शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

गीजूभाई की कहानियाँ - 10 - कौआ और गेहूँ का दाना

कौआ और गेहूँ का दाना.... कहानी का अंश... एक किसान था। उसकी घरवाली एक दिन गाँव के गोईंड़े में बैठकर गेहूँ साफ कर रही थी। इसी बीच एक कौआ आया और डलिया में से एक दाना लेकर पेड़ पर जा बैठा। किसान की घरवाली बहुत गुस्सा हो गई और उसने कौए के एक पत्थर मारा। कौआ ‘काँव-काँव’ करता हुआ पेड़ पर से नीचे आ गिरा और गेहूँ का एक दाना पेड़ की एक दरार में घुस गया। किसान की घरवाली लपककर कौए के पास पहुँची और उसका एक पंख पकड़कर बोली, "ला, गेहूँ का मेरा दाना ला, नहीं तो मैं तुझे अभी मार डालूँगी। कौए ने कहा, "मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हारा गेहूँ का दाना अभी ला देता हूँ।" इसके बाद कौआ पेड़ के पास गया। दाना पेड़ की दरार में जा पड़ा था, इसलिए उसने पेड़ से कहा, "पेड़, पेड़। दाना दो।" पेड़ बोला, "मैं दाना नहीं दूँगा।" इस पर कौआ बढ़ई के पास पहुँचा और उसने बढ़ई से कहा: बढ़ई, बढ़ई! पेड़ काट डालो। पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है। माँगने पर भी नहीं देता है। बढ़ई बोला, "मैं पेड़ को नहीं काटूंँगा।" इस पर कौआ राजा के पास पहुँचा। कौए ने राजा से कहा: राजा, राजा! बढ़ई को दण्ड दो। बढ़ई पेड़ नहीं काटता। पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है। माँगने पर भी देता नहीं है। राजा बोला, "मैं तो बढ़ई को दण्ड नहीं दूँगा।" आगे क्या हुआ? क्या कौए को गेहूँ का दाना मिला? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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