरह से ठीक हो गया। बस फिर क्या था, बाबा ने उपहार के रूप में वह वीणा उसे दे दी। बिना किसी लालच के वह उस वीणा का उपयोग कर लोगों को स्वस्थ्‍ कर देता था। उसी गांव का एक लड़का लालची था, उसने उसकी वीणा का लालच में आकर उपयोग किया और उसे उसकी सजा भी मिली। सजा किस तरह से मिली, यह जानने के लिए सुनिए कहानी - वीणा की आवाज...

बाल कहानी - अनोखी दवा

कहानीकार परशुराम संबल की यह बाल कहानी जर्मनी के सम्राट जोसेफ द्व‍ितीय की दयालुता का परिचय देती है। वे एक शासक होकर भी अपनी प्रजा के छोटे-से छोटे दुख से दुखी हो जाया करते थे और उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करते थे। उनकी दयालुता के चर्चे प्रजा की जबान पर थे। ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं, धन-दौलत का लालच नहीं और अमीर-गरीब का कुटील व्यवहार नहीं, ये सारी उनकी स्वभावगत विशेषता थी, जिसके कारण उन्होंने एक गरीब परिवार की मदद की और एक नन्हे बालक को भिखारी बनने से बचा लिया। यह कहानी ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है। तो सुनिए कहानी- अनोखी दवा...

कहानी - वैरागी - जयशंकर प्रसाद

दिव्य दृष्टि के श्रव्यसंसार में सुनिए जयशंकर प्रसाद की कहानी - वैरागी... प्रस्तुत है कहानी के कुछ अंश... वैरागी ने कुछ सूखी लकडिय़ाँ सुलगा दीं। अन्धकार-प्रदेश में दो-तीन चमकीली लपटें उठने लगीं। एक धुँधला प्रकाश फैल गया। वैरागी ने एक कम्बल लाकर स्त्री को दिया। उसे ओढक़र वह बैठ गई। निर्जन प्रान्त में दो व्यक्ति। अग्नि-प्रज्वलित पवन ने एक थपेड़ा दिया। वैरागी ने पूछा-'कब तक बाहर बैठोगी?'' ''रात बिता कर चली जाऊँगी, कोई आश्रय खोजूँगी; क्योंकि यहाँ रहकर बहुतों के सुख में बाधा डालना ठीक नहीं। इतने समय के लिए कुटी में क्यों आऊँ?'' वैरागी को जैसे बिजली का धक्का लगा। वह प्राणपण से बल संकलित करके बोला-''नहीं-नहीं, तुम स्वतन्त्रता से यहाँ रह सकती हो।'' ''इस कुटी का मोह तुमसे नहीं छूटा। मैं उसमें समभागी होने का भय तुम्हारे लिए उत्पन्न न करूँगी।''-कहकर स्त्री ने सिर नीचा कर लिया। वैरागी के हृदय में सनसनी हो रही थी। वह न जाने क्या कहने जा रहा था, सहसा बोल उठा- ''मुझे कोई पुकारता है, तुम इस कुटी को देखना!''-यह कहकर वैरागी अन्धकार में विलीन हो गया। स्त्री अकेली रह गई।

