सोमवार, 4 जुलाई 2016

खंड काव्य - माँ मन्थरा - भाग - 1 मनन - प्रभाकर पाण्डेय

काव्य का अंश... सुप्रभात की सुरभि वेला में, उदित हुआ ज्यों प्रभाकर, अविजित उसका रूप देख, तम भगने में नहीं किया देर ।१। उपवन हो गया सजा भरा, कलियाँ भी मुस्कुराईं, पुष्पों के सुगंधित दौड़ में, सुधाभरी पावन वेला आयी ।२। देख प्रकृति का अनुपम उपहार, विहगों ने छेड़ी मीठी तान, सुगंधित मलय बयार चली, करने लगे सब प्रभु का गान ।३। मस्त हुआ हर तृण,पादप, भौंरों ने गाना शुरु किया, सरिता बह रही अविराम, पथिकों को अमिय अभिराम दिया ।४। घूमने लगे वन्य-जीव, माँ ने बेटे को पुचकारा, कृषक चला खेत की ओर, बह चली प्रेम की धारा ।५। आगे का खंडकाव्य जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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