गुरुवार, 7 जुलाई 2016
कहानी - छोटी स्कर्ट - लक्ष्मी यादव
छोटी स्कर्ट...
कहानी का अंश...
“दीदी मैं वो अपनी फेवरेट वाली ड्रेस इस बार खोज के रहूँगी। तुम देखना वही वो शोर्ट वाली स्कर्ट और वो फिटिंग वाली टॉप ” कहकर हिम्मी ने जोर से सुकून वाली साँस भरी और अक्टूबर महीने की ताज़ी ठंडी हवा उसके भीतर मन मस्तिस्क में किसी सपने के सच होने जैसे अहसास से जा मिली और ख़ुशी की मीठी चाशनी हिम्मी के चेहरे पर उतर आई |जिसे बहुत अच्छी तरह से महसूस कर लिया था कनिका ने ...| कनिका, हिम्मी के चेहरे को देखकर अपने मन के भाव छिपा ले गयी, बनावटी सा चेहरा बनाकर बोली “हाँ हाँ क्यूँ नहीं बिलकुल तुम अपनी पसंद की ड्रेस ही लेना ...लेकिन ....ज़रा इस बात का भी ख़याल रखना की मम्मी तुम्हारी ड्रेस देखकर कहीं आग बबूला न हो जाए ...|बड़ी बहन कनिका की बात सुनकर हिम्मी तुनक गयी और मुँह बनाते हुए बोली “क्या दी! कपडे मुझे पहनने हैं और पसंद नापसंद मुझे मम्मी की देखनी होगी| ... दी अब.. अब न हम दूध पीते बच्चे तो नही हैं न! कि हमेशा मम्मी कुछ भी अपनी पसंद का लाएँ और हमको पहना दें जिसे पहन हम लॉफिंग बुद्दे की तरह पेट पर हाथ रखकर,जीभ निकालकर मुस्कुरा दें | क्या दी... इट्स टू फनी..... आई कान्ट टेक इट मोर ....... छठी में पढने वाली हिम्मी न जाने क्या क्या बोलती रही और कनिका चुपचाप सुनती रही ...आठवी में पढने वाली कनिका को याद हो आया कि कैसे बचपन से लेकर अब तक उसके और उसके भाई बहनों के सारे कपड़े हमेशा माँ और पापा ही लाते थे या तो खुद अकेले जाकर या बच्चो को साथ ले जाकर ,कभी अगर कनिका को माँ ने मामा, मौसी या किसी के भी साथ भेजा भी तो कपड़े पसंद करते वक़्त जाने क्यूँ कनिका के हाथ किसी और ड्रेस पर होते, नज़रें और मन किसी और ड्रेस पर ...कोई भी ड्रेस पसंद करते हुए कनिका बार बार अपने साथ आये हुए इंसान से यही पूछती कि क्या ये ड्रेस माँ को पसंद आएगी..इसमें मेरे घुटने तो नही दिखेंगे?.या झुकने पर गर्दन से नीचे कुछ ....?हर होली –दिवाली और रक्षाबंधन पर नये कपड़े मिलते थे लेकिन हर बार नये कपड़े पसंद करने में बड़ी ज़द्दोज़हद करनी पड़ती थी कनिका को और आखिरकार जो ड्रेस वो लेकर घर आती वो कनिका से ज्यादा उसकी माँ को पसंद आना ज़रूरी था ,,किसी एग्जाम में बैठने जैसे लगते थे वो लम्हे जब लायी हुई नई ड्रेस माँ के सामने खुलती थी ,,, कनिका की साँसे कुछ पल छुट्टी पर चली जाती थी। आगे की कहानी जानिए ऑडियो की मदद से...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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