कहानी - अपराधी - जयशंकर प्रसाद

वनस्थली के रंगीन संसार में अरुण किरणों ने इठलाते हुए पदार्पण किया और वे चमक उठीं, देखा तो कोमल किसलय और कुसुमों की पंखुरियाँ, बसन्त-पवन के पैरों के समान हिल रही थीं। पीले पराग का अंगराग लगने से किरणें पीली पड़ गई। बसन्त का प्रभात था। युवती कामिनी मालिन का काम करती थी। उसे और कोई न था। वह इस कुसुम-कानन से फूल चुन ले जाती और माला बनाकर बेचती। कभी-कभी उसे उपवास भी करना पड़ता। पर, वह यह काम न छोड़ती। आज भी वह फूले हुए कचनार के नीचे बैठी हुई, अर्द्ध-विकसित कामिनी-कुसुमों को बिना बेधे हुए, फन्दे देकर माला बना रही थी। भँवर आये, गुनगुनाकर चले गये। बसन्त के दूतों का सन्देश उसने न सुना। मलय-पवन अञ्चल उड़ाकर, रूखी लटों को बिखराकर, हट गया। मालिन बेसुध थी, वह फन्दा बनाती जाती थी और फूलों को फँसाती जाती थी। द्रुत-गति से दौड़ते हुए अश्व के पद-शब्द ने उसे त्रस्त कर दिया। वह अपनी फूलों की टोकरी उठाकर भयभीत होकर सिर झुकाये खड़ी हो गई। राजकुमार आज अचानक उधर वायु-सेवन के लिये आ गये थे। उन्होंने दूर ही से देखा, समझ गये कि वह युवती त्रस्त है। बलवान अश्व वहीं रुक गया। राजकुमार ने पूछा-''तुम कौन हो?'' कुरंगी कुमारी के समान बड़ी-बड़ी आँखे उठाकर उसने कहा-''मालिन!'' राजकुमार और मालिन के बीच का परिचय उन्हें किस मोड़ पर ले आया, दोनों के बीच एेसा कौन-सा रिश्ता बना जिसने इस कहानी के शीर्षक 'अपराधी' को सार्थन कर दिया, इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए सुनिए कहानी, अपराधी...

रविवार, 27 मार्च 2016

कहानी - विजया - जयशंकर प्रसाद

कहानी लेखन के क्षेत्र में प्रसाद जी आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभकर्ता माने जाते हैं। अपने जीवनकाल में प्रसाद जी ने कुल 72 कहानियाँ लिखी हैं। उनकी अधिकतर कहानियों में भावना की प्रधानता देखने को मिलती है किंतु उन्होंने यथार्थ की दृष्टि से भी कुछ श्रेष्ठ कहानियाँ लिखी हैं। उनकी वातावरणप्रधान कहानियाँ अत्यंत सफल हुई हैं। उन्होंने ऐतिहासिक, प्रागैतिहासिक एवं पौराणिक कथानकों पर मौलिक एवं कलात्मक कहानियाँ लिखी हैं। ये कहानियाँ भावनाओं की मिठास तथा कवित्व से पूर्ण हैं। प्रसाद जी भारत के उन्नत अतीत का जीवित वातावरण प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। उनकी कितनी ही कहानियाँ ऐसी हैं जिनमें आदि से अंत तक भारतीय संस्कृति एवं आदर्शो की रक्षा का सफल प्रयास किया गया है। उनकी कुछ श्रेष्ठ कहानियों में से ही एक है, विजया...

कहानी - बेड़ी - जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८८९ - १४ जनवरी १९३७) हिन्दी साहित्य जगत के प्रसि‍द्ध कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। देखा जाए तो जयशंकर प्रसाद एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरव करने लायक कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए है; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक चाव से पढते हैं। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की। उनकी कहानियों में भावनाओं की अनुपम छटा देखने को मिलती है। प्रस्तुत है ऐसी ही एक भावपूर्ण कहानी बेड़ी...

शनिवार, 26 मार्च 2016

भोपाल शहर को समर्पित कविता

कहा जाता है, तालों में ताल भोपाल... और इसी भोपाल को समर्पित है यह कविता... जो हमें भोपाल की खूबसूरती और अपनेपन का अहसास करवाती है। इस कविता के लिए हम आभारी हैं अपने वॉटसअप मित्रों के, जिन्होंने यह कविता हम तक पहुँचाई, तो इसी धन्यवाद के साथ सुनिए भोपाल की शान में यह कविता...

बाल कविता - सोहनलाल द्विवेदी

सोहनलाल द्विवेदी हिंदी काव्य जगत की अमूल्य निधि हैं। ऊर्जा और चेतना से पूरम्पूर रचनाओं के रचयिता सोहनलाल, महात्मा गांधी के जीवन दर्शन से अधिक प्रभावित हुए और उन्होंने कई ओजपूर्ण कविताओं का सृजन किया। उन्होंने कई बालोपयोगी कविताएँ भी लिखी हैं। प्रस्तुत है उनकी बाल कविता...

बाल कविता - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'


शुक्रवार, 25 मार्च 2016

माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिंदी कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में गुप्त जी का यह सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं। यहाँ प्रस्तुत है ऐतिहासिक घटना से जुड़ी उनकी एक बाल कविता, माँ कह एक कहानी ...

