सोमवार, 29 अगस्त 2016
लघु कथा - रेणू धर्म - अर्चना सिंह ‘जया’
कथा का अंश... आज सुबह से उठकर मेरा मन कुछ अनमना -सा हो रहा था। जैसे-तैसे कर मैंने पति के लिए नाश्ता बनाकर डिब्बे में रख दिया। पति के ऑफिस चले जाने के पश्चात् मैंने अपनी सखी के घर पर फोन किया ,‘हेलो! कामवाली आई है क्या ?’ नम्रता ने कहा ,‘ हॉं, बस अभी ही आई है। कुछ उदास लग रही है।’ ‘अच्छा ! चलो उससे कहना कि मेरा काम जरा पहले कर दे।’ मैंने ऐसा कहते हुए फोन रख दिया । नहा धोकर पहले नाश्ता करने बैठ गई। नाश्ता कर दवा ली और चाय पीने की तलब़ होने लगी कि तभी कॉलबेल बजी।
दरवाजे को खोला तो देखा कि अम्मा सामने खड़ी थी। मैंने कहा,‘अम्मा , चाय पीने की इच्छा हो रही है जरा बना दो ना ,अपने लिए भी बना लेना।’ इतना कह कर मैं बिस्तर पर लेट गई। मैं अब आ गई हॅूं न तुम परेशान ना हो ,दीदी । फिर अम्मा चाय बनाने चल दी। अम्मा ने कहा,‘ आजके आमर बूढ़ा शोरिर टा भालो नेई। सेई जोन्ने मोन टा एकटू भालो नेई।’ दीदी तुम्हारे संग बात कर ही मेरा मन हल्का होता है, तुम ही हो जो मेरी बात समझती हो । हॉं, रेणू का ये कहना बिल्कुल सही था , उसकी बंगाली भाषा मुझे ही समझ आती थी। वो कह रही थी कि उसके बूढ़े की तबीयत ठीक नहीं है। मैंने कहा कि चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा। चाय और रोटी लेकर यहीं पंखे के नीचे आ जा।
अम्मा की उम्र साठ वर्ष के आस-पास की थी ,बेटे बहु वाली थी। उसकी शादी दस वर्ष की थी तब हुई थी। तीन बच्चे भी हुए किन्तु जब उसका तीसरा बेटा हुआ तो पति ने दूसरी शादी कर ली और शराब पीने की लत भी उसी समय से तीव्र हो गई। कोई भी उसे रोक पाने में असमर्थ था । पुरुष को तो गलती करने की जैसे पूर्ण स्वतंत्रता है,अगर स्त्री करे तो संस्कार हीन कहलाएगी। दूसरी शादी से भी उसके दो बच्चे हुए। समय गुजरता गया ,बच्चे सभी बड़े होते गए। बच्चों की भी शादी वगैरह हो गई। उम्र के साथ बूढ़ा कमज़ोर और बीमार रहने लगा। ऐसी स्थिति में अम्मा ने ही उसे संभाला उसकी देख रेख की, दवा-दारु का भी प्रबंध किया। न जाने अम्मा को ही इतनी चिंता क्यों रहती है और दूसरी पत्नी भी तो है। अम्मा तो जी जान से उसकी देखरेख करती। एक दिन अम्मा बीमार अवस्था में ही काम पर आ गई ।
इस अधूरी कहानी को पूरा पढ़ने के लिए ऑडियो की सहायता लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
लघुकथा
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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