सोमवार, 11 जुलाई 2016
कविताएँ - प्रसून जोशी
भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी का नाम हम सभी के लिए एक जाना-पहचाना नाम है। वे संवेदनशील लेखक, गीत और गज़लों के रचियताओं के रूप में अधिक जाने जाते हैं। सुपरहिट फ़िल्म ‘तारे ज़मीन पर’ के गाने ‘मां...’ के लिए उन्हें 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी मिल चुका है। इसके अलावा उनके दिए गए कई विज्ञापनों के शीर्षक लोगों की जबान पर है, जैसे - ‘ठण्डा मतलब कोका कोला’ एवं ‘बार्बर शॉप-ए जा बाल कटा ला’ जैसे प्रचलित विज्ञापनों के कारण उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता मिली। ' तारे ज़ंमीं पर ' और 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्मों के बेहद भावुक और दिल को छू लेने वाले गीत लिखने वाले गीतकार प्रसून जोशी ने मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद एक बेहतरीन कविता लिखी है, जो हिलाकर रख देती है। आइए, सुनते हैं उनकी इस प्रेरक कविता के साथ ही दूसरी कविता...
कविता का अंश... इस बार नहीं
इस बार जब वह छोटी सी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
मैं उसे फू-फू करके नहीं बहलाऊंगा
पनपने दूँगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूँगा
नहीं गाऊँगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा
उतरने दूँगा गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं ना मरहम लगाऊँगा
ना ही उठाऊँगा रुई के फाहे
और ना ही कहूँगा कि तुम आँखे बंद करलो,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूं
देखने दूँगा सबको
हम सबको
खुले नंगे घाव
इस बार नहीं...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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