गुरुवार, 31 मार्च 2016
मीनाकुमारी पर विशेष आलेख - तन्हाई का सफ़रनामा...
मुंबई में एक क्लीनिक के बाहर मास्टर अली बक्श बड़ी बेसब्री से अपनी तीसरी औलाद के जन्म का इंतजार कर रहे थे। दो बेटियों के जन्म लेने के बाद वह इस बात की दुआ कर रहे थे कि अल्लाह इस बार बेटे का मुंह दिखा दे। तभी अंदर से बेटी होने की खबर आई, तो वह माथा पकड़ कर बैठ गए। मास्टर अली बख्श ने तय किया कि वह बच्ची को घर नहीं ले जाएंगे और उसे अनाथालय छोड़ आए, लेकिन बाद में पत्नी के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया। बच्ची का चांद-सा माथा देखकर उसकी मां ने उसका नाम रखा माहजबीं। बाद में यही माहजबीं फिल्म इंडस्ट्री में मीना कुमारी के नाम से मशहूर हुईं। अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। महजबीं को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने खड़ा कर दिया गया। इस तरह बीस फिल्में महजबीं (मीना) ने बाल कलाकार के रूप में न चाहते हुए भी की। महज़बीं को अपने पिता से नफरत सी हो गई और पुरुष का स्वार्थी चेहरा उसके जेहन में दर्ज हो गया। हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही के व्यक्तित्व में मीना ने अपना सुनहरा भविष्य देखा। वे उनके नजदीक होती चली गईं। नतीजा यह रहा कि दोनों ने निकाह कर लिया। लेकिन यहाँ उसे कमाल साब की दूसरी बीवी का दर्जा मिला। उनके निकाह के एकमात्र गवाह थे जीनत अमान के अब्बा अमान साहब। गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू परदे से उतरकर मीना की असली जिंदगी में समा गई थी। मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले खाली किए। धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगीं। जब मौका मिला एक शीशी गटक ली। दादा मुनि अशोक कुमार, मीना कुमारी के साथ अनेक फिल्में कर चुके थे। एक कलाकार का इस तरह से सरे आम मौत को गले लगाना उन्हें रास नहीं आया। वे होमियोपैथी की छोटी गोलियाँ लेकर इलाज के लिए आगे आए। लेकिन जब मीना का यह जवाब सुना 'दवा खाकर भी मैं जीऊँगी नहीं, यह जानती हूँ मैं। इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो। शराब के कुछ घूँट गले के नीचे उतर जाने दो' तो वे भीतर तक काँप गए। ऐसी ही कुछ खास बातें जानिए इस ऑडियो के माध्यम से...
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दिव्य दृष्टि,
सिनेमा
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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