मंगलवार, 8 मार्च 2016
महिला दिवस पर विशेष कविता
एक कलाकार अपनी कला को नाम जरूर देता है। एक रचनाकार की रचना भी उसके नाम से पहचानी जाती है लेकिन भारतीय संस्कृति में एक नारी ही ऐसी रचनाकार है जो अपनी रचना को नाम नहीं दे पाती है। उसकी सृजन कृति उसकी कोख से जन्म जरूर लेती है लेकिन उसे नाम पिता का ही मिलता है। जब हम स्वयं को ये अधिकार दे देंगे कि संतान के साथ माता का नाम ही संवैधानिक रूप से जोड़ा जाए तभी वो सही अर्थों में महिला दिवस होगा।
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है यह कविता...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बहुत सुन्दर लगी कविता ..
जवाब देंहटाएंसामयिक प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!