सोमवार, 22 अगस्त 2016
बाल कविता – बादल आए…
कविता का अंश…
बादल आए, बादल आए
साथ में अपने पानी लाए।
चिंटू, मिंटू, बिट्टू झूमे,
झम-झम, झम-झम
ये बादल झूमते आए।
चिंकी, मिंकी, पिंकी नाचे,
झर-झर, झर-झर ये झरते जाए।
ठंडी-ठंडी हवा भी साथ लाए,
मन भीगा-भीगा बहता जाए।
खुशियों का संदेशा साथ लाए,
हम तुम, तुम हम गाते जाएँ।
बादल भूरे, काले हैं,
खूब बरसने वाले हैं।
शहरों और पहाड़ों पर,
सारे जंगल झाड़ों पर।
छमक-छमक बरसातें होंगी,
हरियाली की बातें होंगी।
भूल जाओं कि रोज
चाँद-सितारों की रातें होंगी।
घटाएँ घनघोर होंगी,
दुबके-सहमे हम होंगे और
मेंढकों की टर्र-टर्र होंगी।
लेकिन हमें बताओं तो,
थोड़ा यह समझाओ तो,
बादल आते कैसे हैँ?
नील गगन में छाते कैसे हैं?
संग अपने पानी लाते कैसे हैं?
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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