सोमवार, 8 अगस्त 2016
एन. रघुरामन - जीने की कला - 11
लेख का अंश… चाहते हैं कि नियति आप पर मुस्कराए तो एचटीडीओ को आदत बनाएँ। यह एचटीडीओ क्या है? इसका अर्थ होता है - होल्ड्स द डोर ओपन यानी एचटीडीओ। हाल ही में मैंने इसके बारे में पढ़ा। शायद आपके साथ पहले भी कभी ऐसा हुआ हो कि जब आप किसी हॉटल के दरवाजे की तरफ बढ़ रहे होते हैं तो आगे चल रहा व्यक्ति दरवाजा धकेलकर आगे निकल जाता है और दरवाजा आपकी नाक पर आकर टकराता है। या फिर ऐसा भी होता है कि आपके आगे का व्यक्ति दरवाजा खोलकर रखता है और आपके गुजरने के बाद उसे बंद कर देता है। याद करें कि आपको उसका वह व्यवहार कितना अच्छा लगा था। भले ही वह उस क्षण तक ही याद रहता है। लेकिन क्या कभी आपने भी दूसरों के लिए ऐसा किया? हमारे देश की 99 प्रतिशत आबादी ऐसी ही है, जो दरवाजे को खुला छोड़कर उसे पीछे धड़ाम से टकराने के लिए छोड़ आगे बढ़ जाते हैं। केवल एक प्रतिशत ही ऐसे लोग हैं, जो दूसरों को दरवाजा न लगे इसका ध्यान रखते हुए उसे खोलकर रखते हैं और दूसरों के अंदर आने के बाद उसे बंद करते हैं। सीधी-सी बात है, कि यदि आप दूसरों की परवाह करेंगे तो दूसरे भी आपकी परवाह करेंगे। दूसरे भले ही न करें लेकिन आपकी सदाशयता के कारण नियति तो आपका भला करने के लिए तैयार ही रहेगी। बस आपको स्वयं को बदलना होगा और तभी आप एक सच्ची मुस्कराहट पाएँगे। कुछ इसी तरह की सकारात्मक ऊर्जा से भरी हुई बातें जानिए ऑडियो के माध्यम से…
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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