सोमवार, 4 जुलाई 2016
कविताएँ - अनिरुद्ध सिंह सेंगर
ईश्वर की खोज... कविता का अंश...
मैं ईश्वर खोजने निकला
मैंने कई दरवाज़े खटखटाये
कई दरवाज़ों की घंटियाँ बजाई
कई दरवाज़ों पर मत्था टेका
फिर एक दिन मुझे अचानक
ईश्वर का दरवाज़ा मिल गया।
मैं ईश्वर के दरवाज़े पर खड़ा था,
मैं दरवाज़ा खटखटा देता,
तो ईश्वर बाहर निकल आता।
पर मैं साँस रोके खड़ा रहा
मैंने दरवाज़ा नहीं खटखटाया,
मैं दरवाज़े से बिना आवाज़ किये
वापिस हो लिया
मैंने अपने पैर के जूते उतार लिये
कहीं जूतों की आहट सुनकर
वह बाहर न आ जाये।
फिर मैं मज़े से
गलियों में दरवाज़े खटखटाता रहा
ईश्वर को ज़ोर-ज़ोर से पुकारता रहा
सिवाय उस दरवाज़े और
उस गली को छोड़कर जिसमें वह रहता था।
फिर एक दिन मुझे लगा कि-
कहीं वह अपनी गली के दरवाज़े पर
आकर खड़ा न हो जाये
तो मैंने उस गली की ओर जाना छोड़ दिया
मैं दूसरे मोहल्ले में,
दूसरी गलियों में
ईश्वर को आवाज़ देने लगा। इस कविता को पूरा सुनने के लिए और इसके साथ ही अन्य कविताओं का आनंद लेने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
सम्पर्क - aniruddhsengar03@gmail.com, sengar.anirudha@yahoo.com
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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प्रिय अनिरूद्ध जी, आपकी इस रचना में बहुत दम है. वाकई ये रचना दिल को छू लेने वाली है.
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया.
"हिंदी सक्सेस डॉट कॉम"