मंगलवार, 16 अगस्त 2016
शहनाई के सुरों के जादूगर… - बिस्मिल्ला खाँ
लेख का अंश...
संगीत ईश्वर का वरदान है। संगीत के सुर जाति, धर्म, भाषा, देश की सीमाओं से परे होते हैं। शहनाई के सुरों से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने शास्त्रीय परंपरा की एक अलग ही विशिष्टता के साथ शहनाई में नई संभावनाओं की खोज की। उनकी शहनाई के सुरों में गजल की मीठास, ठहराव और सरलता रही है। गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रतीक बिस्मिल्ला खाँ बेहद सीधे, नेक दिल इन्सान थे। धमंड तो उन्हें छू भी नहीं गया था। संगीत की साधना में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देने वाले बिस्मिल्ला खाँ को संगीत विरासत में मिला था। शहनाई के जादूगर बिस्मिल्ला खाँ का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमराव में हुआ था। इनके पिता पैगम्बर बख्श स्वयं एक संगीतकार थे। मामू शहनाई वादक थे। खिलौनों से खेलने की उम्र में ही उनकी ऊँगलियों ने शहनाई की मदद से सुरों का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। पांच साल की उम्र में ही वे अपने मामू के साथ इलाहाबाद में अखिल भारतीय सम्मेलन में शिरकत करने के लिए गए थे। उनका संगीत का सफर बनारस में मंगला गौरी मंदिर में बड़े भाई के साथ शुरू हुआ। वे दोनों भाई मंदिर में शहनाई बजाते थे। पुजारी को उनका शहनाई का सुर इतना मीठा लगा कि उन्होंने उन्हें रोज आरती के समय शहनाई बजाने के लिए कहा और बदले में आठ आना रोज देने का वादा भी किया। साथ ही प्रसाद भी मिलता था। दोनों भाई खुशी-खुशी रोज मंदिर में शहनाई बजाया करते थे। आठ आने में चार पूड़ी और एक दोना सब्जी खरीदकर खाते और अपने दोस्तों को भी खिलाते। प्रसाद का पेड़ा भी उन्हें बड़ा प्रिय था। शहनाई का सफर उन्हें फिल्मों में ले आया। गूँज उठी शहनाई, झनक-झनक पायल बाजे जैसे कई फिल्मों में उनकी शहनाई की धुन सुनी जा सकती है। इस ऑडियो के माध्यम से उनके बारे में और जानकारी प्राप्त कीजिए…
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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