सोमवार, 22 अगस्त 2016
लोक कथा – सोने का प्याला
कथा का अंश…
सनद खान पुरानी जगह को छोड़कर अपने लोगों और रेवड़ों को साथ लेकर दूर-दराज के उत्तरी इलाकों की ओर रवाना हो गया। इन्हीं लोगों के साथ सिरेन के घोड़े की पीठ पर लदे हुए चमड़े के एक बोरे में बंद सिरेन के पिता भी जा रहे थे। सिरेन दूसरों की नजर बचाकर अपने पिता को कुछ खिला-पिला देता और जब वे पड़ाव डालते तो वह अच्छी तरह से अंधेरा हो जाने पर अपने पिता को बोरा खोलकर उसमें से बाहर निकालता ताकि वे कुछ देर आराम कर सके। इस तरह सफर करते हुए बहुत वक्त बीत गया। वे आखिर एक बहुत बड़े समुद्र के किनारे पहुँच गए। सनद खान ने अपने लोगों को वहाँ पड़ाव डालने के लिए कहा। खान का एक नौकर तट पर गया। उसे सागर के तल में कोई चमकती-दमकती चीज दिखाई दी। जब उसने बड़े ध्यान से देखा तो पाया कि वह गैर मामूली शकल का एक बहुत बड़ा सोने का प्याला है। वह फौरन भागकर अपने मालिक सनद खान के पास पहुँचा और उसे सागर के तल में सोने का प्याला होने की बात बताई। सनद खान ने न कुछ सोचा न विचारा, बस फौरन ही यह फरमान जारी कर दिया कि सोने का प्याला फौरन उसे लाकर दिया जाए। चूँकि कोई भी समुद्र में गोता लगाने को तैयार नहीं था, किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे ऐसा दुष्कर कार्य करे, इसलिए सनद खान ने उनके नामों की पर्चियाँ निकाली। खान के एक नौकर के नाम की ही पर्ची निकली। उस आदमी ने गोता लगाया लेकिन वह बाहर नहीं आया। उन्होंने फिर से पर्चियाँ डाली। इस बार जिस आदमी के नाम की पर्ची निकली, वह एक खड़ी चोटी पर से समुद्र में कूदा, मगर वह भी समुद्र से बाहर नहीं आया। ऐसा करते-करते कितने ही लोग अपनी जान से हाथ गँवा बैठे। मगर जालिम सनद खान को एक बार भी अपना खतरनाक इरादा बदलने का खयाल नहीं आया। उसके हुक्म के मुताबिक एक के बाद एक लोग अपनी जान देते रहे। आखिर सोने के प्याले को लाने के लिए सिरेन की बारी आई। वह अपने पिता के पास विदा लेने के लिए गया। उसने पिता से कहा – अलविदा, अब्बू जान। अब हम दोनों ही मौत के मुँह में जाने वाले हैं। मुझे प्याले के लिए समुद्र में गोता लगाना होगा और मेरे जाते ही सनद खान के नौकर आपको खोज लेंगे। आप भी मारे जाएँगे और गोता न लगा पाने के कारण मैं भी मारा जाऊँगा। हम दोनों की मृत्यु निश्चित है। क्या ऐसा ही हुआ? क्या सनद खान ने अब्बू को मार दिया? क्या सिरेन भी प्याला खोजने के लिए मारा गया? प्याला सनद खान को मिला कि नहीं? इन सारी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए ऑडियो की मदद लीजिए….
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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