शनिवार, 2 जुलाई 2016
पंचतंत्र की कहानियाँ - 26 - रंग में भंग
रंग में भंग... कहानी का अंश...
एक बार जंगल में पक्षियों की आम सभा हुई। पक्षियों के राजा गरुड़ थे। सभी गरुड़ से असंतुष्ट थे। मोर की अध्यक्षता में सभा हुई। मोर ने भाषण दिया 'साथियो, गरुड़ जी हमारे राजा हैं पर मुझे यह कहते हुए बहुत दुख होता हैं कि उनके राज में हम पक्षियों की दशा बहुत ख़राब हो गई हैं। उसका यह कारण हैं कि गरुड़जी तो यहाँ से दूर विष्णु लोक में विष्णुजी की सेवा में लगे रहते हैं। हमारी ओर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता। हमें अपनी समस्याएँ लेकर फरियाद करने जंगली चौपायों के राजा सिंह के पास जाना पडता है। हमारी गिनती न तीन में रह गई हैं और न तेरह में। अब हमें क्या करना चाहिए, यही विचारने के लिए यह सभा बुलाई गई है।
हुदहुद ने प्रस्ताव रखा 'हमें नया राजा चुनना चाहिए, जो हमारी समस्याएँ हल करे और दूसरे राजाओं के बीच बैठकर हम पक्षियों को जीव जगत में सम्मान दिलाए।'
मुर्गे ने बाँग दी 'कुकडूँ कूँ। मैं हुदहुदजी के प्रस्ताव का समर्थन करता हूँ'
चील ने ज़ोर की सीटी मारी 'मैं भी सहमत हूँ।'
मोर ने पंख फैलाए और घोषणा की 'तो सर्वसम्मति से तय हुआ कि हम नए राजा का चुनाव करें, पर किसे बनाएँ हम राजा?'
सभी पक्षी एक दूसरे से सलाह करने लगे। काफ़ी देर के बाद सारस ने अपना मुँह खोला 'मैं राजा पद के लिए उल्लूजी का नाम पेश करता हूँ। वे बुद्धिमान हैं। उनकी आँखें तेजस्वी हैं। स्वभाव अति गंभीर हैं, ठीक जैसे राजा को शोभा देता हैं।'
हार्नबिल ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा “सारसजी का सुझाव बहुत दूरदर्शितापूर्ण है। यह तो सब जानते हैं कि उल्लूजी लक्ष्मी देवी की सवारी है। उल्लू हमारे राजा बन गए तो हमारा दारिद्रय दूर हो जाएगा।”
लक्ष्मीजी का नाम सुनते ही सब पर जादू-सा प्रभाव हुआ। सभी पक्षी उल्लू को राजा बनाने पर राजी हो गए।
मोर बोला 'ठीक हैं, मैं उल्लूजी से प्रार्थना करता हूँ कि वे कुछ शब्द बोलें।'
उल्लू ने घुघुआते कहा 'भाइयो, आपने राजा पद पर मुझे बिठाने का निर्णय जो किया हैं उससे मैं गदगद हो गया हूं। आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मुझे आपकी सेवा करने का जो मौक़ा मिला है, मैं उसका सदुपयोग करते हुए आपकी सारी समस्याएँ हल करने का भरसक प्रयत्न करुँगा। धन्यवाद।'
पक्षी जनों ने एक स्वर में ‘उल्लू महाराज की जय’ का नारा लगाया। इसके आगे की कहानी ऑडियो के माध्यम से जानिए…
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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