छोटी-सी हमारी नदी - रविन्द्रनाथ टैगोर

रवीन्द्रनाथ टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य जगत के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। वे बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नव प्राण फूँकने वाले युगदृष्टा थे। हमारे भारत के एकमात्र ऐसे कवि जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। यहाँ प्रस्तुत है उनकी बाल कविता छोटी-सी हमारी नदी...

कविताएँ - भगवतीचरण वर्मा

साहित्य जगत के जाने-माने साहित्यकार भगवतीचरण वर्माजी की कविताओं का आनंद लीजिए -

मंगलवार, 22 मार्च 2016

तकसीम - गुलज़ार

हिंदी सिनेमा जगत के जाने-माने गीतकार गुलज़ार की यह कहानी सच्चाई के धरातल पर खड़ी अनुभव की लेखनी से सजी शब्दों की एक ऐसी इमारत है, जिसमें प्रवेश करती ही आँखें भीग जाती हैं और अंतिम भाग तक आते-आते ये भीगी आँखें बरस पड़ती है। आप भी कुछ फुरसत के पल निकालकर पलकों की कोर पर ये भीगापन महसूस कीजिए...

सोमवार, 21 मार्च 2016

अनमोल वचन

जीवन में जब-जब हताशा और निराशा के क्षण आते हैं,जब कोई रास्ता नहीं सूझता, अँधेरे हमें डराने लगते हैं, तब अनमोल वचन हमें रास्ता दिखाते हैं। हमारे भीतर आशा का दीप जलाते हैं। आइए सुनते हैं ऐसे ही जोश से भरे अनमोल वचन...

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 हरिभूमि में प्रकाशित मेरा आलेख

अनाथ लड़की - मुंशी प्रेमचंद

प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। वैसे तो इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव हैं किन्तु साहित्य जगत में प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। हिंदी साहित्य जगत में उनका योगदान अतुलनीय है। प्रस्तुत है उनकी एक कहानी अनाथ लड़की...

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठि‍त पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी सुंदर चित्रण हुआ है। यहाँ पर प्रस्तुत है उनकी प्रसिद्ध कविता -

रविवार, 20 मार्च 2016

कल कहाँ जाओगी - पद्मा सचदेव

पद्मा सचदेव एक भारतीय कवयित्री और उपन्यासकार हैं। वे डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री हैं। वे हिन्दी में भी लिखती हैं। "मेरी कविता मेरे गीत" के लिए उन्हें 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्हें वर्ष 2001 में पद्म श्री और वर्ष 2007-08 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कबीर सम्मान प्रदान किया गया। प्रस्तुत कहानी उनकी एक प्रसिद्ध कहानी है।

होली पर कुछ बाल कविताएँ - हरीश परमार

बाल कविताओं के क्षेत्र में हरीश परमार एक जाना-पहचाना नाम है। इन कविताओं में हरीश परमार ने होली की मस्ती के बीच ममत्व और अपनेपन का रंग बिखेरा है, जो रिश्तों को और मजबूत बनाता है। आप भी अपनापे के इन रंगों से सराबोर हो जाइए...

देख बहारें होली की - नज़ीर अकबराबादी

होली का हुडदंग, होली की मस्ती, होली की शरारतें, होली का माहौल सभी कुछ उमंग, उत्साह और खुशी से भरा होता है। इसी माहौल को अपने शब्दों में व्यक्त किया है एक अनोखे तरीके से... नज़ीर की यह रचना कई सालों बाद भी आज के वातावरण से मेल खाती है। रंगों के त्यौहार का एक अलग ही मजा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। तो आप भी शामिल हो जाइए इन रंगों में और देखिए बहारें होली की...

शनिवार, 19 मार्च 2016

रीछ का बच्चा - नज़ीर अकबराबादी

नज़ीर अकबराबादी ने अपनी शायरी में साधारण से साधारण का भी क्या खूब वर्णन किया है। मेलों-ठेलों, तैराकी, चिडि़याँ, जानवरों की लड़ाई, लैला-मजनुं के किस्से सभी कुछ उनकी रचना में देखने को मिल जाता है। रीछ का बच्चा उनकी लोकप्रिय रचना है। आप भी इसका आनंद लीजिए...

