शुक्रवार, 12 अगस्त 2016
बेताल पच्चीसी - 4 - ज्यादा पापी कौन ?
बेताल पच्चीसी, पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेतालभट्ट बताये जाते हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। दिव्यदृष्टि के माध्यम से हमारी कोशिश रहेगी कि हम आपके सामने विक्रम और वेताल की राेज एक कहानी लाएँ, जिससे आपका मनोरंजन और ज्ञानवर्धन हो। इसी कड़ी की चौथी कहानी है -ज्यादा पापी कौन ?
भोगवती नाम की एक नगरी थी। उसमें राजा रूपसेन राज करता था। उसके पास चिन्तामणि नाम का एक तोता था। एक दिन राजा ने उससे पूछा, “हमारा ब्याह किसके साथ होगा?”
तोते ने कहा, “मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा।” राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा।
उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मदन मञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ।
इसके बाद दोनों को विवाह हो गया। रानी के साथ उसकी मैना भी आ गयी। राजा-रानी ने तोता-मैना का ब्याह करके उन्हें एक पिंजड़े में रख दिया।
एक दिन की बात कि तोता-मैना में बहस हो गयी। मैना ने कहा, “आदमी बड़ा पापी, दग़ाबाज़ और अधर्मी होता है।” तोते ने कहा, “स्त्री झूठी, लालची और हत्यारी होती है।” दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने कहा, “क्या बात है, तुम आपस में लड़ते क्यों हो?”
मैना ने कहा, “महाराज, मर्द बड़े बुरे होते हैं।” इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनायी।
इलापुर नगर में महाधन नाम का एक सेठ रहता था। विवाह के बहुत दिनों के बाद उसके घर एक लड़का पैदा हुआ। सेठ ने उसका बड़ी अच्छी तरह से लालन-पालन किया, पर लड़का बड़ा होकर जुआ खेलने लगा। इस बीच सेठ मर गया। लड़के ने अपना सारा धन जुए में खो दिया। जब पास में कुछ न बचा तो वह नगर छोड़कर चन्द्रपुरी नामक नगरी में जा पहुँचा। वहाँ हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था। उसके पास जाकर उसने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज़ लेकर सौदागरी करने गया था। माल बेचा, धन कमाया; लेकिन लौटते में समुद्र में ऐसा तूफ़ान आया कि जहाज़ डूब गया और मैं जैसे-तैसे बचकर यहाँ आ गया।
उस सेठ के एक लड़की थी रत्नावती। सेठ को बड़ी खुशी हुई कि घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया। उसने उस लड़के को अपने घर में रख लिया और कुछ दिन बाद अपनी लड़की से उसका ब्याह कर दिया। दोनों वहीं रहने लगे। अन्त में एक दिन वहाँ से बिदा हुए। सेठ ने बहुत-सा धन दिया और एक दासी को उनके साथ भेज दिया।
रास्ते में एक जंगल पड़ता था। वहाँ आकर लड़के ने स्त्री से कहा, “यहाँ बहुत डर है, तुम अपने गहने उतारकर मेरी कमर में बाँध दो, लड़की ने ऐसा ही किया। इसके बाद लड़के ने कहारों को धन देकर डोले को वापस करा दिया और दासी को मारकर कुएँ में डाल दिया। फिर स्त्री को भी कुएँ में पटककर आगे बढ़ गया।
स्त्री रोने लगी। एक मुसाफ़िर उधर जा रहा था। जंगल में रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ आया उसे कुएँ से निकालकर उसके घर पहुँचा दिया। स्त्री ने घर जाकर माँ-बाप से कह दिया कि रास्ते में चोरों ने हमारे गहने छीन लिए और दासी को मारकर, मुझे कुएँ में ढकेलकर, भाग गए। बाप ने उसे ढाढस बँधाया और कहा कि तू चिन्ता मत कर। तेरा स्वामी जीवित होगा और किसी दिन आ जाएगा।
क्या उस स्त्री का पति वापस आया? क्या उसकी जुए की लत छूट गई? मैना की कहानी सुनकर राजा की क्या प्रतिक्रिया हुई? तोते ने राजा को किस तरह अपने पक्ष् में लिया? इन सारी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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