मंगलवार, 30 अगस्त 2016
विज्ञान कविता – टेलीफोन की खोज – सुधा अनुपम
कविता का अंश...
देश था क्यूबा,
शहर हवाना,
शख्स का नाम था म्यूकी,
जिसने पहला फोन बनाया,
लगी जरूरत क्योंकि।
म्यूकी की बीवी थी अपाहिज,
चल-फिर न पाती थी।
जिसकी चिंता हरदम, हरपल,
म्यूकी को खाती थी।
म्यूकी का जब फोन बना,
वो बैठा था तलघर में।
बीवी थी तीसरे माले पर,
बात हुई पलभर में।
म्यूकी का वो फोन कभी भी,
आम नहीं हो पाया,
सन् 1861 में फिर, फिलीप ने इसे बनाया।
दो खाली टिन के डिब्बों के,
बीच से डाली डोर।
एक किनारे पर एक डिब्बा,
दूजा दूसरी ओर।
जो कुछ बोलो आगे बढ़ता,
धागे के कम्पन से।
ऐसा खेल खेलते आए,
हम सभी बचपन से।
धागा हटकर तार आ गए,
विद्युत का सब खेल।
स्वर लहरी को भेजा जिसने,
वो था ग्राहम बेल।
बेल ने सोचा,
क्यों न अपनी बात को भेजा जाए,
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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