मुफ़लिसी - नज़ीर अकबराबादी

मुफ़लिसी यानी कि गरीबी आदमी को कितना लाचार और बेबस बना देती है, इसका शाब्दिक वर्णन नज़ीर अकबराबादी ने क्या खूब किया है - जब रोटियों के बँटने का आकर पड़े शुमार, मुफलिस को देवें एक तवंगर को चार-चार, गर और माँगे वह तो उसे झिड़के बार-बार, इस मुफ़लिसी का आह बयां क्या करूँ मैं यार, मुफ़लिस को इस जगह भी चबाती है मुफ़लिसी... सामना कीजिए इस रोचक रचना का...

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

कन्हैया का खेलकूद - नज़ीर अकबराबादी

तारीफ़ करूँ अब मैं क्या-क्या उस मुरली अधर बजैया की, नित सेवा कुंज फिरैया की और वन वन गऊ चरैया की... नज़ीर ने भगवान कृष्ण को भी अपनी रचनाओं में शामिल करते हुए भावों की सुंदर अभिव्यक्ति दी है, जो देखते ही बनती है। आप भी इस सुंदर रचना का श्रवणपान कर अभिभूत हो जाइए...

आदमीनामा - नज़ीर अकबराबादी

मरने में आदमी ही कफ़न करते हैं तैयार, नहला-धुला उठाते हैं कांधे पे कर सवार, कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार, सब आदमी ही करते हैं मुरदे के कारोबार, और वह जो मर गया है, सो है वह भी आदमी... आदमी की सच्चाई को बयां करती इस रचना का आनंद लीजिए...

रोटियाँ - नज़ीर अकबराबादी

रोटियाँ - नज़ीर अकबराबादी की यह प्रसिद्ध रचना आज के दौर में भी अपनी पहचान बनाए हुए है। यह समाज की वो सच्चाई है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

बुधवार, 16 मार्च 2016

बंजारानामा - नज़ीर अकबराबादी

नज़ीर अकबराबादी मृत्यु के करीब 300 वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं। उनकी कविताओं में ताज़गी देखते ही बनती है। साधारण से साधारण विषय पर भी वो गंभीरता से अपनी बात रखते हैं। हबीब तनवीर का नाटक 'आगरा बाज़ार' उन्हीं के गीतों से सजा और सॅंवरा है। यहॉं प्रस्तुत है उनकी एक प्रसिद्ध रचना - जब लाद चलेगा बंजारा...

नज़ीर अकबराबादी - एक परिचय

उर्दू के मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी ने लगभग 95 वर्ष की आयु भोगी और सच्चे अर्थों में भोगी। एश-ओ-आराम से न रहने पर भी उन्होंने जीवन का पूरा आनंद लिया। संसार की तथाकथित छोटी से छोटी बातों में भी पूरी दिलचस्पी ली और उन सभी बातों को इस तरह सामने रख दिया कि लोग भी जीवन का पूर्ण उपयोग कर सकें। उन्होंने जन्म से लेकर मरण पर्यन्त पूरे जीवन का इस उत्साह के साथ अपनी शायरी में वर्णन किया है कि यह वर्णन कहीं और नहीं मिलता। उनकी शायरियों को यदि सहेजकर रखा गया होता तो उनकी संख्या दो लाख से भी अधिक होती, किंतु अफसोस लगभग 6 हजार शे'र ही उपलब्ध हो पाए हैं। वह भी उनके शिष्यों की उदारता का ही परिणाम है।

अॅंधेरे में उम्मीद - डॉ. श्रीराम परिहार

डॉ. श्रीराम परिहार का यह ललित निबंध हमारे निराश मन-मस्तिष्क को एक नई ऊर्जा से भर देता है। आशा संघर्ष पथ की प्रेरणा है। नियति की जकड़नों और विडम्बनाओं से वही उबारती है। आशा के सहारे ही व्यक्ति पहाड़ जैसी जिंदगी काट लेता है। पेड़ वसंत की आशा में पतझड़ की मार सह लेता है। आशा के भी अलग-अलग तेवर होते हैं। अलग-अलग किस्म का जुझारूपन होता है। यही आशा हमारे जीवन की कठिनाइयों में हमारा मार्ग प्रशस्त करती है ...

