सोमवार, 22 अगस्त 2016
विज्ञान कविता – रोलर स्केट्स – सुधा अनुपम
कविता का अंश…
लहराते, टकराते, झूमे,
चुन्नू, मुन्नू, राजू, मुनिया,
उड़े पहनकर पैर में पहिए,
बाबू, ये स्केट्स की दुनिया।
बेल्जियम का जोसेफ मर्लिन,
इस खेल का प्रथम खिलाड़ी।
पहुँचा बॉलरूम में नचने,
हाथ में वायलिन, पैर में गाड़ी।
पहिए रोल हुए कुछ ऐसे,
न रूक पाए, न मुड़ पाए।
मर्लिन भेया ऐसे फिसले,
जाकर शीशे से टकराए।
वायलिन टूटा, खुद भी टूटे,
भूल गए पहियों पर चढ़ना।
कथा यहीं पर खत्म न हुई,
उसको तो परवान था चढ़ना।
तिरसठ साल गुजर जाने पर,
स्केट्स लौटे रेस में।
रॉबर्ट टायर दौड़ा इन पर,
इंग्लैंड नामक देस में।
मौज, मजा और धूम-मस्ती,
खुलकर उसने गदर किया।
एक के पीछे एक जुड़े थे,
पाँच व्हील पर सफर किया।
चार व्हील स्केट्स का प्रचलन,
चालीस बरसों बाद हुआ।
जेम्स प्लिमटन नामक नर ने,
नए सिर से इसे छुआ।
लकड़ी के पहियों पर उसने,
खोल रबर का चढ़ा दिया।
नई खोज ने उसका रूतबा,
चहुँ दिशा में बढ़ा दिया।
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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