सोमवार, 22 अगस्त 2016
डॉ. कमलेश द्विवेदी की दो कविताएँ….
कविता का अंश..
अपनी साँसों के, अपनी धड़कन के गीत लिखूँ मैं,
जब-जब तुमसे मुलाकात हो, मन के गीत लिखूँ मैं।
कितना प्यार दिया है तुमने, कितना प्यार दिया है।
मैंने जो भी चाहा, तुमने वो अधिकार दिया है।
यूँ ही मुझसे बँधे रहो, बंधन के गीत लिखूँ मैं।
पतझर के मौसम में भी सावन के गीत लिखूँ मैं।
जब भी कभी सामने बैठो, मैं बस तुम्हें निहारूँ।
पल-पल खुद को देखूँ, पल-पल अपना रूप सँवारूँ।
ऐसे मुझे सँवारों तो दरपन के गीत लिखूँ मैं।
मेरे और तुम्हारे अपनेपन के गीत लिखूँ मैं।
इस अधूरी कविता के साथ-साथ ऐसी ही मधुर रस बरसाती कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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