सोमवार, 14 मार्च 2016

कहानी - दूसरा हार

बाल कहानी - दूसरा हार... राजा की न्यायप्रियता का परिचय देती है। एक ईमानदार और न्यायप्रिय राजा ही प्रजा का सच्चा हितैषी होता है। वह निस्वार्थ भाव से न्याय करता है और अपराधी को दंड देता है। कुछ इसी तरह का संदेश देती है, यह कहानी...

चाँद का कुरता - रामधारी सिंह 'दिनकर'

रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गए। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। बालमन को समझने का प्रयास भी उन्होंने बड़ी चतुराई के साथ किया है। प्रस्तुत है उसी संदर्भ में उनकी यह बाल कविता - चाँद का कुरता...

कविता - डॉ. चन्द्रकुमार जैन

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे डॉ. चन्द्रकुमार जैन काव्यजगत का एक जाना-पहचाना नाम है। हिंदी गीत, कविता, ग़ज़ल के सृजनधर्मी डॉ. जैन की लेखनी में सरस, सरल एवं सटीक शब्दों का प्रयोग उन्हें एक नई पहचान देता है। प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ...

ग़ज़ल - डॉ; चन्द्रकुमार जैन

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे डॉ. चन्द्रकुमार जैन काव्यजगत का एक जाना-पहचाना नाम है। हिंदी गीत, कविता, ग़ज़ल के सृजनधर्मी डॉ. जैन की लेखनी में सरस, सरल एवं सटीक शब्दों का प्रयोग उन्हें एक नई पहचान देता है। प्रस्तुत है उनकी कुछ हिंदी ग़ज़ल...

गुरुवार, 10 मार्च 2016

आँचल माँ का - छाँव नीम की - डॉ. श्रीराम परिहार

मॉं और नीम भारतीय जीवन की अवधारणाओं को अपने संस्कारों से अटाटूट तरीके से आत्मसात किए हुए हैं। दुनिया की सारी कड़वाहट अपने में समेट कर एक निरोग जीवन सृष्टि को दान कर देते हैं। सावन में पानी की बूँदें पके जामुन की तरह टपकती है। वर्षा में निथरता हुआ नीम अपनी सघनता में गमगमा उठता है। पकी निबोली धरती के ऊपर इच्छाओं की तरह झरने लगती है। ऐसी ही स्नेह फुहारों से सुसज्जित है, डॉ. श्रीराम परिहार का यह ललित निबंध...

बुधवार, 9 मार्च 2016

कहानी - प्यारी राजकुमारियॉं

राजगढ़ के राजा सूर्यदेव को पु्त्र न होने का दुख था। वे इसी चिंता में रहते थे कि उनके बाद राज्य का भार कौन संभालगा ? लेकिन उनकी दोनों पुत्रियों ने उनकी इस चिंता को अपनी बु‍द्धि‍मानी और साहस से दूर कर दिया। अब वे बिलकुल चिंतामुक्त थे। सुनिए प्यारी राजकुमारियों की ये प्यारी-सी कहानी...

मंगलवार, 8 मार्च 2016

बच्चों पर अपेक्षाओं का बोझ न डालें






 4 मार्च को हरिभूमि जबलपुर संस्करण में प्रकाशित मेरा आलेख

बाल कहानी - जीत गए तुम

बाल कहानियों की पिटारी में से आज लेकर आए हैं बाल पत्रिका नंदन की एक कहानी - जीत गए तुम । स्वयं की वीरता साबित करने के लिए अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग जरूरी नहीं, स्नेह जरूरी है। यह कहानी कुछ इसी तरह का संदेश देती है।

महिला दिवस पर विशेष कविता

एक कलाकार अपनी कला को नाम जरूर देता है। एक रचनाकार की रचना भी उसके नाम से पहचानी जाती है लेकिन भारतीय संस्कृति में एक नारी ही ऐसी रचनाकार है जो अपनी रचना को नाम नहीं दे पाती है। उसकी सृजन कृति उसकी कोख से जन्म जरूर लेती है लेकिन उसे नाम पिता का ही मिलता है। जब हम स्वयं को ये अधिकार दे देंगे कि संतान के साथ माता का नाम ही संवैधानिक रूप से जोड़ा जाए तभी वो सही अर्थों में महिला दिवस होगा। महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है यह कविता...

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