गुरुवार, 21 जुलाई 2016
कविताएँ - मनोज कुमार ‘शिव’
कविता का अंश...
जिंदगी और जमीन...
पुश्तैनी जमीन का
चार बीघा हिस्सा
हरिया ने
चार दशक पहले
बेचा था भोलू को,
भोलू ने
बिटिया की
शादी के खर्चे के लिए
उस जमीन को बेच डाला कालू को ,
कालू ने
गिरवी रखा उसे
सेठ तुलसीदास के पास
बेटे की पढ़ाई हेतू,
ब्याज
समूल न चुका पाया ,
वो जमीन का हिस्सा
उसने गंवाया,
तुलसीदास ने
आधे दाम पर
दे दिया
वही जमीन का टुकड़ा
सुरेश को,
सुरेश हरिया का पोता है..
आज वही जमीन
पुनः
हरिया के
परिवार के पास
आ गई है,
जमीन वही थी,
लेकिन मालिक बदल गए.. जमीन वही थी,
मालिक
जग छोड़कर चले गए...
साधन मात्र
प्रयोग कर
उस जमीन के टुकड़े को कितनों ने ही
बिता दिया अपना जीवन,
न साथ कोई
लाया था उसे,
न कोई चाहकर भी
साथ अपने नहीं
ले जा सका....
समय की बयार
बहती रही..
जमीन
अपने मालिक बदलती रही..
लोग अपनी उम्र
काटते रहे.....
शायद यही जीवन है....
ऐसी ही अन्य कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
ई - मेल : shivkumarmanoj@gmail.com
मोबाइल – 09459663050,08679146001
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