मंगलवार, 5 जुलाई 2016
बाल कविता -मई-जून गए आई जुलाई - घनश्याम मैथिल"अमृत"
मई-जून गए आई जुलाई... कविता का अंश...
मई-जून गए , आई जुलाई ,
खोलो पुस्तक, करो पढाई,|
कान खोल कर यह सुन लें सब,
खेल-कूद का समय नहीं अब ,|
बस्ते से अब करो दोस्ती ,
बच्चों इसमें छुपी भलाई ,|
होम-वर्क करना है भारी,
अव्वल आने की तैयारी,
लक्ष्य बना कर चलो अभी से,
जीवन पथ है कड़ी चढाई ,|
कम्प्यूटर मोबाईल छोडो,
पुस्तक से अब नाता जोड़ो,
फेस बुक व्हाट्स एप से दूर,
कडुवी याद रखो सच्चाई ,|
टीचर जी की मानो बात,
उनसे जीवन में प्रभात ,|
अनुशासन और सदाचार से,
मिलती सदा सफलता भाई,|
शिक्षा से भगता अंधियारा ,
ज्ञान दीप लाता उजियारा,
छूना है आकाश अगर तो,
श्रम की करो।कमाई ,|
यही समय आगे बढ़ने का,
प्रगति की सीढ़ी चढ़ने का,
बीता समय नहीं फिर आता,
करो न इसमें कोई ढिलाई ।
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बहुत अच्छी रचना घनश्याम जी.
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