सोमवार, 1 अगस्त 2016
भुट्टे आये बड़े रसीले - घनश्याम मैथिल "अमृत"
कविता का अंश...
भुट्टे आये बड़े रसीले,
दाने जिनके पीले-पीले,|
चूल्हे सिगड़ी गरम गरम हैं ,
भुट्टे देखो नरम नरम हैं ,|
सिंकने पर खुशबु है आती,
खाने को यह जी ललचाती,|
थोडा नींबू नमक लगाओ,
चबा चबा कर इनको खाओ,|
दादा जी के दांत नहीं हैं,
उनको देखो नहीं सताओ,|
दूध भरे यह दाने न्यारे,
बारिश में लगते हैं प्यारे,|
मोतीसे दाने जड़े हुए हैं,
एक कतार में खड़े हुए हैं,|
मुंह पर मूंछें रखें सिकन्दर,
हरे भरे कपड़ों के अंदर ,|
दाने मक्का के पक जाते,
पॉप-कॉर्न हम इनके खाते,|
इनके कई बनते पकवान,
मक्का खूब उगाएं किसान,|
इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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