मंगलवार, 26 जुलाई 2016
चिंतन - आशा अमर है...
लेख के बारे मेंं... आशा अमर है...
आशा जीवन का पर्याय है। आशा के अभाव में मनुष्य केवल जिंदा रहता है। जिंदा मनुष्य और जानवरों में कोई भेद नहीं होता। आशा प्रेरणा की पहली किरण है। प्रकाश का महापुंज है। साँसों की परिभाषा है। रिश्तों की गहराई है। सागर की उफनती लहर है। रेगिस्तान की तपती रेत पर पड़ती बूँद है। खिड़की पर बैठी चिडिय़ा है। घने जंगल में भागती हिरनी है। पतझर के बाद का वसंतोत्सव है।मुट्ठी में कैद रेत का अंतिम कण है। सूने आँगन में खिला फूल है। बादल के गालों से टपका आँसू है। सूखी धरती को सुकून देता मृदु जल है। चातक की आँखों का सुकून है। कवि हृदय की कल्पनाओं का आकार है। लेखक के विचारों का विराम है। प्रेयसी की प्रतीक्षा को मुखरित करती पायल की झँकार है। कोकिला की वाणी से निकली कुहू-कुहू की गूँज है। धुँधली साँझ का रेशमी उजाला है। गहरे अँधकार का टिमटिमाता दीया है। भटकते राही का पथ-प्रदर्शक है। पतझर के पीले पत्तों के बीच अँगड़ाई लेती हरी दूब है। लहलहाती धरती पर खिलती पीली सरसों है। मझधार में नाव खेते नाविक के हाथों की ताकत है। नील गगन में उड़ते पंछी के परों का जोश है। बूढ़े किसान की आँखों से झाँकती मुस्कान है। विधवा के श्वेत-श्याम जीवन में बिखरता इंद्रधनुषी रंग है। नारी का शृंगार है। पुरूष का जीवन संसार है। संसार के हर रिश्ते की मजबूत डोर है। घर का कोलाहल है। बिटिया की खिलखिलाहट है। बेटे का दुलार है। ममत्व की ठंडी बयार है। प्रेम की अविरल धारा है। कठिनाइयों की खाई को पाटती मजबूत शिला है। संपूर्ण जीवन का सार है। ईश्वर से मिला अनमोल उपहार है।
आशा के नए नए रूपों से परिचित होने के बाद भी कई रूप ऐसे हैं जो अभी भी अनदेखे ही हैं। अपने अपने अनुभवों के आधार पर ये रूप परिभाषित होते हैं। जिनके जीवन में ये रूप नहीं होते उनका जीवन स्वयं में ही भार रूप होता है। अत: जीवन को भार विहीन बनाने के लिए आशा का दामन थामना बहुत जरूरी है।
इस अधूरे आलेख को पूरा सुनिए ऑडियो की मदद से...
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